वर्ल्ड कप के शुभारम्भ को तीन दिन बीत चुके हैं और आज पांचवा मैच खेला जाना है पर न्यूसपेपर्स के स्पोर्ट्स पेजेस और न्यूज़ चैनल्स के स्पोर्ट्स बुलेटिन्स को छोड़कर वर्ल्ड कप का रोमांच कहीं नहीं दिखाई दे रहा. सच मानिए तो ताज्जुब हो रहा है कि क्या हम इसी टूर्नामेंट का इंतज़ार कर रहे थे. हाँ पहले मैच ने ज़रूर खूब सुर्खियाँ बटोरीं पर रोमांच के मामले में वो भी दस में शून्य अंक ही पाता है. बाकी तीनों मैचों में मज़बूत टीमें कमज़ोर टीमों को रौंदती हुयी बोरियत के नए रेकार्ड्स बना रही थीं. आज फिर इंग्लैंड और हालैंड के मुकाबले में कुछ ऐसा ही करुण दृश्य दिखाई देगा और ये सब हो रहा है आईसीसी की क्रिकेट प्रसार की नीतियों के तहत, जो वाकई में क्रिकेट का फायदा करने की बजाय नुक्सान पहुचाती हुई दिखाई दे रही हैं. केन्या जिसने 2003 विश्व कप में सेमीफाइनल्स तक का सफ़र तय करके सबको चौका दिया था. आज बेहद बुरी स्थिति में है. ज़िम्बाब्वे का टेस्ट स्टेटस फ़िलहाल छिन गया है और बंगलादेश कई बार बड़े उलटफेर कर चुकने के बावजूद आज भी पहले की तरह ही संघर्ष करती हुयी नज़र आती है. ऐसी स्थिति में सिर्फ वर्ल्ड कप में ही क्रिकेट प्रसार के प्रयास कहीं से भी क्रिकेट का भला करते नहीं नज़र आते. जबकि ये स्थिति तब आ रही है जब इस वर्ल्ड कप में पिछले वर्ल्ड कप की अपेक्षा दो टीमें कम शामिल की गयी हैं. सोचिये कि जब 12 टीमों में ऐसी स्थिति है तो 14 टीमों के शामिल होने पर इस टूर्नामेंट का क्या हश्र होता.
ज़रा इस वर्ल्ड कप की तुलना 19996 के विल्स वर्ल्ड कप से कीजिये. तब तक इंडियन टीम एक अंडरडॉग की तरह मानी जाती थी और हम इंडियन टीम के कप जीतने का बस ख्वाब ही देख सकते थे लेकिन फिर भी रोमांच में कहीं कोई कमी नहीं थी. हमारी टीम ने उस टूर्नामेंट में गज़ब का प्रदर्शन किया था लेकिन हम उस सीरीज को इस तरह नहीं याद करते, हम उस वर्ल्ड कप को याद करते हैं ईडेन में हुए भारत श्रीलंका के सेमीफाइनल्स मुकाबले के लिए जब कोलकाता के अतिउत्साहित क्रिकेट प्रेमियों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था. लेकिन आज के समय में वैसी घटना होने के चांस न के बराबर हैं. एक्सेसिव क्रिकेट और ट्वेंटी-20 की खोज ने वो रोमांच खत्म कर दिया है और उस पर भी रही सही कसर वर्ल्ड कप के उबाऊ शेड्यूल ने पूरी कर दी. अब ऐसे में भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए वर्ल्ड कप में इंटरेस्ट बनाए रख पाना इतना आसन नहीं होगा. 1996 के पहले तक वर्ल्ड कप में 8-9 टीमें ही खेला करती थीं. 1996 में पहली बार मुकाबले में तीन नयी टीमें शामिल की गयी थीं. उस वर्ल्ड कप में कुल मुकाबलों की संख्या 37 थी. जबकि इस वर्ल्ड कप में कुल 49 मैच खेले जाने हैं. पिछले कुछ टूर्नामेंट्स के आंकडे इस तरह हैं
1996 - 12 टीमें - 37 मुकाबले
1999 - 12 टीमें - 42 मुकाबले
2003 - 14 टीमें - 54 मुकाबले
2007 - 16 टीमें - 51 मुकाबले
2011 - 14 टीमें - 49 मुकाबले
इस टेबल पर गौर करके आप देख सकते हैं कि आईसीसी ने इस बार टीमों की संख्या और मुकाबलों की संख्या दोनों को ही कम रखने की कोशिश की है, सुपर सिक्स फोर्मेट ( जोकि पिछले वर्ल्ड कप में सुपर एट बन गया था) को भी हटाकर 1996 तक प्रचलन में रहे क्वार्टर फाइनल्स के नाक आउट फोर्मेट को एक बार फिर शुरू किया है. लेकिन इसके बावजूद वो इस मुकाबले से बोरियत को दूर कर पाने में कामयाब नहीं हो सकी. जोकि इस बार सबसे ज्यादा ज़रूरी था क्योकि ये वर्ल्ड कप एशिया में हो रहे हैं जहा क्रिकेट की लोकप्रियता दुनिया के किसी भी दुसरे हिस्से से कही ज्यादा है. और इन क्रिकेट प्रेमियों को वर्ल्ड कप के नाम पर बोर करना देर सबेर ODI फार्मेट के लिए नुकसानदेह हो सकता है. खैर हमारा क्रिकेट प्रेम हमें ये आशा करने पर मजबूर करता है कि लीग राउंड बीतने पर एक बार फिर बेहद रोमांचक क्रिकेट देखने को मिलेगा और हमारा इंतज़ार बेकार नहीं जायेगा.