अच्छा मजाक है न ये ?

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  • Monday, April 26, 2010

  • देखिये जी मै तो बड़ा आशावादी हूँ , मै मानता हूँ कि अभी दुनिया अच्छे से चल रही है , दुनिया को फिर क्यूँ कोसा जाये
    सब सही हो सकता है भाइयों अभी कुछ भी बुरा नहीं हुआ है



    अच्छा मजाक है न ये ?
    मुझे अनुराधा जी का लेख बड़ा पसंद आया . अनुराधा जी के लेख के जवाब में मै प्रियंकर की एक कविता पोस्ट कर रहा हूँ जरा गौर करे

    सबसे बुरा दिन



    सबसे बुरा दिन वह होगा

    जब कई प्रकाशवर्ष दूर से

    सूरज भेज देगा

    ‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल

    यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा



    पृथ्वी मांग लेगी

    अपने नमक का मोल

    मौका नहीं देगी

    किसी भी गलती को सुधारने का

    क्रोध में कांपती हुई कह देगी

    जाओ तुम्हारी लीज़ खत्म हुई

    यह भारत के भुज बनने का समय होगा



    सबसे बुरा दिन वह होगा

    जब नदी लागू कर देगी नया विधान

    कि अबसे सभ्यताएं

    अनुज्ञापत्र के पश्चात ही विकसित हो सकेंगी

    अधिकृत सभ्यता-नियोजक ही

    मंजूर करेंगे बसावट और

    वैचारिक बुनावट के मानचित्र

    यह नवप्रवर्तन की नसबंदी का दिन होगा



    भारत और पाकिस्तान के बीच

    विवाद का नया विषय होगा

    सहस्राब्दियों से बाकी

    सिंधु सभ्यता के नगरों को आपूर्त

    जल के शुल्क का भुगतान



    मुद्रा कोष के संपेरों की बीन पर

    फन हिलाएंगी खस्ताहाल बहरी सरकारें

    राष्ट्रीय गीतों की धुन तैयार करेंगे

    विश्व बैंक के पेशेवर संगीतकार

    आर्थिक कीर्तन के कोलाहल की पृष्ठभूमि में

    यह बंदरबांट के नियम का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा



    शास्त्र हर हाल में

    आशा की कविता के पक्ष में है

    सत्ता और संपादक को सलामी के पश्चात

    कवि को सुहाता है करुणा का धंधा

    विज्ञापन युग में कविता और ‘कॉपीराइटिंग’ की

    गहन अंतर्क्रिया के पश्चात

    जन्म लेगी ‘विज्ञ कविता’

    यह नई विधा के जन्म पर सोहर गाने का दिन होगा



    सबसे बुरा दिन वह होगा

    जब जुड़वां भाई

    भूल जाएगा मेरा जन्म दिन

    यह विश्वग्राम की

    नव-नागरिक-निर्माण-परियोजना का अंतिम चरण होगा ।
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