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सौरव गांगुली एक बार फिर खबरों में हैं और जैसा कि हम जानते हैं वो जब वो खबरों में होते हैं तो सड़कों पर भी होते हैं, फेसबुक पर भी होते हैं, राजनीति में भी होते हैं. यूं भी कह सकते हैं कि उनका खबरों में होना एक अक्सर घटने वाली असाधारण घटना है. आईपीएल में ना बिकने के कारण वो एक बार फिर चर्चा में हैं. पहले मीडिया में आर्टिकल्स लिखे गए फिर फेसबुक और ट्विटर में उनके फैन्स की ज़ोरदार प्रतिक्रया आयी, शाहरुख खान के पुतले जलाये गए, करण जौहर जी से उनके कई नैतिक और अनैतिक सम्बन्ध भी जोड़ डाले गए और फिर कई बड़े लोगों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गयीं ललित मोदी से लेकर कपिल देव तक सब हैरान हैं और अब इस बीच बाल ठाकरे साहब ने भी बहती गंगा में हाथ धो डाले. शाहरुख़ को कई भद्दी भद्दी गलियां देकर अपने मन की भड़ास निकाल डाली. अब सवाल ये है कि ऐसा क्या है जो गांगुली को इतना ख़ास बनता है, इतना लोकप्रिय बनाता है और इतना संवेदनशील भी.
सौरव गांगुली को हम इस तरह भी याद कर सकते थे कि वो एक शानदार लेफ्ट हैण्ड बैट्समैन थे, जो ऑफ साइड पर अपनी कमांड और अपनी शानदार टाइमिंग के लिए जाने जाते थे. उन्होंने सचिन के साथ मिलकर एक शानदार ओपनिंग जोड़ी बनाई जो सर्वकालिक महान ओपनिंग जोड़ियों में शीर्ष पद की दावेदार है. वो काफी समय तक भारतीय टीम के कप्तान भी रहे. मगर हम उन्हें इस तरह नहीं याद करते क्योकि ये आधा और कम महत्वपूर्ण सच है. ये गांगुली की परिभाषा हो सकती है मगर दादा की नहीं.
मीडिया कई लोगों को उपनाम देता है किसी को लिटिल मास्टर किसी को मिस्टर कूल किसी को कुछ और. पर कभी कभी ये उपनाम इतने महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि नाम की छवि ही बदल देते हैं. हम गांगुली को याद करते हैं एक ऐसे खिलाड़ी कि तरह जो पहले अपने ईगो के करण टीम से बाहर हुआ, उपेक्षित हुआ फिर चार साल बाद वापसी करके सचमुच का महाराजा बन गया. गांगुली भारत का ऐसा पहला खिलाड़ी था जो एग्रेशन का प्रतीक बना और नयी पीढी का सिम्बल बन गया. लेकिन कहानी तो अभी शुरू हुई थी. जिद, जुनून और हार ना मानने की आदतों ने उसे सबसे अलग खड़ा कर दिया जहा वो भले ही सबसे श्रेष्ठ नहीं था पर सबसे अलग ज़रूर था. उसे जिद्दी कहा गया और जब उसकी जिद सही साबित हुई तब उस पर खुशकिस्मत होने का आरोप लगाया गया. बहुत से लोग ये तर्क देते रहे कि गांगुली एक अच्छा कप्तान नहीं बल्कि एक लकी कप्तान है. अब उसकी सफलता के लिए क्या ज़िम्मेदार था ये तो भगवान ही बता सकता है पर उसकी विफलता के लिए उसकी जिद ज़िम्मेदार रही इसमें कोई शक नहीं. वो जिस जिद से टीम को आसमान तक ले गया वही जिद उसकी दुश्मन बन गयी और उसी जिद ने उसके ढेरों दुश्मन बना दिए. दादा इतना बड़ा नाम बन गए कि उन्हें एक आम क्रिकेटर की तरह डील नहीं किया जा सकता था. उनका नाम और उनकी उपलब्धियां और उनकी लोकप्रियता सब पर भारी थी. लोग उनसे डरने लगे. गांगुली के आसपास रहते उनका भविष्य सुरक्षित नहीं था. गांगुली की दमदार पर्सनाल्टी ही उनकी दुश्मन बन गयी.
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ये बात कुछ ऐसी है कि वो किसी भी कीमत पर दादा को टीम में नहीं रखना चाहते जिससे बाकी टीमो की तरह कोलकाता की टीम में में भी टीम ओनर ही सर्वोपरि और असली लीडर हो. अब ये बात कोलकाता की जनता को कौन समझाए कि ये खेल नहीं बिजनेस है, सवाल परफार्मेंस का नहीं वर्चस्व का है और जिसे इग्नोर किया गया है वो लेफ्ट हैण्ड बैट्समैन सौरव गांगुली नहीं बल्कि लाखों दिलों की धड़कन और हिन्दुस्तानी क्रिकेट का असली दबंग दादा है....!