मन मे अगर लगन हो और किसी खेल के लिये जुनून तो कोई भी चीज आपको आगे बढने से नही रोक सकती हैं. एम.एल वर्मा जी ऐसे ही जोश और जुनून के उदाहरण हैं. आज वो उज्जैन टेबल टेनिस संघ के जनरल सेक्रेटरी हैं. साथ ही एल.आई.सी से भी वो Asst. Administrative Officer के पद से रिटायर हुये हैं. वर्माजी Table Tennis के एक नेशनल Player और अपांयर भी रहे चुके हैं. एम.एल वर्मा से बात की हमारे स्पोर्टस एडिटर चिराग जोशी ने और टेबल टेनिस के करेंट सिनैरियो को जाना.

उज्जैन मे आप किस तरह से Players को ट्रेनिंग देते हैं?
मुझे खेलते हुये 40 साल हो गये हैं. मैंने सन 1982 से 1998 तक अपांयरिंग भी की हैं. Player, अपांयर और कोच के रूप मे जो मेरा अनुभव हैं उसी को ट्रेनिंग मे उपयोग करता हूं. मैं अपने घर पर ही उपर हाल मे कोचिंग देता हूं. टेबल टेनिस के खेल मे Physical Movements काफी होते हैं. मैं 40 प्रकार की exercise करवाता हूं जिससे शरीर के सारे जोड खुल जाते हैं और खेल मे कही भी Movement करना आसान हो जाता हैं. बच्चों को जब हम सिखाते हैं तो एक स्ट्रोक में कम से कम 2000 बार सुधार करवाते हैं और उसके बाद वो उस शाट मे एक्सपर्ट हो जाता हैं. उसके बाद हंमे उसमे सुधार नही करना पडता हैं.
आप कब से खेल रहे हैं और कैसे आपने यहां तक का सफर तय किया?
मैं 1972 मे जब मुझे एल.आई.सी मे नौकरी मिली तब से मैंने टेबल टेनिस खेलना शुरु किया था. मुझे इस खेल के प्रति जुनून था. मैं सुबह चार बजे उठकर 16 किलोमीटर की running करता था. उसके बाद तीन घंटे तक प्रैक्टिस करता था. मैं एक स्ट्रोक की तीन-तीन घंटे प्रैक्टिस किया करता था. मेरे पास कोई कोच नहीं था. मैंने जो सीखा हैं वो players को देखकर ही सीखा है. मेरी जब उज्जैन मे पोस्टिंग हुई तो मैं रोज शाम को 7.30 बजे इंदौर पहुचता था. वहा पर 10.30 तक प्रेक्टिस करने के बाद सुबह वापस अपनी नौकरी पर उज्जैन आता था. मेरी इसी प्रैक्टिस ने मुझे यहां तक पहुचाया हैं.
एक टेबल टेनिस Player मे क्या Qualities होनी चाहिये?
Player की आंखे गेंद पर जमी होनी चाहिये जैसा क्रिकेट, बैडमिंटन और लान टेनिस के खेल मे भी जरूरी हैं. साथ ही उसकी Physical फिटनेस भी जरुरी हैं. खेल के प्रति जूनून और लगन भी चाहिये क्योंकि एक दिन मे कोई बडा Player नही बनता हैं.
टेबल टेनिस फेडरेशन आफ India किस तरह से काम करता है ?
उनके हर राज्य मे एक सेंटर होते हैं. हर राज्य अपने अपने जिलों मे हुई प्रतियोगिताओ से Top के Players को बुलवाता हैं. वो Players राज्य स्तर पर खेलते हैं. वहां पर जो भी प्रतियोगितायें होती हैं उनसे top के Players नेशनल लेवल पर खेलते हैं और उन्हे फिर रैंकिंग के आधार पर आगे खिलाया जाता हैं.
अब तक के खेल जीवन का यादगार लम्हा कौन सा रहा है?
यह उस समय की बात है जब हम 1986 में जोनल खेलने कानपुर गये थे. मैं इंदौर की डिवीजन की टीम मे शामिल हुआ था. वहां पर क्वार्टर फाइनल मे मेरा मैच उत्तर प्रदेश के राजीव अग्रवाल से था. वो काफी अच्छा Player था. पहला सेट वो जीत चुका था. दूसरे में वो मुझसे 10-20 से आगे था. सिर्फ एक प्वाइंट, और मै गेम हार जाता. मैंने उसे 20 पर रोककर 22-20 से वो सेट जीत लिया था. उसके बाद अगले सेट मे भी वो 12-8 से आगे था. मैंने वो सेट भी जीतकर सेमीफाइनल मे प्रवेश किया था. सेमीफाइनल मे भी मैंने उत्तर प्रदेश के दीपांकर मुखर्जी को हराया था. ये दोनो गेम मुझे आजतक याद हैं.
India को टेबल टेनिस मे ओलंपिक गोल्ड जीतने में और कितना इंतजार करना पड़ सकता है?
Indiaदूसरे देशों के मुकाबले गेम्स में टेक्नोलाजी को इंट्रोड्यूस करने में काफी पीछे है. वहां Players को सभी तरह की सुविधायें दी जाती हैं. चीन, कोरिया जैसे दूसरे देशों मे एक Player को बचपन से वहां की फेडरेशन अपने पास रख लेती हैं. उसे आठ साल तक ट्रेनिंग देती हैं और साथ ही उसके परिवार को भी रहने का खर्चा देती हैं. वहां पर Players को उसकी कमियां वीडियो के जरिये बताई जाती हैं और एक Player के साथ चार कोच रहते जिससे उसे खेल की हर बारीकी के बारे मे जानने को मिलता हैं. शायद अभी टेबल टेनिस मे ओलंपिक गोल्ड मे समय लगेगा.
उज्जैन मे आप किस तरह से Players को ट्रेनिंग देते हैं?
मुझे खेलते हुये 40 साल हो गये हैं. मैंने सन 1982 से 1998 तक अपांयरिंग भी की हैं. Player, अपांयर और कोच के रूप मे जो मेरा अनुभव हैं उसी को ट्रेनिंग मे उपयोग करता हूं. मैं अपने घर पर ही उपर हाल मे कोचिंग देता हूं. टेबल टेनिस के खेल मे Physical Movements काफी होते हैं. मैं 40 प्रकार की exercise करवाता हूं जिससे शरीर के सारे जोड खुल जाते हैं और खेल मे कही भी Movement करना आसान हो जाता हैं. बच्चों को जब हम सिखाते हैं तो एक स्ट्रोक में कम से कम 2000 बार सुधार करवाते हैं और उसके बाद वो उस शाट मे एक्सपर्ट हो जाता हैं. उसके बाद हंमे उसमे सुधार नही करना पडता हैं.
आप कब से खेल रहे हैं और कैसे आपने यहां तक का सफर तय किया?
मैं 1972 मे जब मुझे एल.आई.सी मे नौकरी मिली तब से मैंने टेबल टेनिस खेलना शुरु किया था. मुझे इस खेल के प्रति जुनून था. मैं सुबह चार बजे उठकर 16 किलोमीटर की running करता था. उसके बाद तीन घंटे तक प्रैक्टिस करता था. मैं एक स्ट्रोक की तीन-तीन घंटे प्रैक्टिस किया करता था. मेरे पास कोई कोच नहीं था. मैंने जो सीखा हैं वो players को देखकर ही सीखा है. मेरी जब उज्जैन मे पोस्टिंग हुई तो मैं रोज शाम को 7.30 बजे इंदौर पहुचता था. वहा पर 10.30 तक प्रेक्टिस करने के बाद सुबह वापस अपनी नौकरी पर उज्जैन आता था. मेरी इसी प्रैक्टिस ने मुझे यहां तक पहुचाया हैं.
एक टेबल टेनिस Player मे क्या Qualities होनी चाहिये?
Player की आंखे गेंद पर जमी होनी चाहिये जैसा क्रिकेट, बैडमिंटन और लान टेनिस के खेल मे भी जरूरी हैं. साथ ही उसकी Physical फिटनेस भी जरुरी हैं. खेल के प्रति जूनून और लगन भी चाहिये क्योंकि एक दिन मे कोई बडा Player नही बनता हैं.
टेबल टेनिस फेडरेशन आफ India किस तरह से काम करता है ?
उनके हर राज्य मे एक सेंटर होते हैं. हर राज्य अपने अपने जिलों मे हुई प्रतियोगिताओ से Top के Players को बुलवाता हैं. वो Players राज्य स्तर पर खेलते हैं. वहां पर जो भी प्रतियोगितायें होती हैं उनसे top के Players नेशनल लेवल पर खेलते हैं और उन्हे फिर रैंकिंग के आधार पर आगे खिलाया जाता हैं.
अब तक के खेल जीवन का यादगार लम्हा कौन सा रहा है?
यह उस समय की बात है जब हम 1986 में जोनल खेलने कानपुर गये थे. मैं इंदौर की डिवीजन की टीम मे शामिल हुआ था. वहां पर क्वार्टर फाइनल मे मेरा मैच उत्तर प्रदेश के राजीव अग्रवाल से था. वो काफी अच्छा Player था. पहला सेट वो जीत चुका था. दूसरे में वो मुझसे 10-20 से आगे था. सिर्फ एक प्वाइंट, और मै गेम हार जाता. मैंने उसे 20 पर रोककर 22-20 से वो सेट जीत लिया था. उसके बाद अगले सेट मे भी वो 12-8 से आगे था. मैंने वो सेट भी जीतकर सेमीफाइनल मे प्रवेश किया था. सेमीफाइनल मे भी मैंने उत्तर प्रदेश के दीपांकर मुखर्जी को हराया था. ये दोनो गेम मुझे आजतक याद हैं.
India को टेबल टेनिस मे ओलंपिक गोल्ड जीतने में और कितना इंतजार करना पड़ सकता है?
Indiaदूसरे देशों के मुकाबले गेम्स में टेक्नोलाजी को इंट्रोड्यूस करने में काफी पीछे है. वहां Players को सभी तरह की सुविधायें दी जाती हैं. चीन, कोरिया जैसे दूसरे देशों मे एक Player को बचपन से वहां की फेडरेशन अपने पास रख लेती हैं. उसे आठ साल तक ट्रेनिंग देती हैं और साथ ही उसके परिवार को भी रहने का खर्चा देती हैं. वहां पर Players को उसकी कमियां वीडियो के जरिये बताई जाती हैं और एक Player के साथ चार कोच रहते जिससे उसे खेल की हर बारीकी के बारे मे जानने को मिलता हैं. शायद अभी टेबल टेनिस मे ओलंपिक गोल्ड मे समय लगेगा.

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