मेरी मंजिल.................संजय भास्कर

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  • Saturday, November 27, 2010

  • यहाँ हर किसी कि अपनी मंजिल अपने रस्ते
    कोई कुछ नहीं करता किसी के वास्ते ,
    हर कोई रहता अपने ऐशो आराम में ,
    उन्हें कुछ नहीं दिखता फायदा दया के काम में ,
    मैं दुसरो का भला करे कि सोचता रहूँ ,
    पर मेरे पास दान के लिए कुछ भी नहीं
    मैं किसी को क्या कहूं ,
    मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ ,
    अकेले बैठ उन्हें , उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ ,
    पर यु खाली सोचने से कुछ बनता नहीं ,
    गरीबो के दुखों को दूर करने के लिए धन चाहिए ,
    पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
    ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
    मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
    इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||
    चित्र :- ( गूगल देवता से साभार  )
     

    ..............संजय कुमार भास्कर
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