हर साल बच्चों के सिलेबस बदल जाते हैं. तो तंग होकर बच्चों ने इस बार अपने कालेज में कुछ बदलाव की मांग
की है... उनकी डिमांड को मै अपनी कविता के ज़रिये संसद भवन में रखने की कोशिश करूँगा...............
बदल चुका है युग यह अब तो अध्ययन बदलो वरना ...
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना....
बहुत हो चुका ज्ञान विज्ञान और ये पूरा इतिहास
पढ़ पढकर ये हिंदी मारी अब तो भए उदास
फ़िल्मी हो किताबें सारी ऐसा विषय लगाओ
हीरो और हिरोइन को लेकर नये नये पाठ बनाओ
फ़िल्में इनकी दिखाकर हमको समझाया तुम करना
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना
...
गबन और गोदान की तो हैं बातें बहुत पुरानी
गर्लफ्रेंड और मर्डर के जैसी लिखना एक कहानी
ज्योति जवाहर हो राही की या बच्चन की मधुशाला
लाइब्रेरी में रखवा के इनको लगवाना एक ताला
बूढा हो चुका है साहित्य इसको अब है मरना
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना...
प्रेमचंद और तुलसी के जीवन से क्या है काम
मल्लिका और बिपाशा का बस रटते दिन भर नाम
सूरदास के सूरसागर को अब तो भूल भी जाओ
मोनिका और बिल क्लिंटन का प्रेम कांड मंगवाओ
इश्क विश्क में बी एड हो जो ऐसा टीचर रखना
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना...
एक रंग के यूनिफार्म से होती हमको टेंशन
छोटे छोटे कपडे अब तो लम्बे बाल का फैशन
युग पुरुष ना सिद्ध पुरुष ना बनना हमको नेता
मिलिंद सोमन सा मोडल बनना शाहरुख़ सा अभिनेता
बालीवुड से हालीवुड तक हमको आगे बढ़ना
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना...
सुबह सवेरे आते ही हम डीजे बंद बजाएं
महापुरुषों के जन्मदिवस पर दैय्या दैय्या गायें
जिसको जब जब फुर्सत हो वो तब तब कालेज आये
स्टुडेंट को दिक्कत हो तो टीचर घर घर जाये
इतने पर तुम राज़ी हो तो फार्म मेरा भरना
इसी बात पर लगा हुआ है कालेजों में धरना...
अनिरुद्ध मदेशिया

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