बहुत भूखा हुं मैं……!!

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  • Wednesday, May 12, 2010
  • बहुत भूखा हूँ मैं/इस धरती का सारा अन्न/मेरे पेट में झोंक दो...
    उफ़ मगर मेरी भूख मिटने को ही नहीं आती !
    हर भूखे का हर निवाला भी मुझे खिला दो...
    शायद तब कुछ चैन मिले इस पेट को....
    मेरे जिस्म का बहुत सा हिस्सा अभी भी भूखा है
    ये झरने-नदी-तालाब-पहाड़-जंगल-धरती-आसमान
    ये सब के सब मुझे सौंप दो.....
    हाँ,अब जिस्म की हरारत को कुछ सुकून मिला है !!
    अब तनिक मेरे जिस्म को आराम करने दो...
    उफ़!!यह क्या ??अब मेरे जिस्म में...
    कोई और आग भी जाग उठी है....
    उसे मिटाने का कोई उपाय करो...
    खूब सारी स्त्रियाँ लाओ मेरे जिस्म की तृप्ति के लिए...
    अरे इतनी-सी स्त्रियों से मेरा क्या होगा....
    देखते नहीं कि अभी-अभी मैंने कितना कुछ खाया है !!
    जवान-प्रौढ़-वृद्ध-बच्चियां-शिशु सब-की-सब....
    दुनिया की सारी मादाएं लाकर मेरी गोद(जांघ)में डाल दो....
    एय !!कोई एक पैसे को भी हाथ नहीं लगाएगा....
    संसार का समूचा धन सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है...
    दुनिया के सब लोगों का सब कुछ लाकर मुझे दे दो....
    असंख्य प्राणियों की समूची हंसी मेरे होठों को दे दो...
    मुझे तुम सबसे कोई मतलब नहीं ओ धरती-वासियों !!
    चाहो तो मर जाओ तुम सब अभी की अभी....
    तुम नहीं जानते कि कितना-कितना-कितना भूखा हूँ मैं...
    उफ़!!मेरी ये भूख मिट क्यों नहीं रही.....??
    दो-दो-दो-दो.....मुझे अपना सब कुछ मुझे दे दो....
    अंतहीन है यह मेरी पिपासा....अनंत है मेरी यह भूख...
    उफ़!!मैं किस तरह अपनी भूख को थामूं....??
    उफ़!!किस तरह से मुझ जैसे भूखों को....
    इस पृथ्वी ने थामा हुआ है......???
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