आर्थेर रोड जेल जैसी जन्नत और कहाँ ?

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  • Tuesday, November 29, 2011
  • अगर यो कुछ दिन और ऐसे मज़े मारते गया तो वो दिन दूर नहीं की सारे आतंकवादी यही सोचकर ताज, ताजमहल और दस जनपथ उड़ाने लगे कि  मियां हिन्दुस्तान कि आर्थर जेल जैसी जन्नत और किस जिहाद मे? मरना तो है ही. जब तक राजनीति होगी मुर्गा और सुरक्षा मिलेगी ही और लटकने का नंबर भी बुढ़ापे मे आवेगा.
    Ashish Tiwari,
    Dakhalandazi.

                 मोहल्ले की चाय की दुकान की बात ही कुछ और होती है. कुछ न कुछ मसाला मिल ही जाता है सुनने को. कल चाय पीते हुए बगल वाले पंडित जी कहने लगे  कि-"लगता है राजयोग है इस कसाब का और लगता क्या मै दावे से कह सकता हूँ की ये राजयोगधारी आतंकवादी है. भला इतने बड़े आतंकवादी को सरकार ऐसे थोड़े ही दामाद बनाकर  करोड़ों रुपये फूँक रही है?  नहीं तो  देश मे गरीबों की संख्या थोड़े ही कम हो गयी है की वो इस तरह पैसे बर्बाद करे?  कुंडली भले न हो मेरे पास इसकी लेकिन लक्षण पूरे राजयोग वाले हैं इसके. वैसे भैया अगर कहीं से इसके जनम की तिथि और जानकारी मिल जाती तो हमारी लाइफ भी सेट हो जाती. सीधे कुंडली लेकर सबसे तेज़ चैनल पहुँचते और स्टूडियो मे बैठकर साबित कर देते कि देखो अद्भुत राजयोग वाला है ये कसाब. फिर ये तो हिट है ही इसके साथ चैनल भी हिट और हम भी."

               "अरे! छोड़िये पंडित जी अपनी पंडिताई जरा भगवान् के नाम का ही लिहाज़ कर लीजिये. जब देखो कुंडली के नाम पर अपना पेट देखते हैं. ये राजयोग का नहीं सत्तायोग का कमाल है." समाजसेवी पाण्डेय जी तपाक से बोले. १७५ लोग मरे थे पूरे. सबको कुल  मिलाकर साढ़े तेरह करोड़  का मुआवजा दिया गया था जिसमे भी ७ परिवार ने लेने  से मना कर दिया था. और यहाँ अकेले  कसाब के ही खातिरदारी और आराम मे  ३ सालों मे ५० करोड़ का खर्चा  आ  गया. अब बताओ डेढ़ करोड़ तो उसके सर्दी-जुखाम और बीमारी पर ही खर्च हो गए और यहाँ इलाज का खर्च सुनते ही दूसरी बीमारी पकड़ लेती है. आज के अखबार मे लिखा है  कि कसाब चिकन का शौक़ीन  है और महीने के खाने का खर्चा ही २७,५२० रुपये आता है. अब बताओ ये सत्ताधारी खुद तो टैक्स देंगे नहीं और हमारे टैक्स के पैसे से ही इन्हे खिलाएंगे. हमने तो ख्वाब मे भी नहीं सोचा कभी खाने के ऐसे खर्चे के बारे मे.

            " अरे जनाब इतना  ही नहीं!...इतने जवान तो उसको पकड़ने मे भी नहीं लगाये गए थे जितने कि उसकी सुरक्षा मे लगा दिए हैं." सेवानिवृत मेजर साहब भी कड़कती आवाज मे बोल पड़े. अब क्या हम इसलिए आर्मी मे थोड़े ही भर्ती होते हैं कि देश की बजाय इनकी सुरक्षा करे. २०० जवान कम नहीं होते एक आदमी की सुरक्षा के लिए. वो भी एक स्पेशल सेल मे जिसे बनाने मे ५ करोड़ खर्च हो गए. अरे मेरे हाथ मे होता तो पकड़ते ही गोली मार देता. अब तो पकिस्तान भी कह रहा है लटका दो उसे. फिर भी देखो न जाने कितना पैसा है सरकार के पास कि बहाए जा रही है, इसमे महंगाई नहीं दिखती.

             तभी बगल मे बैठे नाई कि आवाज आयी. अरे मियां  मै तो कह रहा हूँ की अगर यो कुछ दिन और ऐसे मज़े मारते गया तो वो दिन दूर नहीं की सारे आतंकवादी यही सोचकर ताज, ताजमहल और दस जनपथ उड़ाने लगे कि  मियां हिन्दुस्तान कि आर्थर जेल जैसी जन्नत और किस जिहाद मे? मरना तो है ही. जब तक राजनीति होगी मुर्गा और सुरक्षा मिलेगी ही और लटकने का नंबर भी बुढ़ापे मे आवेगा. हमसे पहले वैसे भी कसाब भाईजान और न जाने कितने हैं?

            ये सुनकर ही चायवाला, पंडित जी, समाजसेवी और मेजर साहब हंसने लगे और मै भी मुस्कुराते हुए चाय कि चुस्की के साथ हर वर्ष  की तरह  २६-११ के गुनाहगारों को कब मिलेगी सजा वाली खबर पर नज़र दौड़ाने लगा. 

      (Ashish Tiwari is a writer and journalist associated with Dakhalandazi. You can contact him at ashishtwr116@gmail.com )




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