कौन हूँ मै,
कौन ठौर ठिकाना,
कौन मेरा अपना है,
और किसे कहूं बेगाना.
अब तो बस मै हूँ,
और मेरी तनहाइयाँ
मेरे गम है,
और ज़माने की रुस्वाइयाँ
हँस के, मुस्कुरा के,
अपने ग़मों को छुपा के,
जज़्बातों को दबा,
जाम दर जाम पिए जा रही हूँ,
ज़िन्दगी बस यूँ ही जिए जा रही हूँ,
दिल की दरार सिये जा रही हूँ,
मौत का इंतज़ार किये जा रही हूँ...