Rockstar: अक्खड़ जनार्दन से सनकी जोर्डन तक...

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  • Wednesday, November 16, 2011
  • रॉकस्टार उनके सुपरस्टार के रूप में अवतरित होने की घोषणा है और फिल्म में शम्मी कपूर के ही एक डायलॉग के जरिये कहे तो "ये जानवर इतना बड़ा है की छोटे पिंजरे में नहीं समाएगा".

    Pankaj Devda
    pankajdevda1990@gmail.com

    फिल्म की समीक्षा शुरू करने से पहले मैं आपको बताना चाहता हूँ की फिल्म में एक लाइव पेंटिंग है. जी हाँ एक जीती जागती पेंटिंग. आपने प्रोमो में एक सीन देखा होगा जिसमे रणबीर कार में बैठ कर दारू की केन से आँखें भीच कर दारू पीते है और उसके बाद बाहर आ कर भीड़ के बीच कारपेट पर उलटी करते है ठीक इसी के बाद एक सीन है जिसमे रणबीर बाथ टब में लेटे है, पानी की कुछ धाराएँ बरस रही है और सामने की और गहरे अंधेरों में एक गिटार जल रही है.  सचमुच इस सीन को रणबीर के भावों और इम्तिआज़ की कल्पना ने एक पेंटिंग का रूप दे दिया है.

    इस सीन में जलती गिटार इस तरह लगती है जैसे एक पागल प्रेमी के प्रेम की नंगी आग उसकी छाती को फाड़ कर नाच रही हो और वो भी गिटार के वक्ष स्थल पर अपनी एडियाँ गढ़ाते हुए. इस समय की सबसे महानतम प्रतिभाओं के महाविस्फोट से बनी फिल्म है. रहमान, इम्तिआज़, मोहित, इरशाद और युवा रणबीर सबने मिल कर "गंध मचा दी  है."

    रहमान का संगीत, इरशाद के लिखे गीत और मोहित चौहान की आवाज एक संगीतमयी जादुई संसार का सर्जन करती है. नरगिस फाखरी अपने सुर्ख होठों की तरह ही कोमल और सुन्दर है. जब वे रणबीर के साथ "जंगली जवानी" फिल्म देखती है और दारू पीती है तो उनकी खूबसूरती एक दम "कलेजा काट" लगती हैं.

    पियूष मिश्रा जब "हड्डी तोड़ू" मालिश करवाते हुए डायलॉग बोलते है तो एक कमाल का कॉमिक सीन रच देते है. इम्तिआज़ हमारे समय के सबसे मंझे हुए डायरेक्टर्स  में से एक है और यही बात हम रणबीर के लिए भी कह सकते हैं. रॉकस्टार उनके सुपरस्टार के रूप में अवतरित होने की घोषणा है और फिल्म में शम्मी कपूर के ही एक डायलॉग के जरिये कहे तो "ये जानवर इतना बड़ा है की छोटे पिंजरे में नहीं समाएगा".

    इम्तिआज़ का निर्देशन, लोकेशन यहाँ तक की कपड़ो का चयन भी कमाल का है. फिल्म फ्लेश बेक और वर्तमान में घुमती रहती है. हर सीन को समझाने के लिए वापस मुडती है जो वो पहले ही कह देती है. बस एक बात जो खटकती है वो यह कि अंत से कुछ देर पहले पटकथा ढीली पढ़ जाती है. कहने के लिए ख़ामोशी  के सिवा कुछ भी नहीं बचता. शायद एकांत फिल्म की मांग भी हो. यदि हम फिल्म को उसके अंत की लड़खड़ाई स्क्रिप्ट से तोलेंगे तो हकीकत में हम हाथ आये मक्खन के लोंदे को छोड़ कर छाछ चाट रहे होंगे. इम्तिआज़ हिंदी फ़िल्मों के सभी तिलिस्मों और साँचों को तोड़ते हुए इसे गढ़ते चले जाते है- "सही और गलत के पार".

    एक बार फिर यही कहना चाहूँगा  कि  जब रणबीर अक्खड़ जनार्दन और सनकी रॉकस्टार जोर्डन बनते है तो वे इतने खूबसूरत हो जाते है कि थियेटर  में बैठने वाली हर लड़की उनके प्यार में पड़ जाना चाहती होगी. और अंतत: जब वे नर्गिस को किस करने के लिए तड़पते हैं तो बिलकुल भी अश्लील नहीं लगते बल्कि वो एक ऐसे प्रेम के दर्शन करवा रहे होते है जो सारी पवित्रता-अपवित्रता, शुद्धता-अशुद्धता, सामाजिकता और नैतिकता को उल्टा लटका कर उनकी चमडियाँ उधेड़ने के लिए कोड़े फटकार रहा होता है.  



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