नो वन किल्ड जेसिका से अचानक एक राज कुमार चर्चा में आ गए हैं.. ये हैं बालीवुड निर्देशकों की युवा पीढी के एक और जुझारू सदस्य राज कुमार गुप्ता. इस नाम के ज़ेहन में आते ही दो और नाम कौंधते हैं... राज कुमार संतोषी और राज कुमार हिरानी और अचानक ही अवचेतन मन इन तीनों को कम्पेयर करने में लग जाता है. जो पहली बात दिमाग में आती है वो ये है कि राज कुमार गुप्ता नाम के प्रभाव के मामले में बाकि दोनों राज कुमारों से पिछड़ जाते हैं. क्यूकी शायद उत्तर भारतीय होने के कारन उनका नाम बड़ा ही फेमिलिअर सा लगता है बड़ा आम सा लगता है. पर जब हम क्वालिटी को परखते हैं तो ये फेमिलिअर सा नाम राज कुमार संतोषी और राज कुमार हिरानी से उन्नीस नहीं बैठता. खैर जहा तक तीनो की तुलना का प्रश्न है तो देखते हैं कि इन तीनों के नाम में ही सिमिलरटी है या काम में भी और वो कौन है जिसे बालीवुड का असली राजकुमार कहा जा सकता है.....
राज कुमार संतोषी इन तीनों में सबसे ज्यादा पुराने हैं और सबसे ज्यादा नाटकीय भी. नब्बे के दशक में गोविन्द निहलानी के असिस्टंट के रूप में काम शुरू करने वाले राज कुमार संतोषी ने घायल फिल्म के साथ निर्देशन की दुनिया में कदम रखा. पहली ही फिल्म को सात फिल्म फेयर अवार्ड मिले फिर दामिनी, घातक, पुकार, लज्जा, लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह, खाकी और हल्लाबोल पर बाक्स ऑफिस और एवार्ड शोज़ दोनों ही मेहरबान रहे. और कुछ दिन पहले अपने स्वाद से काफी अलग अज़ब प्रेम की गज़ब कहानी बनाकर फिर सफलता और चर्चा में रहे. कुल मिलाकर उन्होंने बालीवुड के ट्रेंड से जादा छेड़छाड़ ना करते हुए उसमे फ्रस्ट्रेशन और एंगर का तड़का लगाया और ढेर सारी नाटकीयता का मसाला झोंककर हमेशा एक स्वादिष्ट और हिट डिश तैयार करते रहे. लम्बे समय तक काम करना और हिट रहना बताता है कि नयी हवा का रुख भांपकर अपनी डिश के मसाले में ज़रूरी बदलाव करना भी उन्हें अच्छी तरह आता है. जिससे उनकी रेसिपी हमेशा एवरग्रीन बनी रहती है.
अब बात करते हैं राज कुमार हिरानी की, २००३ में मुन्ना भाई एमबीबीएस के साथ अपना निर्देशकीय कैरियर शुरू करने वाले राजकुमार हिरानी भले ही उतने पुराने ना हों, पर सफलता के मामले में असली राजकुमार यही हैं. और इसका क्रेडिट काफी हद तक उनकी कलम को भी जाता है. ऐसा अभी तक नहीं हुआ कि राज कुमार हिरानी फिल्म बनाएं और उसे बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए एवार्ड्स ना मिलें. थ्री इदिअट्स का 'चमत्कार और बलात्कार' वाला सीन इस टैलेंट का ताज़ा उदाहरण है कि वो डायलाग्स से स्पेशल इफेक्ट डालने में कितने माहिर हैं. नाटकीयता के मामले में राज कुमार संतोषी की बराबरी तो नहीं करते पर उनसे ज्यादा पीछे भी नहीं हैं शायद इसीलिये उन्हें क्रिटिक्स का साथ एक हद तक ही मिल पाता है. उनकी मूवीस के सब्जेक्ट्स में एक बड़ी सिमिलार्टी है कि उन्होंने अपने प्लाट्स हमेशा बर्निंग ईस्यूस से ही उठाये हैं. मुन्ना भाई एमबीबीएस में फ्रस्ट्रेशन, लगे रहो मुन्नाभाई में करप्शन और ३ ईडीयट्स में हमारे एजूकेशनल सिस्टम की कुछ बड़ी कमियों को टार्गेट किया है. और यही बात राज कुमार गुप्ता के काम में भी दिखाई पड़ती है. पर ईस्यूज़ के साथ दोनों के ट्रीटमेंट्स में काफी अंतर है.
राज कुमार हिरानी की अप्रोच जादा जनरल है जिससे उनके काम के लम्बे समय तक रिलेवेंट रहने की आशा की जा सकती है. जबकि राजकुमार गुप्ता के साथ ऐसा नहीं है. शायद इसीलिए आमिर से ही नोटिस में आ जाने पर भी नो वन किल्ड जेसिका से उनका नाम नए सिरे से ज़ेहन में आता मालूम होता है. पर गौर करने वाली बात ये है कि उन्हें दर्शकों को बांधके रखने के लिए राज कुमार हिरानी की तरह हलके फुल्के हँसी मज़ाक की मदद नहीं लेनी पड़ती. उनकी कसी हुयी स्क्रिप्ट ही दर्शकों को एंगेज रखने के लिए काफी होती है. एक बहुत बड़ा फर्क ये है कि उन्हें राज कुमार संतोषी और राज कुमार हिरानी की तरह बड़े स्टार्स की मदद नहीं लेनी पड़ती वो कहानी और कैरेक्टर के बलपर फिल्म को हिट करना जानते हैं. और अब बात करते हैं राज कुमार गुप्ता की सबसे बड़ी खासियत की. राज कुमार गुप्ता के काम में नाटकीयता के दर्शन बस नाम मात्र को ही होते हैं जबकि संतोषी और हिरानी बिना लटके झटकों के फिल्म बनाने की सोच भी नहीं सकते. राज कुमार गुप्ता जिन सब्जेक्ट्स पर काम करते हैं उनमे नाटकीयता को दूर रखना जितना ज़रूरी है उतना ही मुश्किल भी. इसलिए निश्चित रूप से राज कुमार गुप्ता का काम क्रिटिक्स की नज़र में भी उतना ही दमदार है जितना कि आम दर्शक की नज़र में.
अब बात करते हैं फ्यूचर की, क्यूकी असली राज कुमार तो वही है भविष्य का राजा हो. ज़रा सोचिये बुद्धिजीवियों की दिन पे दिन बढ़ती संख्या को देखते हुए ये तो साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि राज कुमार संतोषी की शैली अब ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली क्योकि नए ज़माने की हवा को पढना अलग बात है और नए ज़माने का होना एक अलग बात है. अब ऐसे में मुकाबला बचता है हिरानी और गुप्ता के बीच में, जहा तक मै समझता हूँ निकट भविष्य में भले ही राजकुमार हिरानी का पलड़ा भारी नज़र आये पर आखिरकार राज़ कुमार गुप्ता का ही समय आना है.. जब फिल्में किसी ड्रीमलैंड की सैर करने की बजाये हमारे मोहल्ले की गन्दगी दिखाएंगी और कोई गंभीर बात कहने के लिए हलके फुल्के मनोरंजक चुटकुलों की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. इसलिए मै तो मानता हूँ कि इन तीनों में राज कुमार गुप्ता ही बालीवुड के असली राज कुमार हैं. आप क्या सोचते हैं....?
राज कुमार संतोषी इन तीनों में सबसे ज्यादा पुराने हैं और सबसे ज्यादा नाटकीय भी. नब्बे के दशक में गोविन्द निहलानी के असिस्टंट के रूप में काम शुरू करने वाले राज कुमार संतोषी ने घायल फिल्म के साथ निर्देशन की दुनिया में कदम रखा. पहली ही फिल्म को सात फिल्म फेयर अवार्ड मिले फिर दामिनी, घातक, पुकार, लज्जा, लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह, खाकी और हल्लाबोल पर बाक्स ऑफिस और एवार्ड शोज़ दोनों ही मेहरबान रहे. और कुछ दिन पहले अपने स्वाद से काफी अलग अज़ब प्रेम की गज़ब कहानी बनाकर फिर सफलता और चर्चा में रहे. कुल मिलाकर उन्होंने बालीवुड के ट्रेंड से जादा छेड़छाड़ ना करते हुए उसमे फ्रस्ट्रेशन और एंगर का तड़का लगाया और ढेर सारी नाटकीयता का मसाला झोंककर हमेशा एक स्वादिष्ट और हिट डिश तैयार करते रहे. लम्बे समय तक काम करना और हिट रहना बताता है कि नयी हवा का रुख भांपकर अपनी डिश के मसाले में ज़रूरी बदलाव करना भी उन्हें अच्छी तरह आता है. जिससे उनकी रेसिपी हमेशा एवरग्रीन बनी रहती है.
अब बात करते हैं राज कुमार हिरानी की, २००३ में मुन्ना भाई एमबीबीएस के साथ अपना निर्देशकीय कैरियर शुरू करने वाले राजकुमार हिरानी भले ही उतने पुराने ना हों, पर सफलता के मामले में असली राजकुमार यही हैं. और इसका क्रेडिट काफी हद तक उनकी कलम को भी जाता है. ऐसा अभी तक नहीं हुआ कि राज कुमार हिरानी फिल्म बनाएं और उसे बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए एवार्ड्स ना मिलें. थ्री इदिअट्स का 'चमत्कार और बलात्कार' वाला सीन इस टैलेंट का ताज़ा उदाहरण है कि वो डायलाग्स से स्पेशल इफेक्ट डालने में कितने माहिर हैं. नाटकीयता के मामले में राज कुमार संतोषी की बराबरी तो नहीं करते पर उनसे ज्यादा पीछे भी नहीं हैं शायद इसीलिये उन्हें क्रिटिक्स का साथ एक हद तक ही मिल पाता है. उनकी मूवीस के सब्जेक्ट्स में एक बड़ी सिमिलार्टी है कि उन्होंने अपने प्लाट्स हमेशा बर्निंग ईस्यूस से ही उठाये हैं. मुन्ना भाई एमबीबीएस में फ्रस्ट्रेशन, लगे रहो मुन्नाभाई में करप्शन और ३ ईडीयट्स में हमारे एजूकेशनल सिस्टम की कुछ बड़ी कमियों को टार्गेट किया है. और यही बात राज कुमार गुप्ता के काम में भी दिखाई पड़ती है. पर ईस्यूज़ के साथ दोनों के ट्रीटमेंट्स में काफी अंतर है.
राज कुमार हिरानी की अप्रोच जादा जनरल है जिससे उनके काम के लम्बे समय तक रिलेवेंट रहने की आशा की जा सकती है. जबकि राजकुमार गुप्ता के साथ ऐसा नहीं है. शायद इसीलिए आमिर से ही नोटिस में आ जाने पर भी नो वन किल्ड जेसिका से उनका नाम नए सिरे से ज़ेहन में आता मालूम होता है. पर गौर करने वाली बात ये है कि उन्हें दर्शकों को बांधके रखने के लिए राज कुमार हिरानी की तरह हलके फुल्के हँसी मज़ाक की मदद नहीं लेनी पड़ती. उनकी कसी हुयी स्क्रिप्ट ही दर्शकों को एंगेज रखने के लिए काफी होती है. एक बहुत बड़ा फर्क ये है कि उन्हें राज कुमार संतोषी और राज कुमार हिरानी की तरह बड़े स्टार्स की मदद नहीं लेनी पड़ती वो कहानी और कैरेक्टर के बलपर फिल्म को हिट करना जानते हैं. और अब बात करते हैं राज कुमार गुप्ता की सबसे बड़ी खासियत की. राज कुमार गुप्ता के काम में नाटकीयता के दर्शन बस नाम मात्र को ही होते हैं जबकि संतोषी और हिरानी बिना लटके झटकों के फिल्म बनाने की सोच भी नहीं सकते. राज कुमार गुप्ता जिन सब्जेक्ट्स पर काम करते हैं उनमे नाटकीयता को दूर रखना जितना ज़रूरी है उतना ही मुश्किल भी. इसलिए निश्चित रूप से राज कुमार गुप्ता का काम क्रिटिक्स की नज़र में भी उतना ही दमदार है जितना कि आम दर्शक की नज़र में.
अब बात करते हैं फ्यूचर की, क्यूकी असली राज कुमार तो वही है भविष्य का राजा हो. ज़रा सोचिये बुद्धिजीवियों की दिन पे दिन बढ़ती संख्या को देखते हुए ये तो साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि राज कुमार संतोषी की शैली अब ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली क्योकि नए ज़माने की हवा को पढना अलग बात है और नए ज़माने का होना एक अलग बात है. अब ऐसे में मुकाबला बचता है हिरानी और गुप्ता के बीच में, जहा तक मै समझता हूँ निकट भविष्य में भले ही राजकुमार हिरानी का पलड़ा भारी नज़र आये पर आखिरकार राज़ कुमार गुप्ता का ही समय आना है.. जब फिल्में किसी ड्रीमलैंड की सैर करने की बजाये हमारे मोहल्ले की गन्दगी दिखाएंगी और कोई गंभीर बात कहने के लिए हलके फुल्के मनोरंजक चुटकुलों की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. इसलिए मै तो मानता हूँ कि इन तीनों में राज कुमार गुप्ता ही बालीवुड के असली राज कुमार हैं. आप क्या सोचते हैं....?