Bura jo dekhan mai chala...

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  • Sunday, April 25, 2010
  • आज शाम को एक फिल्म देख रही थी....फिल्म के अंत संत कबीर के एक दोहे से करा गया था...दोहा था -

    बुरा जो देखन मै चला, बुरा ना मिलया कोई,
    जो मनखोजा आपना, तो मुझसे बुरा ना कोय

    फिल्म तो ख़त्म हो गयी पर मुझे सोचने का एक विषय मिल गया...एक विद्यवान द्वारा कही गयी बात कितनी सार्थक है. आज के जीवन में जहाँ प्रतिस्पर्धा अपनी चरम सीमा पर है . जीवन में करी गयी एक गलती भी बहुत ही घातक परिणाम दे सकती है. ऐसे समय में दूसरों को अपनी गलतियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराना अपने को बचाने का सबसे सरल उपाय बन गया है.           
                         जनता देश कि हालत के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहरती है, सरकार विपक्ष को...और विपक्ष सारा ठीकरा वापस सरकार के सर पर फोड़  देती है, यह कह कर कि सरकार अपना काम ही नहीं करना चाहती...समस्या चाहे गरीबी कि हो, भ्रष्टाचार कि या कोई और सबके पास कोई ना कोई जवाब है....पर यदि हम सच्चे ह्रदय से सोचे तो हम पाएंगे कि गलतियाँ सभी में है पर ना तो कोई अपनी गलती मानना चाहता है और ना सुधारना. 
                         जनता अपना धन बचाने के लिए टैक्स जमा नहीं करती. जिनके पास पैसा है वह निरंतर प्रयास करते है कि उनके पास और पैसा आए...जमींदार किसानो को , फैक्ट्री मालिक मजदूरों को शोषित कर अपनी जेबें भरती रहती हैं.सरकार कि नीतियां ऐसी होती हैं जिनके कारण गरीबों  कि गरीबी और अमीरों कि अमीरी के बीच कि खाई लगातार बढती ही जा रही है. राज्य सरकार केंद्र को कोसती है...और सत्ताधारी तथा विपक्ष एक दुसरे पर कीचड उछालते रहते हैं...किसी को भी आम आदमी कि चिंता नहीं. सब अपना फायदा सोचते है, पर ज़िम्मेदार हमेशा कोई और ही होता है . सबका एक मात्र लक्ष्य है अपनी जेब गरम करना. लालच ही वह कारण है जिसकी वजह से आज हमारे देश कि गिनती दुनिया के भ्रष्टतम देशों में होती है...तोपों से लेकर चारा कुछ भी नहीं बचा है. बाबु से ले कर अफसर सब जनता कि मेहनत कि कमाई को आग में झोंक अपनी रोटियां सेकना चाहते है. यही कारण है कि कोई भी घपला जल्दी नहीं पकड़ा जाता. अपनी गलतियाँ छुपायी जाती है और पकडे जाने पर दोष दूसरे के सर... 
                         सिर्फ बड़े नहीं अब तो बच्चे भी इस बीमारी कि चपेट में आ गए है...गेंद किसने फेकी? लडाई किसने कि? खिलौना किसने तोडा  ? सब सवालो का एक जवाब "उसने"... सच बोलूँ तो मै भी अब तक इस बीमारी का शिकार थी. पर एक फ्लॉप फिल्म के अंत में बोले गए इस दोहे ने मेरी आँखें खोल दी हैं. और मैं प्रण लेती हूँ कि आज से कभी भी किसी को अपनी गलती का ज़िम्मेदार नहीं ठहराउंगी. क्यूंकि आज जब मै अपने आस पास देखती हूँ तो मुझे सभी सच्चे लगते हैं अपने सिवा...किसी में कोई बुराई नहीं मेरे आलावा. 
                         मैंने आज का पाठ सीख लिया है. आशा है आप लोग भी मेरी बात समझ पाएंगे. 
                       
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