जश्न तन्हाई का न मनाऊँ तो क्या करूँ,
गीत गर्दिश के न गाऊं तो क्या करूँ.
हाथ में एक कलम थी वो भी छीन गयी,
फिर आंसुओं से कसक न सुनाऊं तो क्या करूँ.
अब तक कम किया था पर कुछ न मिला,
तो आंखें किस्मत पर न गड़ाऊँ तो क्या करूँ.
सारी सोयी हुयी आरजुएं फिर मचली हैं,
आरजुओं को फिर से न सुलाऊँ तो क्या करूँ