Movie Review: I Am Kalam

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  • Thursday, August 4, 2011
  • 4/8/11
    mumbai /vishal
    बच्चो की फिल्मे बनाना आसान नहीं होता पर जब बच्चो पे अच्छी फिल्म बनती है तो लोग यही कहते है कि क्या बात है ... कम से कम तारे ज़मीन पे ,स्टेनली का डब्बा ,के बाद i m कलाम को देख कर यही बात कहा जा सकता है | ये एक गरीब पर मेधावी बच्चे की कहानी है जिसे उसकी माँ अपने मुह बोले भाई "भाटी सा" के यहाँ छोड़ जाती है और कहती है "सा ...जे छोरा जो चीज़ एक बार देख लेवे है भूले से नहीं "| इस के बाद छोटू उर्फ़ कलाम कुछ नहीं भूलता ,चाय बनाने और बर्तन धोने से ले कर हेल्लो सर ,वेल्कोमे सर तक ,इंग्लिश से ले कर फ्रेंच तक , एक टाई से लेकर उन किताबो तक जिन्हें सामान्यतः लोग बोझ समझते है को धारण कर लेता है | A P J अब्दुल कलम का टी वी पर आ रहा भाषण देख वो अपनी पहचान को "छोटू से कलाम" बना दे ता है और वही भाषण उसे सिखाता है की जीवन में कर्म से बड़ा कुछ नहीं होता ,और वो हर परेशानी से जूझता राष्ट्रपति भवन पहुच जाता है अपना ख़त देने की वो कलाम का मुरीद है|

    फिल्म भाटी सा के ढाबे से शुरू होती है और उस ढाबे की चाय पास में ही एक कुअंर साहेब की "हवेली कम होटल" में सर्वे होती है ..कलाम चाय देने जाता है और छोटे कुअंर जो कलाम का हमउम्र है से दोस्ती कर लेता है ,दोनों की खूब जमती है और दोनों एक दूसरे की खूब मदद करते है,पर एक दिन जब कलाम का लिखा हुआ हिंदी निबंध छोटे कुअंर अपने स्कूल में पढ़ते है और ट्रोफी जीतते है उसी समय हवेली से चोरी के आरोप में कलाम पकड़ा जाता है | कलाम दिल्ली चला जाता है .... कलाम को अपना कलाम देने ..

    खूबसूरत सिनेमा ,बेहतरीन प्रयास नीला माधब पांडा का .. गुलशन ग्रोवर का ये लाइफ टाइम पर्फोर्मांस कहा जाना चहिये ,क्युकी उन्होंने इस फिल्म के लिए एक भी पैसे नहीं लिए ..और पैसे तो पितोभास ने भी नहीं लिए जो "शोर इन दा सिटी" जैसी सफल commercial फिल्म करने के बाद ऐसे प्रयास में साथ आते है ये ही इन जैसे कलाकारों में जीवन्तता
    दर्शाता है जो उनके अभिनय में भी झलकती है

    फिल्म को मौलिकता के angle से देखने पे ९/१० अंक और commercial angle से ५/१० दिए जा सकते है

    दखलंदाज़ी smile foundation को salute करता है !!

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