आज से दो साल पहले कि बात है , उन आखों कि प्रश्नवाचक मुस्कान दिल को चीर सी गयी. कूड़े के ढेर के पास बैठा वह दस- ग्यारह महीने का बच्चा , जिसकी माँ बगल में कूड़ा बीन रही थी , मुझे मेरी असमर्थता पर शर्मसार कर गया ,और उस वक़्त उसे वहां से उठाकर इतर बिठा देने का तो कोई मतलब न था क्योकि स्थायी समस्याओं के अस्थायी समाधान कभी कारगर नहीं होते आखिर वह स्थान उसकी माँ कि आजीविका था तो उसका पालक ; उसने इन कूड़े के ढेरों के आसपास से दुनिया देखनी शुरू की और शायद वहीँ से देखना बंद करे. क्या कर सकते हैं हम खुद को युवा-ब्रिगेड कहने वाले यदि उस नन्ही जान को कूड़े के ढेर से दूर नहीं ले जा सकते, उसके नन्हे हाथों से संक्रमित मिटटी और पोलीथींस के गंदे टुकड़े हटाकर कुछ साफ़ सुथरे खिलौने , और उसकी आखों में एक साफ़-सुथरे भविष्य की आशा नहीं दे सकते तो.
हम कहते हैं- "हमारे पास अपनी tensions हैं, हम खुद ही परेशान हैं, हमारी तकलीफें क्या कम हैं जो हम दूसरों की समस्याओं को देखें/सोचें ." पर वस्तुतः आज जिंदगी कहीं आसान है .लोग खुद को थकाते कम बहलाते ज्यादा हैं .विडम्बना है की हमें techsawy होना था और हम सिर्फ सुविधाभोगी हो गये. जरा महसूस करने की बात है - उनका एक आसूं हमारी लाखो उदासियों पर भारी है. हम अपने अधिकारों के लिए लड़ने की बात करते हैं, क्या कर्तव्यों के लिए आवाज़ भी नही उठा सकते . ये बहाना मत बनाइये की सिर्फ मेरे करने से क्या होगा ,किस-किस को फर्क पड़ेगा ; उस एक बच्चे को तो पड़ेगा और वो एक बच्चा इतना तो अमहत्वपूर्ण नहीं .
मै दुनिया/समाज को बदलने की बात नहीं करती ,सिर्फ जरा सा आखें खोलनी हैं ,थोडा सा समय देना है ,जरा सा प्रयास करना है और हम कुछ इंसानों को जानवरों से बदतर जिंदगी जीने से बचा सकते हैं. ये सब इतना मुश्किल नहीं है कि किया न जा सके , सोचिये किन तरीकों से हम इनकी मदद कर सकते हैं . प्लीज़ अपने अपने कोकून से बाहर आइये .....कुछ लोग सुबह का सुनहरा सूरज देखने की प्रत्याशा में एकटक आपकी राह देख रहे हैं . हम साथ साथ हों तो तस्वीरों को बदलने का माद्दा रखते हैं और हम ऐसा कर सकते हैं .
क्या कहते हैं आप ??
" कुछ जिंदगी भर
जिंदगी के
सलीके लिए फिरते हैं ,
कुछ
नहीं जानते -क्या है जिंदगी
और बस जी लिया करते हैं ;
कुछ के पास शब्द हैं
वो बातें बनाते हैं
और कहते रहते हैं ,
वहीँ कुछ के पास
आवाज़ भी नहीं
और वो सहते रहते हैं".
हम कहते हैं- "हमारे पास अपनी tensions हैं, हम खुद ही परेशान हैं, हमारी तकलीफें क्या कम हैं जो हम दूसरों की समस्याओं को देखें/सोचें ." पर वस्तुतः आज जिंदगी कहीं आसान है .लोग खुद को थकाते कम बहलाते ज्यादा हैं .विडम्बना है की हमें techsawy होना था और हम सिर्फ सुविधाभोगी हो गये. जरा महसूस करने की बात है - उनका एक आसूं हमारी लाखो उदासियों पर भारी है. हम अपने अधिकारों के लिए लड़ने की बात करते हैं, क्या कर्तव्यों के लिए आवाज़ भी नही उठा सकते . ये बहाना मत बनाइये की सिर्फ मेरे करने से क्या होगा ,किस-किस को फर्क पड़ेगा ; उस एक बच्चे को तो पड़ेगा और वो एक बच्चा इतना तो अमहत्वपूर्ण नहीं .
मै दुनिया/समाज को बदलने की बात नहीं करती ,सिर्फ जरा सा आखें खोलनी हैं ,थोडा सा समय देना है ,जरा सा प्रयास करना है और हम कुछ इंसानों को जानवरों से बदतर जिंदगी जीने से बचा सकते हैं. ये सब इतना मुश्किल नहीं है कि किया न जा सके , सोचिये किन तरीकों से हम इनकी मदद कर सकते हैं . प्लीज़ अपने अपने कोकून से बाहर आइये .....कुछ लोग सुबह का सुनहरा सूरज देखने की प्रत्याशा में एकटक आपकी राह देख रहे हैं . हम साथ साथ हों तो तस्वीरों को बदलने का माद्दा रखते हैं और हम ऐसा कर सकते हैं .
क्या कहते हैं आप ??
" कुछ जिंदगी भर
जिंदगी के
सलीके लिए फिरते हैं ,
कुछ
नहीं जानते -क्या है जिंदगी
और बस जी लिया करते हैं ;
कुछ के पास शब्द हैं
वो बातें बनाते हैं
और कहते रहते हैं ,
वहीँ कुछ के पास
आवाज़ भी नहीं
और वो सहते रहते हैं".