भूत नाथ जी और काफ्का
असीम ने जब भूतनाथ जी की तुलना काफ्का की कहानियों से की तो एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा मगर कुछ ही देर में मैंने जब उनकी दोनों रचनाएँ 'पिघलता जा रहा हूँ' और 'किसी शै समझ नहीं पाता' पढ़ी तो लगा की वाकई क्या बेहद शानदार तुलना थी यह . आज भूतनाथ जी ( राजीव जी ) का कमेन्ट देखा तो मन किया की काफ्का की एक दुर्लभ कहानी आपसे शेयर करूँ
साक्ष्य के अनुसार हत्या इस प्रकार से की गई थी: हत्यारा, श्मार, एक उजली चांदनी रात में करीब 9 बजे एक कोने में घात लगाए खड़ा था, उसी जगह उसका शिकार वेज, अपने दफ्तर वाली गली से घर वाली गली की ओर मुड़ता था। रात की हवा ठंडी कंपकंपाती थी, तब भी श्मार महीन नीली कमीज ही पहने हुए था, जैकिट के बटन भी खुले थे। उसे जरा भी सर्दी नहीं लग रही थी और वह पूरे समय इधर-उधर टहल रहा था। अपना हथियार-आधा छुरा आधा घरेलू चाकू-उसने मजबूती से अपनी हथेली में कस रखा था और उसकी धार नंगी थी। उसने चांद की रोशनी में चाकू को देखा, ब्लेड चमचमा रही थी, श्मार को तसल्ली नहीं हुई, उसने फुटपाथ के पत्थर पर उसे रगड़ा और चिनगारियां उछल पड़ी, अरे कहीं खराब न हो गया हो, शायद और इसीलिए उसने किसी कट फट को सुधारने के लिए उसे अपने जूते के सोल के ऊपर वाइलिन -बो की तरह फिराया, वह एक पैर पर आगे झुक गया और ध्यान से दोनों आवाजों को: अपने बूट पर सान चढ़ते चाकू की और अगल से आती अभागी गली में से उठती किसी खटखटाहट की आवाजों को सुनता रहा। घरेलू कामकाजी कोई नागरिक, पलास, समीप ही के घर की खिड़की से यह सब देख रहा था, मगर वह क्यों चुप रहा? जरा मानवीय स्वभाव के रहस्य को तो देखो। अपने स्थूल बदन पर ड्रेसिंग गाउन के फंदे कसे हुए और कॉलरों को ऊंचा चढ़ाए वह बस सिर डुलाते हुए नीचे देखता खड़ा रहा। और पांच घर आगे, गली की उलटी तरफ, अपने नाइट गाउन से ऊपर फर कोट पहने मिसेज वेज अपने पति की बाट जोहती बार-बार झांक रही थी, जो आज रात घर लौटने में अप्रत्याशित देरी कर रहा था। आखिर वेज के दफ्तर की घंटी बजी और बहुत जोर से बजी, सारे शहर में गूंजती हुई और आकाश फाड़ती हुई, और रात पाली का मेहनतकश मजदूर, वेज इमारत से बाहर निकल कर गली में ओझल हो गया, सिर्फ घंटी की ध्वनि ही उसके आगमन की सूचक थी। एकाएक फुटपाथ पर उसके पदचापों की हल्की हल्की थपथपाहट उभरी। पलास और ज्यादा आगे झुक गया। वह आंखें गड़ा कर सब कुछ देखना चाहता था। मिसेज वेज ने घंटी से आश्वस्त होकर, फटाफट अपनी खिड़की बंद कर दी, लेकिन श्मार दुबका ही रहा और चूंकि उसके शरीर का कोई अन्य भाग खुला नहीं था उसने अपने चेहरे और हाथों को भी फुटपाथ पर जोरों से दबा दिया, जहां सब कुछ ठंड से जमा हुआ था, मगर श्मार लाल दमक रहा था। ठीक उसी कोने में जहां गलियां मिलती थीं वेज एक पल सुस्ताया, सिर्फ उसकी हाथ छड़ी घूम कर दूसरी गली में टिकी। एकाएक एक झक, मानो रात के आकाश ने उसे पुकारा, अपना नील, अपना सुवर्ण दिखाकर। अनजाने ही वह ऊपर उसकी ओर देखने लगा, अनजाने ही उसने अपना हैट उतारा और बालों पर हाथ फेरा, वहां ऊपर जो कुछ था वह कुल मिलाकर ऐसे किसी पैटर्न में ढलता नहीं था जो उसे आसन्न संकट का पूर्वाभास दे दे, सब कुछ उनके अर्थहीन, अभेद्य स्थानों में अटल था। अपने आप में यह अत्यंत चैतन्यशील काम था कि वेज चलता ही चला जाए, मगर वह तो श्मार के चाकू की ओर ही चला। '' वेज'' श्मार चीखा। वह अपने पंजों के बल खड़ा था, उसका हाथ आगे खिंचा हुआ था, चाकू तीखी दिशा में नीचे झुका हुआ था, ''वेज'' तू अब जूलिआ से कभी नहीं मिल पाएगा।'' और सीधा गले में और उलटा गले में और तीसरी बार पेट में श्मार का चाकू जा घुसा। पानी के फव्वारे की जैसे टोंटी खोल दी गई हो वैसी ही आवाज वेज के बदन में से निकली। '' खत्म'', श्मार बोला और उसने खून से लबालब सने चाकू को नजदीकी घर के सामने की मिट्टी में गाड़ दिया। हत्या का परम आनंद, एक राहत अनुपम आह्लाद, दूसरे का खून गिराने में। वेज पुराना निशाचर साथी, गहरा दोस्त, मदिरालय का हमप्याला, तू प्यारे इस गली की अंधेरी धरती के नीचे गल-गल के रिस रहा है। तू सिर्फ खून का एक गुब्बारा भर क्यों नहीं है, ताकि मैं भड़ाक-से तुझे पीटता और तू शून्य में लुप्त हो जाता पर जैसा हम चाहते हैं वैसा ही तो नहीं हो जाता, सारे सपने जो खिलते हैं सभी में तो फूल नहीं लगते, तेरा लौंदा अब यहीं पड़ा है, हर ठोकर से बेअसर, लेकिन इन गूंगे सवालों को उठाने से क्या फायदा? पलास अपने बदन में भर गए भय और आतंक की उथल पुथल से घुटता हुआ अपने घर के दो पट वाले दरवाजे के भीतर खड़ा ही था कि एकाएक वह फटाक से खुल पड़ा। ''श्मार ! श्मार ! मैंने सब कुछ देखा, सब कुछ।'' पलास और श्मार ने एक दूसरे को गौर से भांपा जांचा। जांच से पलास को संतोष हुआ, श्मार किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया। मिसेज वेज अपने दोनों ओर लोगों की भीड़ के बीच दौड़ती-दौड़ती-सी आई। उसका चेहरा सदमे से एकदम मुरझा गया था। उसका फर कोट खुला था और लटक गया था। वह वेज के ऊपर जा गिरी, नाइट गाउन में लिपटा वह बदन वेज का ही तो था युगल के ऊपर फैला हुआ फर कोट जैसे किसी कब्र की दूब हो जहां लोग आए थे। श्मार बड़ी ताकत लगाकर अपनी मिचलाहट से उभरने का कशमकश कर रहा था। उसने पुलिसमैन के कंधे पर अपना सिर टिका दिया जो धीरे धीरे कदम बढ़ाता हुआ उसे आगे खींचता ले गया। |