आओ आपको एक कहानी सुनाता हूं....(जो सच्ची है और गन्दी है)

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  • Tuesday, February 1, 2011

  • पाकिस्तान में इस वक्त acid survivors bill पर बहस चल रही है. Acid attacks के लगातार बढ़ रहे cases को देखते हुये यह वक्त की जरुरत बन गयी है कि acid attacks पर कोई स्पेसिफिक law बनाया जाये. बांग्लादेश ने सबसे पहले (10 साल पहले) Acid Bill इन्ट्रोड्यूस करके इस दिशा में दूसरे देशों को अब दबाव की स्थिति में ला दिया था (इंडिया को नहीं).
    आओ आपको एक कहानी सुनाता हूं....
    ..............यह आरती की जिन्दगी है
    आरती अब पढ़ाई पूरी कर चुकी है. टाइमपास करने का यह उसका यह आखिरी बहाना भी खत्म हो गया है. एमए करने के साथ ही उसने ब्यूटीपार्लर का भी कोर्स कर लिया था और अब खाना बनाने के साथ साथ वो टाइमपास के लिये अपनी आर्ट कापियों पर पेंटिग करती है. एक दो ट्यूशन पढाने के अलावा वह अब कुछ नही कर सकती. वह कही भी नार्मल फील नहीं करती है. बाहर जाकर जाब करना अब उसके लिये सम्भव नहीं. य़ह सब इसलिये क्योंकि आरती एक ऐसिड सर्वाइवर है.
    आरती का बचपन कानपुर की उन गलियों में बीता है जिनको अब वह सपने में भी याद नहीं करना चाहती है. इसी कानपुर में उसने अपना पहला कदम रखा, बोलना सीखा, गिल्ली डंडा खेला, रोड पर खड़े होकर क्रिकेट मैच देखा और पतंग उड़ाने के लिये कई कई बार स्कूल बंक किया. 17 साल उसने यहां बड़े आराम से गुजारे. इन 17 सालों में आरती ने कई सारे दोस्त बनाये, जमकर पढ़ाई की और ढ़ेर सारे ख्वाब देखे. हर मिडिल क्लास लड़की की तरह आरती के भी ढ़ेर सारे सपने थे. सपना एक आलीशान घर का, एक लम्बी सी गाड़ी का और सबसे बड़ा सपना उस सपनों के राजकुमार का जो उसे वहां से उठाकर ख्वाबों की दुनिया मे ले जाने वाला था. सपनों के बीच अपनों की तलाश में उसकी मुलाकात अभिनव से होती है (मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, हालाकि मुझसे बातचीत के दौरान वह लगातार यह दोहराती है कि वह अनुभव को नहीं जानती थी ) और कुछ निजी कारणों से वह उस पर तेजाब डाल देता है. समझ लीजिये कि उसके सपनों पर तेजाब पड़ जाता है.
    अब आज का दिन है जब आरती की आखों में कोई सपना नहीं है और सपनों में कोई राजकुमार नहीं है. पिछले 10 सालों में उसने यही उम्मीद की है कि कोई दिन ऐसा आयेगा जब वह आइने के सामने खड़ी हो सकेगी, खुद को हर सेकेंड़ के भयानक दर्द से राहत राहत दिला सकेगी, रास्ते चलते लोगों की उसे अजीब प्रजाति समझकर घूरने की आदत बन्द करा सकेगी. आशा तो उसे यह भी थी कि कम से कम अब तो तेजाब के खुले बाजार पर रोक लगेगी, उसके जैसे कइयों के लिये कोई कानून आयेगा, सरकारी राहत से वह मां बाप पर बोझ नहीं बनेगी.
    (…………………to be continued in my next post)
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