*******तेरे नपुंसक क़ानून के चलते, जेल मैं मजे उडाता हूँ

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  • Sunday, October 31, 2010
  • न्याय की अंधी देवी, तुझको श्रद्धा सुमन चढाता हूँ,
    तेरी वन्दना नित करता हूँ, तेरे चरणों शीस झुकाता हूँ .........

    सरे आम चौराहों पर, मुझे करते कत्ल नही लगता डर,
    तू उतना ही देखती बस, जितना तुझे दिखाता हूँ .........

    मैं अपहरण करता, डाके डालता, करता चोरी बलात्कार,
    तेरी कमजोरी से ताकत ले, नित नई कलियाँ रोंदे जाता हूँ.........
     
    तू अंधी ये बात अलग, पर तेरे सेवक भी बिकाऊ हैं,
    इसी का फायदा उठा तेरे घर, बेखटके घुस आता हूँ .........

    तारीखे बस तारीखे, कुछ बिगड़ेगा नही मैं जानता हूँ,
    कर २६/११ सरेआम, लोगों को, मौत की नींद सुलाता हूँ .........

    लाखों खुली आँखों पर, तेरे बंद दो नैना भरी हैं,
    तेरी अन्धता के चलते ही, नित नये पाप कर पाता हूँ .........

    हेमंत करकरे जैसों को, सरेआम मौत मैंने दी है,
    तेरे नपुंसक क़ानून के चलते, जेल मैं मजे उडाता हूँ .........
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    दखलंदाज़ी जारी रहे..!