Ban on the cartoons: क्या कार्टूनिस्ट नहीं कर सकता भ्रष्टाचार का विरोध?

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  • Saturday, December 31, 2011

  • कार्टूनिस्ट असीम के कार्टूनों की गूंज गुरूवार को राज्यसभा में भी सुनाई दी और सांसद Ram Kripal Yadav ने आपत्ति जताई कि संसद को ट्वाइलेट बताकर कार्टूनिस्ट Aseem ने देश की कथित सर्वोच्च संस्था पर निशाना साधा है. मजेदार बात तो यह है कि उसी सदन में आरजेडी के सांसद राजनीति प्रसाद ने अपनी राजनीति को चमकाने के लिये लोकपाल बिल की कापी फाड़कर फेक दी और हंगामा मचा दिया. मैं पूछता हूं कि क्या इसे देश के सवोच्च सदन का अपमान नहीं कहा जाएगा?


    Ashish Tiwari
    aashishtwr116@gmail.com

    मुंबई में अन्ना के अनशन के दौरान एक युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के कार्टून को प्रतीक चिन्हों और संसद के अपमान और मजाक  से जोड़कर मुंबई क्राईम  ब्रांच ने उनकी वेबसाइट कार्टून्स  अगेंस्ट करप्शन को बैन करके एक बार फिर ये जता दिया की अगर कोई कार्टूनिस्ट या कलाकार अपनी कला और कार्टून के माध्यम से भ्रष्टाचार का विरोध करे तो वो विरोध न होकर होकर अपमान का प्रतीक बन जाता है.
    महाराष्ट्र में अन्ना के आन्दोलन के दौरान भारी संख्या में मुंबई में अनशन स्थल  में पहुँच रहे थे. जो देश के कोने-कोने से अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को समर्थन देने और मजबूत लोकपाल के पक्ष में इकट्ठा हो रहे थे. सब भ्रष्टाचार के विरोध में खड़े थे और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने-अपने तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. कोई सिर पर टोपी पहने था, कोई हाथो में तख्तियां लिए था, कोई भ्रष्टाचार विरोधी गीत में व्यस्त था तो कोई बीच में नारे लगाकर. सबके अन्दर गुस्सा था और सब के सब अपने तरीके से जाहिर कर रहे थे. लाजमी है कि विरोध के सबके तरीके अलग-अलग होंगे. जो चरखा चलाकर सूत कात सकता था, उसने सूत कातकर विरोध किया. जो गाकर विरोध कर सकता था, उसने गाकर किया, जिसे रचनात्मकता पसंद थी तो उसने कपड़ो पर कलाकारी करके विरोध किया. लेकिन भले ही तरीके अलग हो लेकिन भावना सबकी एक ही थी, सब भ्रष्टाचार के विरोध में ही खड़े थे.


    अगले दिन विरोध के सभी तरीके सुर्ख़ियों में आये लेकिन विरोध का एक तरीका ऐसा भी था जिसके खिलाफ कई आवाजें मीडिया में मुखर हुयी. युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी अपने कार्टून्स की प्रदर्शनी के माध्यम से भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे थे. जिसमे उन्होंने  प्रतीक चिन्हों और संसद के रूप में बनाये  अपने कार्टून्स के माध्यम से  उन्होंने देश की दुर्दशा  और  भ्रष्टाचार के असर को दिखाने की कोशिश की.  कई अखबारों ने इसे विरोध के एक माध्यम के रूप में दिखाया तो 'सामना' जैसे अखबार ने एक वकील की आवाज  में  इसके खिलाफ जहर भी उगला. कहा कि प्रतीक चिन्हों, संविधान और संसद का मजाक बनाकर संवैधानिक व्यवस्था का मजाक बनाया है. उन्होंने इसे भारतीय जनमानस की भावना को ठेस पहुँचाने वाला बताया और इसे बैन कर मुकदमा दर्ज करने की मांग की.

    पहली बात ये कि कार्टूनिस्ट एक कलाकार होता है और कार्टून का अर्थ ही मजाक के रूप  में अपनी बात कहना है और अगर वो विरोध करता है तो जाहिर सी बात है कार्टून के माध्यम से ही करेगा. दूसरी बात  क्यों कलाकार को एक कलाकार कि दृष्टि से नहीं देखा जाता? क्यों इन कार्टून्स को  सिर्फ एक विरोध के माध्यम के रूप में नहीं लिया गया? जब सब लोगों के विरोध को भ्रष्टाचार के विरोध में देखा गया तो क्यों एक कलाकार के विरोध को सीधे प्रतीकों के अपमान और जनभावना से जोड़ कर देखा गया. क्या कलाकार या कार्टूनिस्ट अपनी कला के माध्यम से विरोध या सत्य को परिलक्षित नहीं कर सकता? 


    अगर एक कलाकार ने भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नेताओं के हाथों हुयी देश और देश वासियों की दुर्दशा को प्रतीक चिन्हों और संसद के रूप में दिखाने का प्रयास किया तो क्यों इसे संवैधानिक अपमान से जोड़कर देखा गया इसे विरोध के रूप में भी लिया जा सकता था. अगर बात जनभावना को ठेस पहुचने की होती तो मुझे नहीं लगता कि वहाँ पर मौजूद लोग कार्टूनिस्ट असीम को वहाँ जीवित अवस्था में रहने देते. क्योकि जहां पर बात भावना और गुस्से कि होती है तो वहां पर लोग सही गलत कि सोचने कि नौबत ही नहीं आती है. जब वहाँ पर मौजूद लोगों को ने इसे जनभावना को ठेस पहुचाने वाला नहीं समझा तो क्यों कतिपय लोग इसे जनभावना को ठेस पहुचाने वाले कार्टून के रूप में प्रचारित कर रहे हैं.

    ये कोई पहली घटना नहीं है जब ऐसा किया गया है. पहले भी कई बार कलाकार को और उनकी कला को धर्म और जनभावना से जोड़कर उन्हें दबाने और कुचलने की कोशिश की है. इससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरीश यादव नाम के कार्टूनिस्ट जिनका इंदौर  के एक संध्या दैनिक में मुस्सविर नाम से कार्टून छपता था. उनके कार्टून को मुस्लिम धर्म से जोड़कर और खिलाफ बताकर इतनी यातनाएं दी कि वो डिप्रेशन का शिकार हो गया. दिवंगत चित्रकार एम्. ऍफ़. हुसैन को भी ऐसी ही मानसिकता से पीड़ित लोगो के वजह से देश छोड़ना पड़ा था. 

    इस बार भी असीम जैसे युवा कार्टूनिस्ट कि वेबसाइट कार्टून्स अगेंस्ट करप्शन  को बैन करके मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस बात पर मुहर लगा दी कि कार्टूनिस्ट या एक कलाकार के द्वारा किया गए विरोध को किस प्रकार से जनभावना और अपमान की मंशा से जोड़कर दबाने का कार्य कुछ चेहरों के माध्यम से किया जाता है जिनकी शक्लें हर कलाकार के विरोध के समय बदलती रहती हैं. जिन्हें जबरदस्ती अपमान की दृष्टि से प्रेरित बताकर प्रचारित किया जाता है.

    (The views expressed here are those of the author and do not necessarily reflect those of the Dakhalandazi or Bangalured.) 
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