जन चेतना यात्रा: भ्रस्टाचार के बहाने कुर्सी पर निशाना

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  • Sunday, November 20, 2011
  • उनकी यात्रा की एक और ख़ास बात रही भ्रष्टाचार की. कभी राम रथ  यात्रा करने वाले अडवाणी का टेस्ट  भी इस बार बदला दिखा. अन्ना के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलायी मुहीम कि तर्ज़ पर आडवानी ने इस यात्रा को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बताया.


    Ashish Tiwari
    ashishtwr116@gmail.com

    बीजेपी के आइरन मैन यानि लाल कृष्ण आडवानी की जन चेतना अर्थात सत्ता प्राप्ति चेतना यात्रा आखिरकार समाप्त हो गयी. इसे स्वार्थ की पराकाष्ठ की सीमा कहे या सच्चे बूढ़े की यात्रा जो इस बात के लिए अपनी यात्रा के आखिरी दिन तक कनफयूज रहा की वो क्या चाहता है?  अपना वजूद बचाना, प्रधानमंत्री की कुर्सी या फिर वास्तविक रूप से जन चेतना यात्रा.

         भले ही इसे केंद्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की रैली बताकर प्रचारित किया गया हो लेकिन पुरे यात्रा के दौरान ये साफ़ साफ़ दिखता रहा कि भ्रष्टाचार तो सिर्फ बहाना है मुझे तो कुर्सी पाना है, कि तर्ज़ पर काम होता गया. पूरी यात्रा के दौरान पूरे देश को उन्होंने अपनी आत्म कथा बयां कर दी. हालाँकि उन्होंने विवादित कथा जैसे उन्होंने जिन्ना कि तारीफ क्यों कर दी थी और बाबरी मस्जिद जैसे कथाक्रम का उल्लेख नहीं किया.  

        पूरे यात्रा के दौरान वो अपने किस्सा कहानियों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करते दिखे. शायद उम्र के इस पड़ाव में शायद एक ८४ साल के बूढ़े के पास सुनाने के लिए हो भी क्या सकता है?  बीच-बीच में अनंत कुमार जैसे व्यक्ति उन्हें जोश दिलाने के लिए अतिवाद करते हुए तारीफ के झूठे पुल बंधते रहे तो उनके किसी मुख्यमंत्री ने उन्हें श्रद्धांजलि तक दे दी.  बताओ अगर अडवाणी जी अगर जवान होते और सुन सकते तो, उन मुख्यमंत्री की क्या हालत होती? वैसे वहाँ  बैठे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के कुछ ईंट यानि पत्रकार भी इसे सुन कर भी सुन नहीं पाए क्योकि उस राज्य के मुख्यमंत्री के भोज का उधार कैसे चुकाते?

        उनकी यात्रा की एक और ख़ास बात रही भ्रष्टाचार की. कभी राम रथ  यात्रा करने वाले अडवाणी का टेस्ट  भी इस बार बदला दिखा. अन्ना के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलायी मुहीम कि तर्ज़ पर आडवानी ने इस यात्रा को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बताया. जिसे एक मात्र जन चेतना यत्र का अंश कहा जा सकता है. भ्रष्टाचार के मामले में उन्होंने बिहार से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस की जमकर उधेड़ी तो जरुर लेकिन देहरादून में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री निशंक जिन पर आरोपित  भ्रष्टाचारी  होने का लेबल लगा है मंच पर उनके साथ दिखाई दिए. लेकिन वे उनके कार्यकाल की तारीफ नहीं कर पाए. क्यों पता नहीं. शायद वो निशंक को येदुरप्पा से ज्यादा ईमानदार मानते हैं. अन्यथा वो उनसे  भी किनारा कर जाते. 

          उनकी पहली यात्रा ने जहां उन्हें एक कद्दावर नेता के रूप में स्थापित किया था. वही उनकी ये आखिरी यात्रा उनके लिए एक आखिरी उम्मीद की आश भर लगती है. वो इस यात्रा को अपनी सबसे महत्वपूर्ण यात्रा बताते रहे और कहते दिखे की मेरी अन्य यात्राओं की सफलता में पार्टी का सहयोग था लेकिन इस यात्रा की  सफलता का श्रेय लोगो को जाता है. इससे साफ़ हो जाता है की यात्रा आडवानी के लिए क्या मायने रखती है. 








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