‘तीसरे आदमी’ के संबंध में ब्रजकिशोर पटेल ने ‘देश खड़ा चैराहे पर’ में गंभीरतापूर्वक विचार किया है। पटेल उस ‘तीसरे आदमी’ को राजनीति के इर्द-गिर्द पाते हैं। संग्रह की कविताएं राजनीतिक होते हुए भी नैतिकता का सवाल उठाती हैं।

Akhilesh Shukla
प्रगतिशील विचारधारा के प्रमुख कवि नागार्जुन व्यंग्य के भी बेजोड़ कवि है। कबीर के बाद संभवतः वह दूसरे कवि हैं जिनके काव्य में व्यंग्य अपनी संवेदना की तीव्रता में उपजा है। उनके संबंध मे डा. नामवर सिंह ने लिखा है, ‘यह निर्विवाद है कि कबीर के बाद हिंदी कविता में नागार्जुन से बड़ा व्यंग्यकार अभी तक नहीं हुआ।’(भूमिका, प्रतिनिध कविताएं) उसी परंपरा के कवि श्री ब्रजकिशोर पटेल ने व्यंग्य के साथ हास्य का मिश्रण कर समाज को मथने का सफल प्रयास किया है।
उनकी कविताओं को धूमिल की कविता के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। धूमिल और ब्रजकिशोर पटेल की कविताओं में अनेक समानता होते हुए भी एक असमानता है। धूमिल की कविता जहां हदय की गहराईयों में समाकर विचारने के लिए विवश करती है वहीं पटेल की कविता हदय की गहराईयों से व्यंग्य के साथ-साथ हलका फुलका हास्य भी निकालती हैं।
धूमिल की कविता प्रमुख रूप से उस अकविता आंदोलन की उपज थी जिसने समाज की जड़ता, जर्जरता, विकृतियों, औ विडम्बनाओं को बाखूबी समझा था। धूमिल के अनुसार-
‘एक आदमी/रोटी बेलता है/एक आदमी रोटी खाता है/एक तीसरा आदमी भी है/जो न रोटी बेलता है/ न रोटी खाता है/वह सिर्फ रोटी से खेलता है/मैं पूछता हूं/यह तीसरा आदमी कौन है?/मेरे देश की संसद मौन है।’ (‘रोटी और संसद’-धूमिल)
ये कविताएं उस ‘तीसरे आदमी’ के साथ-साथ आमजन पर हो रहे अत्याचार, उत्पीड़न, अमानवीय व्यावहार को भी उजागर कर उनके समाधान की तरफ पाठक का ध्यान आकर्षित करती हैं। वे ‘देश खड़ा चैराहे पर’ शीर्षक कविता में लिखते हैं-
‘जब देखो तब
यही लफड़ा हो जाता है
चुनाव की घोषणा हुई नहीं
कि देश चैराहे पर खड़ा हो जाता है।’
पटेल उस ‘तीसरे आदमी’ की नैतिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए उसकी खोखली चिंता की पर्ते उतारते चलते हैं। यह कविता तीसरे आदमी के चाल-चेहरे और चरित्र पर को भी बेनकाब करती है।
‘कुर्सी की अभिलाषा’ कविता में वे लिखते हैं-
‘मुझे बनाकर काष्ठ शिल्पियों
उस पथ पर देना तुम फेंक
चुनाव क्षेत्र में बूथ लूटने
जिस पथ जाएं वीर अनेक’
श्री ब्रजकिशोर पटेल की कविताएं अनुभव का सृजन है। उनके अनुभव पहले शब्द बनते हैं फिर कविता का रूप लेते हैं। कविता में व्यंग्य के साथ हास्य का पुट उनकी अपनी विशिष्ट शैली है जो उन्हें आज के उनके समकालीन कवियों से अलग करती है।
‘भाई भतीजे’ कविता में वे लिखते हैं -
भाई-भतीजों के कारनामें
रंग लाए
मंत्री जी मंत्रीमंडल से
फुटपाथ पर उतर आए।’
उक्त कविता काव्य सौन्दर्य के जाल में न उलझकर सीधे-सीधे अपने शब्दों से प्रहार करती चलती है। इसमें उन्होंने रोज मर्रा की जिंदगी में प्रयोग में लाए जाने वाले शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है।
‘हरी बत्ती का सिगनल’, ‘कुण्ड़लियां’, ‘नेता की बीमारी’, ‘मतदान’ सहित संग्रह की सभी कविताएं उस ‘तीसरे आदमी’ के संबंध में आमजन की तरफ से सवाल कर उनके उत्तर भी सहज ही दे देती हैं। संग्रह पाठकों को हंसने गुदगुदाने के साथ-साथ गंभीरता पूर्वक विचारने का अवसर भी अवश्य ही प्रदान करेगा।
व्यंग्यकार: ब्रजकिशोर पटेल
प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स, 33 हरी नगर मेरठ 250.002
मूल्य : 40 रूपए
(Reviewer is a literary critic and editor of trimonthly magazine 'Katha Chakra')