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Save Your Voice: a movement against web censorship

‘Save Your Voice’ एक मुहिम है इंटरनेट की आजादी के लिये, फ्रीडम आफ स्पीच की हिफाजत के लिये, एक मजबूत लोकतंत्र के लिये और...

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Lets Rebuild Our Democracy: Prashant Bhushan

We are told that we have to live with this “imperfect democracy” and that other countries have also learnt to similarly live with such imperfections...

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Movie Review: Agneepath

Some can greet the movie as a "wow”, the handful of others can nick it as ‘masala’ entertainer; the other few can create an illusory of drama...

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Sachin: बस नाम ही काफी है- First Century

उनके 100 शतकों को हम अपनी इस सीरिज- 'सचिन बस नाम ही काफी है’ में कवर करेंगे. आज बात करते हैं उनके पहले शतक की जो उन्होने टेस्ट क्रिकेट मे लगाया था...

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Popular Stories

Dara Singh दारा सिंह का न रहना दुखद है।

  • Thursday, July 12, 2012


  • अगर वे 1928 की बजाय 1988 में पैदा होते, या अगर w.w.f. 1958 में शुरू हो गया होता तो दारा सिंह अरबपति हो गए होते। आइ पी एल में खेल कर करोड़ों बटोरने वाले बल्लेबाजों गेंदबाजों से कई गुना ज्यादा रुपया उनके पास होता। बिग बी और क्रिकेट के भगवान से भी अधिक महंगी कार उनके पास होती। 
    तब खली से भी बली वे होते। 




    Uday Prakash 
    https://www.facebook.com/udayprakash2009

    हमलोग बहुत बचपन में थे, जब वे मशहूर हो गए थे। उन दिनों 'ब्लिट्ज़' अखबार, जिसके संपादक आर के करंजीया थे, के आखिरी पेज़ पर अक्सर दारा सिंह के किस्से छपते थे। किंगकांग को फ्री स्टाइल कुश्ती में उन्होने 'काला-पंजा' नामक दांव लगा कर हराया था और उससे चैम्पियनशिप की बेल्ट छीन ली थी। एक बार कहीं से एक 'असली' दारा सिंह प्रकट हो गया था, जिसने इस 'नकली दारा सिंह' को चुनौती दी थी। उसका दावा था की बीच में वह कहीं चला गया था या किसी जेल में बंद था, उसका फायदा उठाकर ये वाला दारा सिंह नाम कमा रहा था। दोनों की कुश्ती देखने के लिए , पता नहीं किस शहर में, शायद मुंबई में, बहुत भीड़ उमड़ी थी और खूब टिकट बिके थे। ये बात 'ब्लिट्ज़' समेत कई उस समय के अखबारों में छपी थी। वो शायद नूरा कुश्ती का शुरूआती दौर था, जो आगे चल कर w.w.f. जैसे इवेंट में तब्दील हुआ। (बाद में किसी ने बताया की वो 'असली' दारा सिंह कोई और नहीं, उन्हीं का अपना छोटा भाई सरदारा सिंह रंधावा था, जो बाद में कई स्टंट फिल्मों में रंधावा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मुमताज़ के साथ दोनों भाइयों ने हीरो का रोल किया था। 


    रामानन्द सागर के रामायण के हनुमान ही नहीं , शायद किसी फिल्म में महाभारत के भीम भी वही बने थे, जिनका एक डायलाग अक्सर पंजाबी हिन्दी के उदाहरण के बतौर पेश किया जाता है - 'हे ए भगवाण ... तूँ मेरी केसी परीक्सा ले रहे हो...?' जैसे हिन्दी आलोचकों अध्यापकों की अपनी हिन्दी होती है, वैसे दारा सिंह की भी अपनी हिन्दी होती थी... ।
    पता नहीं उन्हें हनुमान ही क्यों बनाया जा रहा है। हो सकता है इसलिए... क्योंकि वे भाजपा द्वारा राज्यसभा के सांसद बनाए गए थे। और आज के माहौल में 2014 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए यही इमेज खास फायदा पहुंचा सकता है। वरना तो अंडे और संडे मंडे वाला विज्ञापन भी कम लोकप्रिय नहीं हुआ था। अंडे को शाकाहारी और लाभकारी बनाने के प्रचार में दारा सिंह की भी बड़ी भूमिका थी।

    उनका जाना उदास करता है। यह भी जानना कम उदास नहीं करता कि जिस पंजाब में हरित क्रान्ति हुई और जहां की खेती ने भारत को अनाज के मामले में अपने पैरों पर खड़ा किया, उसी पंजाब में खेती और पहलवानी छोड कर उन्हें मुंबई जाना पड़ा, जो भारत की व्यावसायिक राजधानी कही जाती है। वहाँ जाकर उन्होने धन कमाया, लेकिन 'असली' दारा सिंह की असली कुश्ती के जरिये नहीं, बल्कि असली के 'अभिनय' के जरिये.... ।

    छोटे या बड़े पर्दे पर जो भी दिखता है, वह 'नकल' और 'नकली' ही होता है। अगर वे इन पर्दों पर न आते तो क्या इतने मशहूर हो सकते थे। आखिर भिंड-मुरैना के चैंपियन एथलीट पानसिंह तोमर को भी लोगों ने तभी जाना जब वह बड़े पर्दे पर असली पान सिंह की नकल बन कर आया।

    हमारी पीढ़ी के लोग भाग्यशाली हैं कि उन्होने दारा सिंह को तब से जाना था, जब उनमें बहुत कुछ असल भी था।

    (Uday Prakash is an eminent scholar, and a prolific Hindi poet, journalist, translator and short story writer.)
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    साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है

  • Monday, May 14, 2012
  • वाह कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।




    TC Chandar
    https://www.facebook.com/tcchander


    ‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल कहा जा सकता है।

    उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।

    किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?

    हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!

    उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!

    इस कार्टून मुद्दे पर अभी तक किसी बड़े नेता ने किसी को समझाने का या वास्तविकता को सामने रखने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। सभी छोटे-बड़े मगन हैं- जो हो रहा है होने दो। कार्टून दलित विरोधी है। बिल्कुल है। इससे अम्बेडकर और दलितों का अपमान होता है। होता है। कार्टून हटाना है, हटा देंगे। हमको डराओ तो, हम डर जाएंगे! वाह!! कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।

    साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
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    Sachin बस नाम ही काफी हैं: Second Century

  • Monday, February 27, 2012
  •  Sachin का हर शतक लाजवाब रहा हैं. उनके 99 शतकों को हम अपनी इस सीरिज- 'सचिन बस नाम ही काफी है’ में कवर कर रहे हैं.  इसी कड़ी में पढ़िये आज सचिन के दूसरे शतक की स्टोरी


    आस्ट्रेलिया के विकटों पर तेज उछ्लती गेंदो का सामना करना ही हिम्मत का काम होता है. 1992 मे मर्व ह्यूज और क्रेग मैकडेरमौट जैसे गेंदबाज जब गेंदबाजी कर रहे हो तो हिम्मत मे कमी आना स्वाभाविक हैं. सर डॉन ब्रेडमैन की जमीन पर सचिन ने पहली बार कदम रखा था और आस्ट्रेलियाई दर्शको ने देखा एशिया का शेर जो विश्व क्रिकेट का नया डॉन बनने की राह पर चल पडा था.

    2 जनवरी 1992 को भारत सीरिज का अपना तीसरा टेस्ट खेलने सिड्नी के मैदान पर पहुचा. पहले दोनों मैच भारत क्रमश: 10 विकेट और 8 विकेट से हार गया था.

    भारत ने टास जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया था. आस्ट्रेलिया की पहली पारी 313 रन पर समाप्त हुई. जिसमे डेविड बून के नाट आऊट 129 रन भी शामिल थे.

    जवाब मे भारत के दो विकेट 79 पर गिर गये थे. उसके बाद वेंगसरकर और रवि शास्त्री ने 111 रन की साझेदारी करके स्कोर को 197 पर पहुचा दिया था. 197 रन पर वेंगसरकर शास्त्री का साथ छोड गये और चार रन बाद ही 201 पर अजहर भी पवैलियन लौट गये थे. अजहर के बाद सचिन क्रीज पर आये और शुरु हुआ बल्लेबाजी की किताब का एक नया अध्याय जो आस्ट्रेलियाई दर्शको ने पहली बार देखा था.

    युवा सचिन ने जिस तरह से ह्यूज और मैकडेरमौट का सामना किया वो तारीफ के काबिल था. उन्होने रवि शास्त्री के साथ मिलकर पाचवे विकेट के लिये 196 रन की साझेदारी की थी. जब भारत का स्कोर 397 था तब शास्त्री शानदार 206 रन बनाकर शैन वार्न का पहला टेस्ट शिकार बने. जी हा ये वार्न का पहला टेस्ट मैच था. पहली बार इस मैच मे सचिन और वार्न आमने सामने थे. भारत की पारी 483 रन पर समाप्त हुई. सचिन अंत तक आऊट नही हुये और शानदार 148 रन बनाये जिसमे उन्होने 14 बार गेंद को सीमारेखा के पार पहुचाया. इस शतक के साथ वो आस्ट्रेलिया मे शतक लगाने वाले सबसे युवा खिलाडी बन गये थे. उन्होने 298 मिनट बल्लेबाजी की थी. आस्ट्रेलिया ने दूसरी पारी मे 173 रन बनाये 8 विकेट खोकर और मैच ड्रा हो गया.

    सचिन की इस पारी पर आस्ट्रेलिया के शानदार तेज गेंदबाज मर्व ह्यूज ने एलन बार्डर से कहा था “ये लडका तुमसे भी ज्यादा रन बनायेगा.” इस पारी से उन्होने अपनी प्रतिभा और क्षमता को साबित किया था.

    अगली कड़ी मे पढिये कैसे सचिन ने दुनिया की सबसे तेज पिच पर दिखाया अपना जलवा.
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