जो युवा शक्ति इतनी मजबूत है. जो सरकार तक को हिला दे वह युवा शक्ति क्या इतनी कमज़ोर हो सकती है की वह आत्महत्या जैसा कदम उठायेगी ?
Atul Singhal
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अभी कुछ समय से समाचारपत्रों, न्यूज़ चैनलों पर अपराध समाचार काफी बढ़ गए है. देश में बाकी सारे कार्य बाद में होते है. लेकिन अपराध पहले होता है. इन समाचारपत्रों, चैनलों में एक और खबर प्रायः हर रोज़ देखने को मिलती है जो कि मेरे हिसाब से काफी दुखद है. यह खबर होती है "विद्यार्थी आत्महत्या" की. सोचिये कि क्या यह वाकई कोई सामान्य खबर है?
छात्र छात्राओं द्वारा की गई आत्महत्या एक विकराल समस्या की तरह उभरकर आती है. एक ओर जहाँ देश में भ्रष्टाचार, दंगों या अन्य तरह की समस्याओं का सामना करने के लिए युवाओं का समर्थन माँगा जा रहा है वहीं दूसरी ओर युवाओं द्वारा आत्महत्या का कदम उठाना एक काफी बड़ी बात है. युवाओं द्वारा की गई इन आत्महत्याओं में से हम आधी से ज्यादा का कारण भी पता नहीं कर सके है.
संभवतः इसका कारण परीक्षाओं से सम्बंधित हो सकता है लेकिन सोचने लायक बात यह है की जो युवा शक्ति क्रांति लाने की हिम्मत रखती है,जो युवा शक्ति इतनी मजबूत है. जो सरकार तक को हिला दे वह युवा शक्ति क्या इतनी कमज़ोर हो सकती है की वह आत्महत्या जैसा कदम उठायेगी ?
विद्यार्थी आत्महत्या का कारण केवल परीक्षाएं ही नहीं हो सकती, इसके दूसरे कारण भी हो सकते है.देश को,सरकार को इस बारे में सकारात्मक तरीके से सोचना चाहिए की विद्यार्थी आत्महत्या दिन प्रतिदिन बढ़ क्यों रही है ?
हाल ही मे 20 सितबंर को एक आई.आई.एम बैंगलोर की छात्रा ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी. जांच मे पता चला के उसके बायफ्रेंड ने उसके साथ धोखा किया था.
2006 मे 6000 छात्रो ने आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठाया था. तीन साल बाद भी इस आकडे मे कोई कमी नही हुई थी.
इसका एक कारण कही न कही आरक्षण भी हो सकता है क्योंकि सभी तरह का आरक्षण मिलाकर 70.53 % होता है और 29.47% पर सामान्य वर्ग को खुद से और साथ ही आरक्षित वर्ग से भी सामना करना पड़ता है. अगर आरक्षण देना ही है तो योग्यता के आधार पर देना चाहिए या जो सच में हकदार है उन्हें आरक्षण देना चाहिए फिर चाहे वह सामान्य वर्ग हो या अन्य. सबसे बड़ी चीज़ कि आरक्षण को ख़त्म करते हुए उन्हें सामान्य की तरह पढाई के अवसर, खान-पान,रहन-सहन के खर्च देकर काबिल बनाया जाये और सभी को समान अवसर देकर उनकी योग्यता को परखा जाये.
कुछ कारण और भी हो सकते है छात्र-छात्राओं कि आत्महत्या के जैसे परिवार का ज्यादा दबाव, बुरी संगत, परीक्षाओं में असफलता. समाज को इस बारे में बहुत गहरे से सोचना पड़ेगा क्योंकि विकास की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा भारत देश अगर उतनी ही तेज़ी से युवा-शक्ति को खोता जायेगा तो वह दिन दूर नहीं जब समाज से युवा शक्ति का अस्तित्व खत्म हो जायेगा.