आखिर black-money के issue पर क्यूं है इतने ignorant

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  • Thursday, October 20, 2011
  • एक विस्फोटक खुलासे में स्विस बैंकिंग घोटालों को उजागर करने वाले रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि बहुत सी भारतीय कंपनियां और धनी भारतीय, जिनमें अनेक फिल्म स्टार और क्रिकेटर भी शामिल हैं, केमैन द्वीप जैसे टैक्स हैवेन इलाकों में अपने काले धन को जमा कर रहे थे. एल्मर ने कहा कि 2008 में उन्होंने जो सूची जारी की थी उसमें कर चोरी करने वाले अनेक भारतीयों के नाम भी दर्ज थे. उन्होंने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि वह काले धन को वापस लाने की दिशा में गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं कर रही है.


    Jasveer Singh

    Officer, Indian Police Service

    एक विस्फोटक खुलासे में स्विस बैंकिंग घोटालों को उजागर करने वाले रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि बहुत सी भारतीय कंपनियां और धनी भारतीय, जिनमें अनेक फिल्म स्टार और क्रिकेटर भी शामिल हैं, केमैन द्वीप जैसे टैक्स हैवेन इलाकों में अपने काले धन को जमा कर रहे थे. एल्मर ने कहा कि 2008 में उन्होंने जो सूची जारी की थी उसमें कर चोरी करने वाले अनेक भारतीयों के नाम भी दर्ज थे. उन्होंने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि वह काले धन को वापस लाने की दिशा में गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं कर रही है.

    रुडोल्फ एल्मर को हल्के में नहीं लिया जा सकता. वह स्विस बैंक जूलियस बेयर के पूर्व अधिकारी हैं. उन्होंने 20 साल तक इस बैंक में काम किया है. वह केमैन द्वीप में बैंक के मुख्य परिचालन अधिकारी थे. अपने कार्यकाल के दौरान एल्मर को साक्ष्य मिले कि उनका बैंक ग्राहकों को कर चोरी में मदद पहुंचा रहा है. इन्हीं साक्ष्यों को एल्मर ने सीडी में कॉपी करके विकिलीक्स के संपादक जूलियन असांजे को सौंप दिया था. दावा किया गया है कि सीडी में दो हजार खातेदारों के नाम हैं, जिनमें कई भारतीय हैं. इसमें 1997 से 2002 के बीच के बैंक खातों का विवरण है, जिसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.

    इस संबंध में अमेरिका जैसे कुछ देशों ने गंभीर प्रयास किए और स्विट्जरलैंड पर दबाव बनाकर अपना धन वापस लाने में सफलता हासिल की. बराक ओबामा को अपना धन वापस लाने की चिंता है, जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल इसे लेकर क्रोधित हैं और फ्रांस में निकोलस सरकोजी बैंकिंग व्यवस्था के नियमन पर जोर दे रहे हैं, किंतु विदेशों में जमा काले धन से सर्वाधिक प्रभावित भारत इस संबंध में जरा भी परेशान नहीं है, बल्कि वह कर चोरों को फायदा पहुंचाने के लिए स्वैच्छिक घोषणा योजना का मसौदा तैयार कर रहा है. रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि सब कुछ रवैये पर निर्भर करता है.

    भारत सरकार ने काले धन को वापस लाने के गंभीर प्रयास नहीं किए. सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर करने के लिए समाज को दबाव डालना होगा. भारत एक बड़ा देश है और दिन पर दिन और शक्तिशाली होता जा रहा है. यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अफसोस की बात है कि निर्वाचित सरकार तथा अधिकारियों के बजाय एक विदेशी हमारे देश के काले धन को लेकर चिंतित है.

    दिलचस्प बात यह है कि इसी जूलियस बेयर बैंक में काला धन जमा करने वालों की एक अन्य सूची भी सामने आई है. इसमें सौ से अधिक भारतीयों के नाम शामिल हैं. कर चोरी के सुरक्षित ठिकानों में 40 करोड़ रुपये जमा कराने वाले 18 भारतीयों के नाम का इस साल के शुरू में खुलासा हुआ था. लीचेंस्टाइन सूची को एक जर्मनवासी ने हासिल किया तथा इसे भारतीयों के साथ साझा किया. नागरिक समूह इंडिया रिजुवेनेशन इनीसिएटिव द्वारा दर्ज की गई जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी सरकार ने इन खातेदारों के नाम सार्वजनिक नहीं किए. सरकार इस आधार पर नाम सार्वजनिक करने से इंकार कर रही है कि वह जर्मनी के साथ दोहरे कराधान संधि से बंधी हुई है. इन आंकड़ों को हासिल करने से भारत-जर्मनी के बीच संधि का उल्लंघन नहीं होता, किंतु कुछ रहस्यमयी कारणों से सरकार इस मामले में दुराग्रहपूर्ण रवैया अपना रही है.

    भारत के करदाताओं के साथ सूचना साझा न करने का एक और उदाहरण कुछ माह पूर्व का है. स्विट्जरलैंड में एचएसबीसी बैंक में काला धन जमा करने वाले एक हजार भारतीयों के नामों की सूची सरकार को मिली. ये आंकड़े फ्रांस सरकार को मिले, जिसने भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिए, किंतु सरकार ने अभी तक यह सूची सार्वजनिक नहीं की. जब भी विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम सार्वजनिक करने का प्रश्न उठता है, सरकार और अधिकारी एक ही राग अलापने लगते हैं कि दोहरे कराधान संधि ने उनके हाथ बांध रखे हैं. भारत में अनेक स्विस कंपनियां और बैंक कारोबार कर रहे हैं. ऐसे में राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सरकार इन कंपनियों और स्विट्जरलैंड सरकार पर दबाव बनाकर काले धन की जानकारी आसानी से हासिल कर सकती है, किंतु काले धन पर सरकार षडयंत्रकारी चुप्पी साधे है.

    भारत के कानून मंत्री द्वारा हाल ही में दिए गए बयान से पता चलता है कि भारत के लूटे गए धन को वापस लाने की उनकी कोई इच्छाशक्ति नहीं है, बल्कि वह इस प्रकार के मामलों में न्यायिक दखलंदाजी पर लगभग अवमाननापूर्ण बयान जारी से गुरेज नहीं करते. भारत में खुफिया एजेंसियों पर अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं. क्या रॉ, इंटेलीजेंस ब्यूरो जैसी इकाइयां कर चोरों और आर्थिक अपराधियों के विदेशी खातों के बारे में जानकारी नहीं जुटा सकतीं? इस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता कि इन एजेंसियों में काबिल अधिकारी और संसाधन हैं, जो काले धन के श्चोत तक पहुंच सकते हैं. तब सवाल उठता है कि इन्हें नागरिकों के वृहद हितों के पक्ष में काम करने से कौन रोकता है?

    अगर जर्मनी की खुफिया एजेंसी एक अघोषित भेदिये को 60 लाख डॉलर देकर एलटीजी ग्रुप के ग्राहकों का गोपनीय विवरण हासिल कर सकती है तो भारत की खुफिया एजेंसियां इस प्रकार के उपाय क्यों नहीं अपना सकतीं? भारतीय राजनीतिक नेतृत्व काले धन को वापस लाने पर कदम पीछे खींचता रहा है. भारत से जुड़े स्विस व्यापारिक और वित्तीय हितों पर दबाव बढ़ाने के बजाय सरकार ने इनके प्रति नरमी बरती है. यही नहीं, भारत में यूबीएस जैसे स्विस बैंकों की शाखाएं खुलवाकर सरकार ने काले धन के विदेशों में इलेक्ट्रॉनिक हस्तातंरण का रास्ता और आसान बना दिया है.

    कानून मंत्री के हालिया बयान से निष्कर्ष निकलता है कि उन्हें सामान्य करदाताओं के हितों से अधिक चिंता व्यापारियों और कर चोरों के निवेश को सुरक्षित रखने की है. उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा काले धन के संबंध में विशेष जांच दल (एसआइटी) के गठन के फैसले को भी अनुचित बताया. इससे भी अधिक झटका इस बात से लगता है कि हाल ही में सरकार ने स्विट्जरलैंड के साथ कर संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अनुसार अतीत में भारत से लूटी गई संपदा स्विस बैंकों में जमा करने वालों को दोषमुक्त कर दिया जाएगा और इन अपराधियों को दंड नहीं दिया जा सकेगा. यह संधि एक अप्रैल, 2012 से लागू होगी.

    सरकार ने एक बार फिर काले धन के संबंध में भविष्य में होने वाले खुलासों का सुरक्षा कवच तैयार कर लिया है। सरकार को तगड़ा बहाना मिल गया है-स्विट्जरलैंड के साथ संधि होने के कारण हमारे हाथ बंधे हैं. हम किसी अपराधी को सजा नहीं दे सकते.

    (Writer is an IPS Officer.The views expressed here are his own, and don't necessarily represent those of Dakhalandazi. Email your feedback at edit@dakhalandazi.com)
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