लोकपाल की जिद में खोता भारत

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  • Tuesday, August 23, 2011
  • यही भीड़ है जो देवराला में सती कांड को सही बना कर नाजायज मृत्यू दंड दिलवा देती है, यही भीड़ है जो बाबरी के पागलपन को हवा देती है, गोधरा को होने देती है. यही भीड़ है जो खाप के क्रूर फैसलों पर आंख बंद कर लेती है. इसके शोर में सच खो जाता है.

    Molly Seth
    Journalist

    शोर और भीड़ से हर फैसला अगर कर लिया जाए तो फिर लोकतंत्र की परेशानियों से त्रस्त टीम अन्ना को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इतना बड़ा आंदोलन करने की जरूरत ही नहीं पड़ी होती. अन्ना की जायज मांगे भीड़ के फैलाव और उसके शोर के पीछे तेजी से खोती जा रही हैं और लगता है कि जल्द ही वह वक्त आ जाएगा जो असल मुद्दे की प्रासंगिकता को निगल जाएगा.कैसे भूल जाते हैं कि भीड़ फैसलों के जायज होने के बारे में शक पैदा करती है.

    यही भीड़ है जो देवराला में सती कांड को सही बना कर नाजायज मृत्यू दंड दिलवा देती है, यही भीड़ है जो बाबरी के पागलपन को हवा देती है, गोधरा को होने देती है. यही भीड़ है जो खाप के क्रूर फैसलों पर आंख बंद कर लेती है. इसके शोर में सच खो जाता है.

    इनमें आधे लोग लोकपाल बिल की आत्मा को नहीं जानते. कितने ही पढ़े लिखे होने का दावा करने वाले लोग वोट नहीं देते और भीड़ जाति, संप्रदाय और प्रभावी लोगों के दवाब में ऐसे जन प्रतिनिधि चुन लेती है जो सच में भ्रष्टाचार की कोख से जन्मे हैं.

    यही भीड़ इसी आधार पर लोकपाल भी तो नहीं चुन लेगी? इसको शिक्षित और प्रशिक्षित करने का दायित्व कौन लेगा. हर प्रक्रिया संवैधानिक तरीके से ही रंग लाती है. मेरे बहुत से दोस्त कहते हैं कि इतने बरसों से बने इस देश के संविधान में काफी कुछ अप्रासंगिक है उसको बदल जाना चाहिए क्यों कि इस देश में सब भ्रष्ट हैं. अगर ना देश पर विश्वास है, ना संविधान पर तो किसी अनजाने नियम पर इतना अंधविश्वास क्यूं है. तर्क सौ हैं पर बंद आखों और भीड़ की दिवानगी के आगे सब अर्थ खो रहे हैं.

    अगर इसी जोश से आंदोलन चला तो लोकपाल बनने के कम, मध्यायवधि चुनाव के आसार ज्यादा दिख रहे हैं. क्योंकि अपनी राजनीति के कारोबार को चलाने को आतुर दूसरे तमाम दल मौके को भुनाएंगे. नतीजा नया चुनाव, नयी सरकार और नए बहाने सामने आएंगे. क्यों कि विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल कुछ भी कहें सच्चाई यही है कि कोई भी सरकार हो जिस रूप में अन्ना लोकपाल चाहते हैं वैसा का वैसा उसे कोई सरकार इसे लागू नहीं कर सकती. इससे घोर संवैधानिक संकट पैदा होगा.

    इस देश के लोगों को इस देश के संविधान का सम्मान तो करना ही होगा. अभी जो छवि विदेशों में बन रही है वह भारत के सम्मान के लिए शोभनीय नहीं है. दूसरी तरफ इस आंदोलन के चलते जो कार्य घण्टो की हानि हो रही है उससे जिन गरीबों के हित का हल्ला मच रहा है वह भी और ज्यादा बिगड़ जाएगा. अन्ना एक सही सोच वाले वयक्ति हैं पर उनका यह आंदोलन अब एक जिद्द में बदलता जा रहा है.

    (Molly Seth is a senor journalist. She is associated with Dainik Jagran group. The views expressed here are her own, and don't necessarily represent those of Dakhalandazi. Email the writer at mollysethinext@gmail.com)





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