इलाही खैर ! वो हरदम नई बेदाद करते हैं
हमें तोहमत लगाते हैं जो हम फ़रियाद करते हैं
कभी आजाद करते हैं कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं
असीराने-कफस से काश यह सैय्याद कह देता
रहो आजाद होकर हम तुम्हे आजाद करते हैं
रहा करता है अहले- गम को क्या-क्या इन्तजार इस का
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं
यह कह-कहकर बसर की उम्र हमने कैदे-उल्फत में
वो अब आजाद करते हैं , वो अब आजाद करते हैं
सितम ऐसा नहीं देखा , जफा ऐसी नहीं देखी
वो चुप रहने को कहते हैं जो हम फ़रियाद करते है
कोई बिस्मिल बनाता है जो मक्तल में हमें "बिस्मिल"
जो हम डरकर दबी आवाज से फ़रियाद करते हैं
यह अच्छी बात नहीं होती , यह अच्छी बात नहीं करते
हमें बेकस समझकर आप क्यों बर्बाद करते हैं
- रामप्रसाद 'बिस्मिल'