कितनो को दोस्त कहके तू ने यहाँ लूटा 'कि , अब रहा किसी का तुझ पर विश्वास भी नहीं

Posted on
  • Tuesday, December 14, 2010

  • तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं
    उगते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं

    दोस्ती कि कितनी झूठी दुहाई दोगे' के
    अब दोस्ती के तू आस पास भी नहीं

    कितनो को दोस्त कहके तू ने यहाँ लूटा 'कि
    अब रहा किसी का तुझ पर विश्वास भी नहीं

    कब तक गिनाते रहोगे वो एक एहसान अपना'कि
    'मनी'इनको होगा कभी इसका एहसास भी नहीं

    तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं
    गते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं
    '''''''''''''''''''''''मनीष शुक्ल

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