Blog: Thinking नहीं free-thinking है जरूरी

Posted on
  • Tuesday, November 8, 2011

  • पाकिस्तान के आलू अंडे जैसे गाने की पापुलैरिटी को देखकर अगर हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वहां का यूथ भी अब गलत चीजों के खिलाफ आवाज उठाने में संकोच नहीं कर रहा है तो यह देखकर ही इस बात पर भरोसा कर लिया जाए कि राहत साहब या साना शकील इंडिया में किसी मायने में कम पापुलर नहीं है.

     
    Alok Dixit
    alok@dakhalandazi.com 

    आज के ब्लैकबेकी समाज में जब दुनिया 360 डिग्री मूव कर रही हो तो यह जरूरी है कि हम थिंकिंग से आगे निकल कर फ्री थिंकिंग की ओर रूख करें. हम अब सीमाओं और बन्धनों में रहकर विकास नहीं कर सकते. देश भक्ति के अब नए आयाम निकल कर सामने आने चाहिये. पाकिस्तान के आलू अंडे जैसे गाने की पापुलैरिटी को देखकर अगर हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वहां का यूथ भी अब गलत चीजों के खिलाफ आवाज उठाने में संकोच नहीं कर रहा है तो यह देखकर ही इस बात पर भरोसा कर लिया जाए कि राहत साहब या साना शकील इंडिया में किसी मायने में कम पापुलर नहीं है. 

    दुनिया भर मे आज आन्दोलनों की शुरूआत हो चुकी है. यमन में पालिटिकल सिस्टम को बदलने के लिये अगर लोग सड़क पर उतरे हैं तो लीबिया में एक कदम आगे बढ़ाते हुए उन्होने सिस्टम को ही उखाड़ फेका है. अमेरिका में ‘अकूपाई वाल स्ट्रीट’ ने दुनिया के दादा के मन में भी सिस्टम बदलने का खौफ पैदा किया है. अगर ‘स्लटवाक’के जरिये महिलाओं ने सारी दुनिया में पुरूषों की ‘मेल डोमिनेटिंग’ सोसाइटी को हिलाया तो सउदी अरब की ‘मनाल’ ने अकेले ही वहां की कंजरवेटिव गवर्नमेंट से विरोध कर ‘ड्राइविंग के सरकारी बैन’ का विरोध किया है.

    मेरा मानना है कि ऐसे सैकड़ों इक्जापल चाय की चुस्कियां लेते हुए गिनाए जा सकते हैं. कानपुर का शिक्षक पार्क हो या दिल्ली का रामलीला मैदान, चेंज हर मूवमेंट की बेसिक डेफेनिसन बना है. मैं आज भी जब ऐसिड अटैक, आनर किलिंग, रेप, मर्डर, रेसिज्म जैसी घिनौनी चीजों को देखता हूं तो लगता है मानों अभी अभी कोई अच्छा सपना देखकर उठा हूं और रिवोल्यूशन बदलाव जैसी बड़ी बड़ी बातें सिर्फ सपने में ही सच होने वाले ड्रीम्स की तरह लगने लगती हैं.  यकीन मानिये (यह मैं लिखने के लिये नहीं लिख रहा पर...) मैं खुद को कई बार चुटकियां काट कर भी देख लेता हूं. आखिर में सच का सामना होता है और फ्रस्टेसन से बाहर आने के बाद बस यही सोच पाता हूं कि हमे थिंकिंग की नहीं, फ्री थिंकिंग की जरूरत है. ‘फ्री थिंकिंग’ क्योंकि ‘थिंकिंग’ के बाद तो आप किसी का मर्डर या रेप कर सकते हैं ‘फ्री थिंकिग’ के बाद नहीं.

    (यह ब्लाग www.freethinkers.in के उ्द्घाटन समारोह के ठीक पहले लिखा गया था. 'फ्री थिंकर्स' के साथ जुड़ने और अपने विचार रखने के लिये आप दखलंदाजी के एडीटर Alok Dixit से alok@dakhalandazi पर कान्टैक्ट कर सकते हैं. )




    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!