साल 2011 का राजनीतिक बहीखाता...

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  • Sunday, January 1, 2012

  • वर्ष 2011 भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार की लगातार उधडती परतों के बाद ए. राजा जैसे मंत्रियों और कुछ कारपोरेट कंपनी के दिग्गज शाहिद बलवा, विनोद गोयेनका और संजय चंद्रा जैसे लोगो के तिहाड़ पहुँचने के साथ अन्ना के भ्रष्टाचार के विरोध और मजबूत लोकपाल के लिए हुए आन्दोलन और उसे मिले जनसमर्थन के लिए जाना जाएगा. भ्रष्टाचार के इन आरोपों ने उत्तराखंड से निशंक और कर्नाटक से येदुरप्पा को गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर किया. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों जैसे संसद की सर्वोच्चता पर प्रश्न उठाने के लिए भी जाना जाएगा. महिला आरक्षण बिल इस वर्ष भी लटका रहा और वर्ष के अंत में राजनैतिक षड्यंत्र के बीच इसमे लोकपाल बिल का नाम भी जुड़ गया.


    जनवरी में साल की शुरुआत ठण्ड से जरुर हुयी लेकिन भ्रष्टाचार की अग्नि ने भारतीय राजनीति को अपने गर्मी से ज्वलंत मुद्दा बनाये हुआ था. भले ही सरकार ने मनरेगा के तहत मजदूरी 30% बढाकर और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र राष्ट्र को समर्पित करने के साथ मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी की शुरुआत करके सरकार के लिए नए साल में अच्छे और नए संकेत दिए लेकिन
    फरवरी की शुरुआत ने ही सरकार के लिए साल भर होने वाले संकटो के संकेत दे दिए. २ फरवरी को मंत्री ए. राजा को सीबीआई द्वारा हिरासत में लिए जाने के साथ ही भ्रष्टाचार सरकार के लिए मुसीबत बननी शुरू हो गयी. जो कि १७ फरवरी को राजा के १४ दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ भेजे जाने के साथ ही बढ़ गयी. इसके अलावा जेपीसी के लिए लगातार दबाव झेल रही सरकार को आख़िरकार प्रधानमन्त्री ने जेपीसी की घोषणा करके राहत दी.

    मार्च में ठंडक कम होने के साथ ही पहले हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट ने ३ मार्च को विवादित पी. जी. थॉमस को सीवीसी के मुख्य कमिश्नर के पद से हटाने के आदेश जारी कर दिए. इसके ठीक एक दिन बाद 4 मार्च को सीबीआई ने फेमस बोफोर्स घोटाले के आरोपित क्वात्रोची की क्लोज़र रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जिसमे क्वात्रोची के खिलाफ सभी मामले वापस लेने की गुहार थी. 17 मार्च को विकिलीक्स के खुलासे ने कांग्रेस की समस्या बढ़ा दी जब मनमोहन सरकार को कैश फॉर वोट मामले में संलिप्त बता दिया. इसी मार्च में हसन अली जैसे काले धन के सौदागर भी प्रवर्तन निदेशालय के शिकंजे में आया. जो पहले 7 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय के गिरफ्त में आया लेकिन साक्ष्यों के अभाव में मुंबई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी. लेकिन कुछ दिनों बाद उसे फिर गिरफ्तार कर लिया गया. महीने का अंत बीजेपी के लिए भी अच्छा नहीं रहा क्योकि विकीलीक्स के एक और खुलासे में कहा की बीजेपी नेता अरुण जेटली ने हिंदुत्व मुद्दे को बीजेपी के लिए एक अवसरवादी मुद्दा कहा है.

    अप्रैल की शुरुआत हुयी अन्ना के आन्दोलन से जब वो भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत जन लोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठ गए. 9 अप्रैल को सरकार ने जनसमर्थन को देखते हुए जन लोकपाल बिल बनाने की अधिसूचना जारी कर दी. जिसके बाद अन्ना ने अनशन समाप्त कर दिया. जिसके बाद लोगो में भ्रस्टाचार के खिलाफ एक बयार चलने लगी और सरकार के विरुद्ध लोगो में रोष फैलने लगा. इस दौरान देश में ऑनर किलिंग के मामले सामने आने पर 19 अप्रैल को सुप्रीमे कोर्ट ने खाप पंचायतो को 'कंगारू कोर्ट' की संज्ञा दी. 24 अप्रैल को सत्य साईं बाबा का देहांत हुआ. जिसके बाद कुछ समय तक उनकी सम्पति यानि ट्रस्ट को लेकर विवाद चलता रहा. अप्रैल महीने के अंत में लोकलेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने 2 जी घोटाले की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को भेजी जिस पर अच्छा खासा बवाल सरकार ने किया.

    मई की शुरुआत अरुणांचल के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मृत्य से हुयी. 9 मई को सर्वोच्च न्यायलय ने अयोध्या में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटे जाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को विचित्र करार देते हुए जमीन बटवारे पर रोक लगा दी और 1993 में दिए अपने फैसले के मुताबिक यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया. 15 मई को भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत का निधन हो गया. 20 मई को वामदलों को करारी शिकस्त देते हुए तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बेनर्जी बंगाल की पहली महिला मुख्यामंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. वही जयललिता ने भी तमिलनाडु में करूणानिधि को सत्ता से हटाते हुए खुद गद्दी संभाली. 22 मई को मनमोहन सरकार के यूपीए-2 के दो साल पुरे हुए.

    जून की गर्मी के शुरआत के पहले हफ्ते में कैग की रिपोर्ट ने रिलाइंस को केजिन बेसिन घोटाले में आरोपित माना जिसमे सरकारी एजेंसियों के माध्यम से रिलाइंस को फायदा पहुँचाने की बात सामने आई. 3 जून को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ. 4 जून को बाबा रामदेव कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ गए. 5 जून को रामलीला मैदान में सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए लाठी चार्ज हुयी जिसके बाद कई लोग जख्मी हुए और बाबा रामदेव को मैदान छोड़ना पड़ा. जिसके बाद कांग्रेस सरकार की जमकर आलोचना भी हुयी. लेकिन बाबा रामदेव ने अनशन जारी रखा जो की 12 जून को पतंजलि योगपीठ में अधिक स्वस्थ्य खराब होने की वजह से ख़त्म करना पड़ा. इसी महीने एक और मंत्री दयानिधि मारन को भी घोटालों में घिरने के बाद अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

    जुलाई माह में लोकसभा सत्र के दौरान पहली बार सरकार ने जनलोकपाल बिल की चर्चा संसद में की और बिल की कॉपी सदन में राखी जिसमे प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के साथ-साथ कई बिन्दु थे जिन पर विपक्ष ने जमकर विरोध किया. जिसके बाद अन्ना हजारे ने भी मजबूत लोकपाल न लाने की स्थिति में दिल्ली में अनशन की घोषणा कर दी. बीजेपी ने भी कलमाड़ी को कॉमनवेल्थ गेम्स का मुखिया बनाने को लेकर सरकार पर कलमाड़ी की गलत नियुक्ति का आरोप लगाया. इसी महीने मशहूर चित्रकार एम्. ऍफ़ हुसैन का भी 3 जुलाई को लन्दन में निधन हो गया.

    अगस्त माह अन्ना और उनके आन्दोलन के नाम रहा. मजबूत लोकपाल बिल को लेकर जैसे ही अन्ना ने दिल्ली में आमरण अनशन की शुरुआत की उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन अन्ना ने गिरफ्तार होने के बाद जेल में ही अनशन शुरू कर दिया. ये 16 अगस्त का दिन था. जेल में अनशन शुरू करने पर घबरा कर सरकार और प्रशासन को उन्हें अनशन की जगह देने पड़ी. इस आन्दोलन को देश भर के लोगों ने समर्थन दिया जिसके बाद 27 अगस्त को सरकार को विवश होकर उनकी मांग माननी पड़ी. 28 अगस्त की सुबह अन्ना ने अपना अनशन ख़त्म किया. इसी माह दिल्ली की मुख्यमंत्री पर भी घोटालों के आरोप लगे.

    सितम्बर माह की शुरुआत विवादित और आरोपित न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के इस्तीफे से हुयी. ये कोलकाता उच्च न्यायलय में थे. इससे पहले इनका महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में पेश हुआ था. 3 सितम्बर को प्रधानमन्त्री और उनके मंत्रिमंडल ने अपनी सम्पति की घोषणा की. इसी माह की 27 तारीख को सरकार ने नियंत्रण मुक्त करने का प्रस्ताव को सहमति दी. साथ ही सीबीआई ने चिदंबरम को 2 जी मामले में क्लीन चिट भी दी. टीम अन्ना के साथियों पर आरोप लगने की शुरुआत भी इसी महीने से हुयी.

    अक्टूबर महीने में 11 अक्टूबर को लाल कृष्ण अडवाणी ने एक बार फिर अपनी 38 दिवसीय रथ यात्रा की शुरुआत बिहार से की. एस बार की रैली उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ निकाली. टीम अन्ना के मेम्बर प्रशांत भूषण पर हमला किया गया जो की जम्मू कश्मीर पर विवादित बयान देने के बाद हुआ. इससे पहले 5 अक्टूबर को रिटायर न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू को प्रेस परिषद् का नया अध्यक्ष चुना गया. इसी माह सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू महिला के पैतृक सम्पति में बराबर का अधिकार होने घोषणा की. 22 को ए. राजा और कनिमोझी समेत 17 पर सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप तय किये. 25 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश की पहली मैन्युफेक्चारिंग नीति को को मंजूरी दी. 27 को प्रसिद्ध साहित्यकार श्री लाल शुक्ल का निधन हुआ.

    नवम्बर की सबसे बड़ी घटना संसद से रही जो कि विदेश निवेश के मुद्दे पर लगभग स्थगित ही रही. 20 नवम्बर को अडवाणी की रथ यात्रा की दिल्ली में समाप्ति हुयी. इसके अतिरिक्त 29 नवम्बर को कनिमोझी और अन्य कार्पोरेट कंपनी के दिग्गजों को भी तिहाड़ से 23 नवम्बर को रिहाई मिली. इसके अतिरिक्त राजस्थान के भंवरी देवी केस में भी सीबीआई सेम्पल लेने और तहकीकात में लगी रही. अन्ना ने जनलोकपाल न पेश होने कि स्थिति में दिल्ली में ११ दिसम्बर को सांकेतिक अनशन की घोषणा की.

    दिसम्बर का शुरुआती दिन संसद के ऍफ़डीआई के मुद्दे पर स्थगित रहने शुरू हुए उसके बाद संसद में अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली समिति ने लोकपाल का ड्राफ्ट रखा जिसका विरोध टीम अन्ना के साथ-साथ विपक्ष ने भी किया. 11 तारीख को अन्ना ने दिल्ली में सांकेतिक अनशन भी किया. लेकिन कुछ दिन बाद ही चिदम्बरम पर एक होटल मालिक के पक्ष में कार्य करने के आरोप के साथ ही 2 घोटाले में ए. राजा के बराबर दोषी होने का आरोप लगा. जिसकी वजह से संसद फिर स्थगित हुयी और चिदंबरम का भारी विरोध हुआ. कुछ दिन बाद कांग्रेस ने मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया जिसके वजह से लोकपाल में कई राजनीतिक पेंच फँस गए. सरकार द्वारा लोकपाल बिल को पारित करने के लिए सत्र तीन दिन बढ़ाने की घोषणा की गयी. 27 दिसम्बर को लोकपाल पर चर्चा और मुंबई में अन्ना का अनशन एक साथ शुरू हुआ. लेकिन बीमारी की वजह से उन्हें 28 दिसम्बर को अपना अनशन और जेल भरो आन्दोलन वापस लेना पड़ा. इसी दौरान सरकार ने लोकसभा में लोकपाल पारित करवा लिया. लेकिन लोकपाल को संवैधानिक दर्ज़ा नहीं मिल पाया. 29 अगस्त को सरकार ने लोकपाल को राज्यसभा में पारित करवाने की कोशिश की लेकिन बहुमत के अभाव में सरकार को लोकपाल बिल को बीच में ही रोक देना पड़ा.जिससे सरकार का ये साल फजीहत के साथ ख़त्म हुआ.

    कुल मिलाकर अगर 2011 अगर किसी राजनितिक मुद्दे के लिए जाना जायेगा तो वो होगा भ्रष्टाचार और राजनीति का खुलता गठजोड़.






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