मुझे नज़रों को पड़ने की इतनी आदत क्यों है?

Posted on
  • Friday, July 22, 2011

  • यूँ ही एक दिन रास्ते पर चलते चलते कई नज़रों से मुलाकात हुई.
    कई नजरें' मिली', कई 'झुकीं' .
    कई नज़रों ने' तिरस्कार' , और कई ने 'पुरस्कार' दिए .
    कई नज़रों में थे कुछ 'सवाल' , और कई ने सिर्फ' जवाब' दिए .
    कई नज़रों में दिखाई दी सिर्फ 'भूख '.
    और कई नज़रों में महसूस हुई 'लालसा'.
    कई नजरों में थी 'ख़ुशी की लहर' ,कई नजरों में था'' ख़ुशी का जलसा ',
    कई नजरों में था' बेचारगी का साया ',और कई में थी' गम की छाया ',
    कई नजरों में थी' सहारे की अर्ज़' ,और कई नज़रों में था' बेसहारा होने का दर्द ',
    किसी नजर में थी 'दुश्मनी की लालिमा 'किसी नजर में था' दोस्ती का गुरूर ',
    किसी नजर में था 'ममता का आँचल 'और किसी नजर में था 'मुहब्बत का भी सुरूर '
    किसी नजर में थी' दर्द की संवेदना',तो किसी नजर में थी 'खुद की अवहेलना ',
    किसी नजर में था 'मंजिलों को पाने का जूनून ',किसी नजर में था 'रास्तों को ढून्ढ लेन का सुकून '
    किसी नजर में था 'शिकायतों का क़र्ज़ 'किसी नजर में था 'उन्हें मानाने का सा मर्ज़ '
    चलते चलते घबरा कर थक कर एक सुनसान जगह में पनाह ली और आँखें बंद करके सोचा मुझे "नज़रों को पड़ने की इतनी आदत क्यों है ."

    By- Chhaya Mehrotra



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