वर्ल्ड कप २००३ की बात है जब भारत की युवा टीम गांगुली के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका जा रही थी. उसके ठीक पहले गांगुली ने तेज़ गेंदबाज़ श्री नाथ से टीम में वापस आने की अपील की थी. और फिर श्रीनाथ जो पहले ही सन्यास की घोषणा कर चुके थे, ने उनका अनुरोध स्वीकार कर टीम में वापसी की थी और सिर्फ फिनाल मच को छोडकर बाकी मचों में शानदार प्रदर्शन किया था. वैसा ही उदाहरण यहाँ धोनी भी पेश कर सकते थे. सचिन भले ही टी-२० टीम का हिस्सा कभी न रहे हों. पर वो आईपीएल में पर्पल कैप जीतने में सफल रहे हैं. और उनके प्रदर्शन की बदौलत ही मुंबई फिनाल तक कर रास्ता तय कर पाई. ऐसे में हम उसी फॉर्मेट का सबसे बड़ा खिताबी मुकाबला खेलने जा रहे हैं. वो भी सचिन के बिना. हमारा देश सबसे बड़े मुकाबले में अपने सबसे उम्दा बल्लेबाज़ के बिना क्यों जा रही है ये विचारणीय है. जबकि सबको पता है कि सचिन से यदि अनुरोध किया जाये तो वो देश हित में उसे ज़रूर स्वीकार करेंगे. कोई भी सम्मान अपमान या राजनीती उनके लिए देश हित से बढ़कर नहीं है. ऐसे में यह देखकर आश्चर्य होता है कि उनसे बोर्ड या धोनी किसी ने भी वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने की अपील नहीं की. और ताज्जुब है कि इस पर कहीं कोई चर्चा भी नहीं हो रही. विश्व कप जीतना पूरे देश के लिए गर्व का विषय होता है. फिर क्या हम उसमे लापरवाही बरत रहे है. या कोई राजनीती हमें ऐसा करने से रोक रही है तो ये वाकई शर्म का विषय है. जब सचिन आईपीएल में खेल सस्कते हैं तो वो वर्ड कप में हिस्सा लेने से क्यों इंकार करेंगे इसका कारन नहीं समझ आता. फिर क्या सचिन से अपील करने में बोर्ड छोटा हो जायेगा या फिर धोनी की इज्ज़त कम हो जायेगी ऐसा भी मुझे नहीं लगता.
युवाओं को मौका मिलने का मतलब ये कतई नहीं है. कि हम अपने सबसे उम्दा बल्लेबाज के बिना वर्ल्ड कप में जाएँ. बीसीसीअई की कोई भी पालिसी राष्ट्रीय टीम की सफलता से बड़ी नहीं हो सकती. यदि धोनी ऐसा करते तो इससे उनका सम्मान कम न हो जाता बल्कि उनके छवि और बेहतर ज़रूर होती. --- असीम त्रिवेदी