आखिर मै ही क्यूँ परिंदा हूँ

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  • Saturday, November 20, 2010


  • जिस गली में तेरे चर्चे है 
    अफ़सोस वहीँ का मै बाशिंदा हूँ

    कोई दीमक हो गर तुम तो 
    मै दिल से नम हूँ मै शर्मिंदा हूँ 

    अनेकों शाजिसें हैं क्या सोचूं 
    बुरा हूँ या मै नेक बन्दा हूँ ?

    शहर में तमाम आशियाने है 
    फिर आखिर मै ही क्यूँ परिंदा हूँ 

    अरे जाने दो ये दुनियादारी
    ये क्यों नहीं कहते कि मै गंदा हूँ

    चटका के दिल को तोड़ने वाले
    गजब है! आज भी मै जिन्दा हूँ 
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