कुछ दिनों पहले हमारे इक मित्र ने हमें ई-मेल के माध्यम से एक निहायत ही खूबसूरत ग़ज़ल भेजी. सोचा क्यूँ न इतनी बेहतरीन रचना को आप सब तक पहुँचाया जाए....! तो लीजिये, सर्वत एम् ज़माल की यह बेहतरीन ग़ज़ल आज आपके सामने है -
अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम अक्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम अक्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
--- सर्वत एम जमाल