जश्न तन्हाई का...

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  • Saturday, January 22, 2011

  • जश्न तन्हाई का न मनाऊँ तो क्या करूँ,
    गीत गर्दिश के न गाऊं तो क्या करूँ.

    हाथ में एक कलम थी वो भी छीन गयी,
    फिर आंसुओं से कसक न सुनाऊं तो क्या करूँ.

    अब तक कम किया था पर कुछ न मिला,
    तो आंखें किस्मत पर न गड़ाऊँ तो क्या करूँ.

    सारी सोयी हुयी आरजुएं फिर मचली हैं,
    आरजुओं को फिर से न सुलाऊँ तो क्या करूँ
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