काश की ये दिल एक बनिया होता..!

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  • Thursday, March 31, 2011


  • काश के ये दिल एक बनिया होता,
    हर सौदा इसका फायेदेमन्द होता |
    सस्ती बिकती है हर शे इस बाज़ार में,
    यही छपता इस दुकान के इश्तेहार में |
    हर किसी को दुख बेचने का मिलता न्योता,
    काश के ये दिल एक बनिया होता |



    सब रिश्ते तराज़ू में तौले जाते,
    बनते हर जज़्बात के बही खाते |
    लगते जब मोल इश्क़ के जुनून के,
    मिलते सिर्फ़ कुछ सिक्के ही खून के |
    ना कोई आँख से पानी के आँसू रोता,
    काश के ये दिल एक बनिया होता |


    दाम होते संग बीते सब दिन और रातों के,
    हँसी,आँसू,बिन मतलब के झगड़े,सब बातों के |
    चंद मुश्किलों के सामने पड़ जाते हल्के,
    कुछ तस्वीरें,बहुत से खत, ये सब मिलके |
    एक पलड़े में रख के बेचा जाता सब यादों को,
    साथ में दिया जाता मुफ़्त उन अधूरे वादों को |
    इन सब को बेच के मैं आराम से सोता,
    काश के ये दिल एक बनिया होता |


    ना दबा रहता दिल सपनों और ख्वाहिशों के बोझ में,



    बेच देता गम पुराने और निकल पड़ता नये की खोज में |
    ना तलाशता हमेशा संग रहने वाले वफ़ादारों को,
    सजाता रोज़ दुकान और बुलाता रोज़ नये खरीदारों को |
    धोखे में ना रहता खुद औरों को ठगा होता,
    काश के ये दिल एक बनिया होता |




    Gaurav Makol,



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