"अर्थात युगांतर का मूल्य फिरंगी का तुरंत ताजा काटा हुआ सर है""युगान्तरेर मूल्य - फिरंगिर कांचा माथा "
स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय अपनी प्रखर पत्रकारिता से फिरंगी सरकार को आक्रान्त कर देने वाले "युगांतर " की ये पंक्तियाँ कुछ दिनों पहले उस समय मुझे बरबस याद हो आईं , जब मीडिया मुग़ल 'नेट' पर उपलब्ध "उच्च गुणवत्ता" (?) वाली खबरों का मूल्य बताने में जुटे थे |
माना कि आज कि परिस्थितियों की तुलना १०० वर्ष पूर्व की परिस्थितियों से नहीं की जा सकती, इस अवधि के दौरान पत्रकारिता में मिशन के साथ - साथ व्यवसायिकता का पुट भी आ गया है, मंहगाई के इस दौर में "गुणवत्ता युक्त सूचनाओं" की लागत भी स्वाभाविक रूप से बढ़ी है, ........लेकिन क्या इसके बाद भी यह सारे तर्क पाठकों से खबर का मूल्य वसूलने के लिए पर्याप्त मान लेने जाने चाहिए ? या फिर माना जाना चाहिए कि वास्तविकता में यह प्रयास सूचना की लागत से जुडा न होकर , कमाई का एक और रास्ता खोलने से सम्बंधित है | तो क्या यह भी मान लेना चाहिए कि पत्रकारिता का मूल्य उद्देश्य- 'मिशन' , 'प्रोफेशन' की गहरी खाई में कहीं दफ़न हो गया है ?
बिलकुल नहीं ! वर्तमान समय में भी विशेषकर "प्रिंट मीडिया" लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन पूरी ईमानदारी से कर रहा है | अत ; तथाकथित "मीडिया मुग़ल महोदय" और दर्शकों -पाठकों से खबरों का मूल्य वसूलने को आतुर उनके साथियों को प्रिंट मीडिया से सीख लेनी चाहिए , जो मुद्रण लगत में अत्यधिक बढ़ोत्तरी होने के बाद भी पाठकों को "उच्च गुणवत्ता युक्त ' खबरें उपलब्ध करवा रहा है |
और आज जब स्वतंत्रता प्राप्ति के ६२ वर्षों पश्चात हम लक्ष्य २०२० तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने कि दिशा में कार्य कर रहे हैं , तो ऐसे समय में अशिक्षा , भ्रष्टाचार गरीबी , कुरीतियों , को दूर करने में सहायक सूचना माध्यमों कि भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है |
अत: ऐसे प्रयास न सिर्फ जन को सूचना से दूर करने वाले सिद्ध होंगे , बल्कि भारत को एक महाशक्ति के तौर पर स्थापित करने में मीडिया के मार्ग में रोड़े डालने वाले होंगे |