क्रिकेट में अब वो बात कहाँ..?

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  • Thursday, April 29, 2010

  •                   आप सभी जानते है कोच्ची के बारे में. पहले कोच्ची का एक गौरव था. जब स्वामी विवेकानंद ने अपने चिकागो भाषण में हमारे देश के बारे में कहा था उसमे उन्होंने यहूदियों को आश्रय देने वाला पहला देशा कहा कर ज़िक्र किया था. AD १५१४ में कोच्ची में यहूदी क्रंगानूर (Kodungallur, near Kochi, Kerala) se aakar bas gaye the. सभी मतावलंबीयों को आश्रय देने वाला प्रान्त था कोच्ची. जहां मैं रहता हूँ वहां १ की.मी. के आसपास २४ से अधिक तरह के प्रदेश और जाती के लोग, जैसे कि मलयाली, कोंकणी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिंदी, कन्नड़, तेलगु, बंगाली etc , और उनके जात प्राजात के लोग. हिन्दू, जैन, मुसलमान, क्रीस्त, etc., रहते है.

    आप सभी सोचते होंगे कि क्यों मैं कोच्ची के बारे में यहाँ लिख रहा हूँ. एक सम्माननीय आदमी जो यु. एन. तक जाकर वहाँ उच्च पद तक छूकर भारत आया और यहाँ का मंत्री बन गया . मंत्री का काम क्या है? देश की सेवा करना... है ना? मैं मंत्री बना गया तो राष्ट्र के हित में जो बात गुप्त रखनी पड़ती है वो सब बातें दखलअंदाजी में आकर नहीं लिखूँगा ना. उन्होंने सब मज़ाक समझा. वे सबकुछ ब्लॉग पे लिख लिया और खुद आकर पाहस गए. वो एक बात हुई. दूसरी हुई आई.पी.एल. में दखलंदाजी देना.

    मैं पहले से ही क्रिकट का एक बहुत बड़ा फान रहा हूँ. जब ब्लाक & वैट का ज़माना था उस समय, पास के ग्रंथालय जाकर अन्य कार्यक्रम और माच है तो दिन भर बैठकर क्रिकट देखता था. एक राष्ट्रप्रेम था पहले के खेलों में. भारत जब हारता था तो दर्शकों के आँखों में पानी भर जाता था. जीत गया तो गांव भर जश्न सा माहौल था. आज यहाँ बैठकर उसका बयान मैं नहीं कर सकता और मुझे नहीं लगता कोई उसे समझ भी सकता है. अस्सी में (मुझे उतना याद नहीं) मेरे भैया के एक दोस्त के पास छोटा सा रेडियो था वो कान में रखा कर हम सब सुनते थे, तब दो बल्लेबाज़ एक साथ कैसे रन बना लेते हैं ओह भी पता नहीं चलता था. जब श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु हुई थी तभी मैं ने पहले और टेलिविज़न अछी तरह बैठकर देखी थी.

    समय के साथ साथ खिलाड़ियों को भी देशप्रेम तथा खेल से लगाव जाता रहा. तब भी और अब भी मात्र एक तेंदुलकर को ही देखा रहे है जैसे की लगता है मात्र वोही खेल के लिए जन्मे है. कुछ भी हो लगने लगे की सभी पैसे के लिए खेल रहे है. फिर पिच में कम विज्ञापनों में ज़्यादा दिखने लगे. फिर आया आई.पी.एल. मंडी (यहां पैसों की मंदी नहीं है... चारों और पैसों का बौछार है). मंडी में खिलाड़ी बैलों की तरह (बल्लेबाज़ से बैल बन गए) बिकने लगे. खेल की जगह गुड दौड़ ज़्यादा हुआ. जो छीप छीप कर सट्टे बाजारी होती थी वोह रोशनी में आकर होने लगी. उसमे मंत्री गन भी शामिल हो गए.

    अपने शहरे के लिए दूसरे देशों से आकर खेलने लगे. जैसे की यदी कोच्ची में हुआ तो पाकिस्तान का कोई खिलाड़ी या आस्ट्रेलिया का कोई बल्लेबाज़ आकर दूसरे टीमों से भिड़ेगा. दूसरे टीम में मेरे ही शहर के क्रिकटर होगा. मेरे शहर को जितवाने के लिए में ऑस्ट्रेलियी बल्लेबाज़ को ज़िंदा बाद कहना पडेगा. वोही आदमी दिनों पहले मेरे ही शहर में आकर भारतीय खिलाड़ियों को मुक्का मारकर गया होगा. यह ही रखा है या और कुछ बाक़ी है?

    क्या है यह सब? कहां गया पुराना वोह खेल? वोह वापज़ आयेगा की नहीं. मैं आई.पी.एल के खिलाफ नहीं. पर, मेरा कोच यही है की हरेक का सपना अपने ही देश के लिए लड़ना या खेलना होना चाहिए. तभी देखने में खुशी होती है. जब मेरे देश के नौजवान दूसरे देश जाकर उस देश का गौरव बढ़ाते है तब देखकर खुशी के बजाय उखा ही होता है. हमारे देश को आगे बढाना देशवासियों का ही कर्त्तव्य होता है ना की दूसरे देश के लोगों के. अब खेल से लेकर सभी स्तरों में जो दिख रहा है वो अछी सूचना नही देता.


    जय हिंद,

    बालकृष्ण मल्या
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    दखलंदाज़ी जारी रहे..!