वो अब दर दर भटक रहे है , मोहब्बत को ऐसे तरस रहे है

Posted on
  • Thursday, November 11, 2010





  • वो अब दर दर भटक रहे है
    मोहब्बत को ऐसे तरस रहे है

    कभी लुटा था खूब वफाई को
    फिर क्यों वो बेवफाई से डर रहे है

    बेवक्त बेवजह खाम खा सताया
    और अब खुद पर बरस रहे है
    जब थे साथ तब कभी माना नहीं
    और अब परछाई को तरस रहे है


    "मनी" अब न हो पाए वो कभी किसी के
    शायद इसी गम से घुट घुट के मर रहे है



    ...........मनीष शुक्ल
    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!