अब क्रिकेट का भगवान् भला करे.....!

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  • Thursday, April 22, 2010

  • आई.पी.एल.;यह जो एक शब्द है,जिसने फिलवक्त भारतीय क्रिकेट में ऐसी धूम मचाई हुई है कि क्रिकेट-प्रेमी शायद विश्व कप से भी ज्यादा इसके दीवाने हो गए हैं,एक बोरिंग टेस्ट-क्रिकेट पहले फ़टाफ़ट एकदिनी मैच प्रतियोगिता से लेकर अब विस्फोठकिया और धुआंधार २०/२० क्रिकेट मैच प्रतियोगिता और २०/२० ही विश्व कप प्रतियोगिता के रूप में कम से कम भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को भयंकर रूप से लुभा रहा है.क्रिकेट के इस संस्करण की खास बात यह है कि इसमें लबालब मनोरंजन,ग्लैमर,रोमांच और अथाह पैसा है,बल्कि पैसे की गंगा बह रही है इस क्रिकेट में….…बडे-बडे उद्योगपति,कलाकार,ठेकेदार और इस किस्म की दुनिया के बडे-बडे धंधेबाज लोग इस गंगा को बहा रहे हैं और फ़िर इसी गंगा में हाथ भी धो रहे हैं, इस क्रिकेट के इन बडे-बडे धंधेबाज अपना काम-धाम छोड्कर क्रिकेट के मैदान पर काबिज हैं अपने प्रेमी खिलाडियों का हौसला बढाने के लिये,जहां वे हौसला-आफ़जायी में लगे हुए तो हैं ही साथ-ही-साथ और क्या-क्या आफ़जायी कर रहे हैं,यह क्रिकेट प्रेमियों को कतई नहीं पता,या पता चल भी जाये तो क्या…उन्हें तो टिकट के वसूल हो ही जा रहे हैं,फ़िर जब किसी चीज़ में मनोरंजन का तत्व जुड जाता है तो फ़िर सौ खून तो यूं भी माफ़ हैं !!
    आई पी एल शुद्द रूप से पैसे और पैसे का ही खेल है,क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो बडे-बडे सूरमाओं को क्या किसी पागल कुत्ते ने काटा है जो हराम में अपने समय एवम धन का अपव्यय करेंगे !!सीधी-सी बात है,धंधा है और धंधा बडा ही चंगा है…!!खिलाडियों की भी इस धंधे में चांदी हो गयी है,प्रायोजकों और मीडिया और अन्य प्रसारणकर्ताओं की पौ-बारह हो गयी है यहां तक कि जिन खिलाडियों को कोई कुत्ता भी नहीं पूछ्ता था वो भी करोडों में खेल रहे हैं सच तो यह है कि ऐसे खिलाडी तो शायद देश के लिये खेलने को इच्छुक भी नहीं दिखाई पड्ते…साल भर खेल कर भी जितना ना आ सके उससे ज्यादा धन दो महीने के मनोरंजन में आ जा रहा है…इससे अच्छा और क्या धंधा होगा,जिसमें काम की गारंटी के बगैर ही वेतन मिल जाता होओ;ये तो एक किस्म का नरेगा [पी एम रोजगार कार्यक्रम] ही हुआ ??
    अभी-अभी जो आई पी एल विवाद का ट्रेलर देश के सम्मुख होकर गुजरा है, सिर्फ़ उसी से पूरी फ़िल्म की बानगी मिल जाती है,अवैध संबंध,अनैतिकता,भ्रष्टाचार,गोटी-सेटिंग,शाम-दाम-दंड-भेद और पैसे के वीभत्स खेल का एक अतुलनीय नजारा है यह !!…इतने सब के बीच अगर थोडा सा क्रिकेट भी जा रहा है तो इसमें ऐसी कोई खास बात भी नहीं,आखिर यह सब क्रिकेट के पीछे ही तो हो रहा है,सो कुछ खिलाडी तो मैदान मे आयेंगे ही और थोडा बहुत क्रिकेट भी होगा ही…और जो वे चौके-छक्के उडाएंगे तो अधनंगी चीयर बालाएं[क्या पता अगले बरस पूरी नंगी ही होकर आ जायें,आँन पब्लिक डिमांड,पब्लिक आखिर पैसे खर्च करके जो आयी है और ये पब्लिक है सब “मांगती” है]मैदान में आकर नाचेंगी ही[क्या पता अगले बरस तक पिच तक आकर खिलाडियों को बांहो में ले-लेकर चुमा-चाटी करके उनकी हौसला-आफ़जाई करें]और मामला और भी गरमाता दिखे तो दर्शकों को भी कुछ गरमा-गरम सीन ही दिखला दें !!
    दरअसल कोई भी दो चीज़ें एक साथ नहीं होती हैं और अगर जबरन एक साथ की जाती हैं तो उसका परिणाम किसी और ही रूप में सामने आता है,वह रूप सुंदर भी हो सकता है या फ़िर विद्रूप भी,आई पी एल एक ऐसी ही घट्ना ना है यह क्रिकेट का विरूप- विद्रूप दोनों ही है जिससे खेल का कुछ भला हो ना हो.…खिलाडियों और धंधेबाजों का खूब-खूब-खूब भला होने को है,हो रहा है,होता रहेगा…जैसे कमाऊ पूत की लात भी भली,वैसे ही पैसे के इस मायाविनी संस्करण की विडंबना भी भली…पैसा सब कुछ को तहस-नहस कर देता है…और आज भलेमानूषों का क्रिकेट भी इसकी नापाक जद में आ गया है भगवान इसका भला करे…!!
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