वैसे गृहमंत्री के ग्रह आज कल सही नहीं चल रहे. लेकिन २ जी घोटाले और दिल्ली में एक होटल व्यवसायी की वकालत ने उन्हें तिहाड़ के अलावा और कहीं का नहीं छोड़ा. विपक्ष ने उनका जो महिमामंडन किया है, वो समाचारों की सुर्खिया बन चुका है.
Ashish Tiwari,
ashishtwr116@gmail.com
आजकल एक लूंगीधारी, सरकारी वकील बड़े परेशान है. लोग कह रहे है कि आजकल उन्हें सपने में एक गाना सुनाई दे रहा है. "आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार रे...आजा...आजा...." और ये गाने कि आवाज उन्हें तिहाड़ से सुनाई दे रही है और आवाज किसी अनजाने कि नहीं बल्कि २ जी घोटाले के राजा कि आवाज है.
मुझे इस बात पर यकीन तो नहीं हुआ लेकिन इतना जरुर है कि कनिमोझी कि बेल के बाद वो बहुत बोर हो रहे होंगे और ऊपर वाले से यही प्राथना कर रहे होंगे कि मेरे साथ इतना अन्याय क्यों मै तिहाड़ और वो दस जनपथ में क्यों? खैर ऊपर वाले ने उनकी सुन ही ली और अगर दस जनपथ को बलि कि जरुरत हुयी तो अपने परिवार और पार्टी को कलंक से बचने के लिए तो निश्चित रूप से चिदम्बरम भी संसद में साथ देने के बाद तिहाड़ में उनका साथ देंगे.
वैसे गृहमंत्री के ग्रह आज कल सही नहीं चल रहे. लेकिन २ जी घोटाले और दिल्ली में एक होटल व्यवसायी की वकालत ने उन्हें तिहाड़ के अलावा और कहीं का नहीं छोड़ा. विपक्ष ने उनका जो महिमामंडन किया है, वो समाचारों की सुर्खिया बन चुका है. उनके इस्तीफे की मांग हो रही है. ये मांग जायज भी लगती है क्योकि कोई ये नहीं चाहेगा का कि गृहमंत्रालय जैसा पद कोई भ्रष्टाचार का आरोपी संभाले.
लेकिन इन सबके बीच किसी चीज़ की बू आ रही है. कई चीजें हैं जो सवाल खड़ा करती है. पहला ये कि क्या ये मुद्दा अचानक से संसद में आया है या फिर ऐसा मुद्दा है, जिसे कभी न कभी आना था, इसलिए अभी ही क्यों न आ जाए इसलिए सरकार द्वारा जानबूझकर लाया गया है.
दरअसल ठण्ड की इस संसद सत्र में पहले 15 दिन ऍफ़ डी आई का मुद्दा छाया और संसद ठप रही. ये हर कोई जनता है कि ये ऐसा मुद्दा था जिस पर विपक्ष कभी सहमत नहीं होता. जिस पर भविष्य में भी चर्चा हो सकती थी. उसके बाद कुछ दिन लग गए लोकपाल के ड्राफ्ट को संसद में रखने में जिसे सरकारी वकील सिघवी ने ऐसा तैयार किया था कि उस पर चार दिन बयानों में ही निकल गए. संसद में क्या हो रहा है से ज्यादा सबका ध्यान इस पर रहा कि अन्ना क्या बोले? सरकार भी बयानबाज़ी में आ गए और विपक्ष भी. उसके बाद एक दिन कटा अन्ना और सभी विपक्षी दलों के साझा सांकेतिक धरने में. जिस पर भी अगले दो दिनों तक कयास और बयानबाज़ी ही चलती रही. एक दो दिन संसद में विपक्ष और सत्ता पक्ष ने कुछ चर्चा और बैठक तो कि लेकिन ये सभी जानते हैं कि अगर ये इतनी बातचीत से मसला सुलझता तो इतना बवाल ही क्यों होता? उस पर मामला अटका ही था कि अब चिदम्बरम के मामले ने संसद में हड़ताल शुरू करवा दी.
अगर सीधी बात कि जाये तो आम आदमी कि नज़र में दो बातों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था. पहला महंगाई, दूसरा, लोकपाल. जिस पर देश कि नज़रे थी. लेकिन महंगाई पर कितनी चर्चा हुयी और संसद भंग हुयी ये सब जानते हैं. लोकपाल पर कितनी चर्चा हुयी ये भी साफ़ दिख गया है.
ये चीजें साफ़ करती है कि संसद लोकपाल के लिए कितनी चिंतित है. साफ़ सपष्ट होता है कि सरकार लोकपाल के मुद्दे को या तो गोलमोल घुमाना चाह रही है या फिर उसे आखिरी दिनों में एक अपंग लोकपाल के रूप में लाकर इसकी इतिश्री करना चाह रही है. वो चाहती है कि अगर एक बार उनका लोकपाल किसी भी तरह पारित हो जाये ताकि जनता से कह सके हमने कर दिया और उसके बाद अगर अन्ना आन्दोलन करते भी है तो उसे सिर्फ टीम अन्ना लोकपाल प्रचारित कर, और थोड़े बयानबाजी के साथ संभाला जा सके. नहीं संभाल पाए तो फिर एक मौका मांग लेंगे थोड़े से सुधार के लिए. अगर ऐसा नहीं होता तो राहुल गाँधी एक सांसद और कांग्रेस महासचिव पहले दिन से ही संसद में होते न कि यू पी रोड शो करके चुनाव प्रचार और बयान बाज़ी करते.अगर अन्ना ये कहते हैं कि ये राहुल का किया धरा है तो कोई गलत नहीं क्योकि वो जानते थे कि संसद में क्या होना है और लोकपाल पर कितनी बात होगी. तय प्रोग्राम के तहत संसद और राहुल अपना काम करते रहे.
कुलमिलाकर स्पष्ट होता है कि सरकारी नीतिकारो ने कमजोर विपक्ष और लोकपाल के लिए भावुक अन्ना का किस प्रकार इस्तेमाल किया है. जिसका जिक्र कभी भी किसी मीडिया और बुद्धिजीवी ने टीवी या अखबार के कॉलम में नहीं किया. शायद किसी को इस खबर पर नज़र रखने कि जरुरत महसूस नहीं हुयी.
आजकल एक लूंगीधारी, सरकारी वकील बड़े परेशान है. लोग कह रहे है कि आजकल उन्हें सपने में एक गाना सुनाई दे रहा है. "आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार रे...आजा...आजा...." और ये गाने कि आवाज उन्हें तिहाड़ से सुनाई दे रही है और आवाज किसी अनजाने कि नहीं बल्कि २ जी घोटाले के राजा कि आवाज है.
मुझे इस बात पर यकीन तो नहीं हुआ लेकिन इतना जरुर है कि कनिमोझी कि बेल के बाद वो बहुत बोर हो रहे होंगे और ऊपर वाले से यही प्राथना कर रहे होंगे कि मेरे साथ इतना अन्याय क्यों मै तिहाड़ और वो दस जनपथ में क्यों? खैर ऊपर वाले ने उनकी सुन ही ली और अगर दस जनपथ को बलि कि जरुरत हुयी तो अपने परिवार और पार्टी को कलंक से बचने के लिए तो निश्चित रूप से चिदम्बरम भी संसद में साथ देने के बाद तिहाड़ में उनका साथ देंगे.
वैसे गृहमंत्री के ग्रह आज कल सही नहीं चल रहे. लेकिन २ जी घोटाले और दिल्ली में एक होटल व्यवसायी की वकालत ने उन्हें तिहाड़ के अलावा और कहीं का नहीं छोड़ा. विपक्ष ने उनका जो महिमामंडन किया है, वो समाचारों की सुर्खिया बन चुका है. उनके इस्तीफे की मांग हो रही है. ये मांग जायज भी लगती है क्योकि कोई ये नहीं चाहेगा का कि गृहमंत्रालय जैसा पद कोई भ्रष्टाचार का आरोपी संभाले.
लेकिन इन सबके बीच किसी चीज़ की बू आ रही है. कई चीजें हैं जो सवाल खड़ा करती है. पहला ये कि क्या ये मुद्दा अचानक से संसद में आया है या फिर ऐसा मुद्दा है, जिसे कभी न कभी आना था, इसलिए अभी ही क्यों न आ जाए इसलिए सरकार द्वारा जानबूझकर लाया गया है.
दरअसल ठण्ड की इस संसद सत्र में पहले 15 दिन ऍफ़ डी आई का मुद्दा छाया और संसद ठप रही. ये हर कोई जनता है कि ये ऐसा मुद्दा था जिस पर विपक्ष कभी सहमत नहीं होता. जिस पर भविष्य में भी चर्चा हो सकती थी. उसके बाद कुछ दिन लग गए लोकपाल के ड्राफ्ट को संसद में रखने में जिसे सरकारी वकील सिघवी ने ऐसा तैयार किया था कि उस पर चार दिन बयानों में ही निकल गए. संसद में क्या हो रहा है से ज्यादा सबका ध्यान इस पर रहा कि अन्ना क्या बोले? सरकार भी बयानबाज़ी में आ गए और विपक्ष भी. उसके बाद एक दिन कटा अन्ना और सभी विपक्षी दलों के साझा सांकेतिक धरने में. जिस पर भी अगले दो दिनों तक कयास और बयानबाज़ी ही चलती रही. एक दो दिन संसद में विपक्ष और सत्ता पक्ष ने कुछ चर्चा और बैठक तो कि लेकिन ये सभी जानते हैं कि अगर ये इतनी बातचीत से मसला सुलझता तो इतना बवाल ही क्यों होता? उस पर मामला अटका ही था कि अब चिदम्बरम के मामले ने संसद में हड़ताल शुरू करवा दी.
अगर सीधी बात कि जाये तो आम आदमी कि नज़र में दो बातों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था. पहला महंगाई, दूसरा, लोकपाल. जिस पर देश कि नज़रे थी. लेकिन महंगाई पर कितनी चर्चा हुयी और संसद भंग हुयी ये सब जानते हैं. लोकपाल पर कितनी चर्चा हुयी ये भी साफ़ दिख गया है.
ये चीजें साफ़ करती है कि संसद लोकपाल के लिए कितनी चिंतित है. साफ़ सपष्ट होता है कि सरकार लोकपाल के मुद्दे को या तो गोलमोल घुमाना चाह रही है या फिर उसे आखिरी दिनों में एक अपंग लोकपाल के रूप में लाकर इसकी इतिश्री करना चाह रही है. वो चाहती है कि अगर एक बार उनका लोकपाल किसी भी तरह पारित हो जाये ताकि जनता से कह सके हमने कर दिया और उसके बाद अगर अन्ना आन्दोलन करते भी है तो उसे सिर्फ टीम अन्ना लोकपाल प्रचारित कर, और थोड़े बयानबाजी के साथ संभाला जा सके. नहीं संभाल पाए तो फिर एक मौका मांग लेंगे थोड़े से सुधार के लिए. अगर ऐसा नहीं होता तो राहुल गाँधी एक सांसद और कांग्रेस महासचिव पहले दिन से ही संसद में होते न कि यू पी रोड शो करके चुनाव प्रचार और बयान बाज़ी करते.अगर अन्ना ये कहते हैं कि ये राहुल का किया धरा है तो कोई गलत नहीं क्योकि वो जानते थे कि संसद में क्या होना है और लोकपाल पर कितनी बात होगी. तय प्रोग्राम के तहत संसद और राहुल अपना काम करते रहे.
कुलमिलाकर स्पष्ट होता है कि सरकारी नीतिकारो ने कमजोर विपक्ष और लोकपाल के लिए भावुक अन्ना का किस प्रकार इस्तेमाल किया है. जिसका जिक्र कभी भी किसी मीडिया और बुद्धिजीवी ने टीवी या अखबार के कॉलम में नहीं किया. शायद किसी को इस खबर पर नज़र रखने कि जरुरत महसूस नहीं हुयी.