दरअसल 2 जी घोटाले के बाद से ही कांग्रेस और प्रधानमंत्री के साथ ही भ्रष्टनेताओं के खिलाफ कोई न कोई पोस्टर और पेज इनके नाम से बन ही जाता है. जिस पर कमेन्ट करने वाले अपने तरीके से और विस्तारपूर्वक अपनी राय रख देते हैं.
Ashish Tiwari,
Dakhalandazi.
कांग्रेस में शब्द-वीरों की कमी नहीं है. आये दिन कोई न कोई शब्दवीर कुछ न कुछ जरुर ऐसा बोल जाता है जिससे की मीडिया से लेकर सड़क और फेसबुक तक लोगों के लिए बातचीत का एजेंडा ही बदल जाता है. वैसे दिग्विजय सिंह और राहुल गाँधी आयेदिन कांग्रेस के शब्दवीरों के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देते हैं. लेकिन इस बार बहुत दिन बाद कांग्रेस के दिग्गज वकील कपिल सिब्बल शब्दवीर के रूप में दिखाई दिए हैं.
कांग्रेस में शब्द-वीरों की कमी नहीं है. आये दिन कोई न कोई शब्दवीर कुछ न कुछ जरुर ऐसा बोल जाता है जिससे की मीडिया से लेकर सड़क और फेसबुक तक लोगों के लिए बातचीत का एजेंडा ही बदल जाता है. वैसे दिग्विजय सिंह और राहुल गाँधी आयेदिन कांग्रेस के शब्दवीरों के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देते हैं. लेकिन इस बार बहुत दिन बाद कांग्रेस के दिग्गज वकील कपिल सिब्बल शब्दवीर के रूप में दिखाई दिए हैं.
उन्होंने अपने विशुद्ध कांग्रेसी होने का परिचय देते हुए और सरकारी डंडे को दिखाकर फेसबुक से कहा है की वो आपत्तिजनक सामग्री को नियंत्रित करने के साथ हटा दे. उन्होंने कहा की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ये नहीं की वो किसी का मजाक बनाये.
उनके ऐसा कहते ही मीडिया से लेकर फेसबुक तक कपिल सिब्बल और उनका ये बयान छा गया. और परिणाम स्वरुप हुआ ये की फेसबुक से लेकर गूगल तक ने उन्हें स्पष्ट रूप से ऐसा कुछ भी करने से मना कर दिया और ये जता दिया की कपिल सिब्बल और उनके बात की अहमियत क्या है?
वैसे इस बयान को कपिल सिब्बल की कांग्रेस की स्वामिभक्ति अधिक कही जा सकती है जिस तरह से सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और उनके प्यारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कार्टून और पोस्टर गूगल और फेसबुक पर छाए रहते हैं. उससे कोई भी स्वामिभक्त कांग्रेसी बिदक सकता है. वो तो कपिल सिब्बल जी को कानून का कीड़ा भी काट चुका है इसलिए उन्होंने अपने पद और गरिमा के अनुरूप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा लिया है. वो भी ये जानते हुए कि न्यू मीडिया और खासकर फेसबुक के लिए अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता अपना क्या वजूद रखती है.
उनके ऐसा कहते ही मीडिया से लेकर फेसबुक तक कपिल सिब्बल और उनका ये बयान छा गया. और परिणाम स्वरुप हुआ ये की फेसबुक से लेकर गूगल तक ने उन्हें स्पष्ट रूप से ऐसा कुछ भी करने से मना कर दिया और ये जता दिया की कपिल सिब्बल और उनके बात की अहमियत क्या है?
वैसे इस बयान को कपिल सिब्बल की कांग्रेस की स्वामिभक्ति अधिक कही जा सकती है जिस तरह से सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और उनके प्यारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कार्टून और पोस्टर गूगल और फेसबुक पर छाए रहते हैं. उससे कोई भी स्वामिभक्त कांग्रेसी बिदक सकता है. वो तो कपिल सिब्बल जी को कानून का कीड़ा भी काट चुका है इसलिए उन्होंने अपने पद और गरिमा के अनुरूप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा लिया है. वो भी ये जानते हुए कि न्यू मीडिया और खासकर फेसबुक के लिए अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता अपना क्या वजूद रखती है.
वैसे अगर अब बात उन कमेन्ट और पोस्टरों के बारे में की जाये तो ये कंटेंट कांग्रेस सरकार के 2 जी घोटाले के सामने आने के बाद बढे हैं. जबकि फेसबुक और गूगल इन सबसे पहले से अपना व्यवसाय चला रहे हैं और अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इतना ख्याल था तो भारत में आने के साथ ही इन्हे अभिव्यक्ति के मायने जो कांग्रेस के अनुसार सही है बता देने चाहिए थे. दरअसल 2 जी घोटाले के बाद से ही कांग्रेस और प्रधानमंत्री के साथ ही भ्रष्टनेताओं के खिलाफ कोई न कोई पोस्टर और पेज इनके नाम से बन ही जाता है. जिस पर कमेन्ट करने वाले अपने तरीके से और विस्तारपूर्वक अपनी राय रख देते हैं.
वैसे अगर इसे लोगों की भड़ास भी कहा जा सकता है. वो लोग जो नेताओं को प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कह सकते, न जूता फ़ेंक सकते हैं और न ही थप्पड़ ही मार सकते हैं. लेकिन जिस तरह से इन्हे न्यू मीडिया में अपनी बात कहने का मौका मिलता है वो खुलकर अपना गुस्सा दिखा देते हैं. ये वो लोग हैं जो पढ़े लिखे हैं, हर छेत्र से जुड़े हैं. इनमे वकील, पत्रकार और शिक्षक भी शामिल हैं, जिन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ पता है. ये वो लोग हैं जो शरद पवार पर थप्पड़ पड़ने के बाद तुरंत उसे अपनी स्वीकृति दे देते हैं, कि एक ही मारा अगर हमारे तरफ से एक और मारा होता तो क्या बात होती?
वैसे कांग्रेस इसे एक फीडबैक के रूप में भी ले सकती थी, कि लोगों के मन में उनके राजकाज को लेकर क्या विचार हैं. वो इसे इस रूप में भी देख सकते थे कि देश के युवा जो फेसबुक पर बैठे हैं, कांग्रेस के परिवारवाद से ऊब चुके हैं. उन्हें राहुल गाँधी के रूप में नौसिखया युवराज नहीं चाहिए. वो इससे प्रेरणा लेकर कांग्रेस को साफ सुथरा बनाने और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का काम करते तो अच्छा होता.
वैसे कांग्रेस के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कितना सम्मान करती है वो इतिहास में आपातकाल को याद करके ज्यादा स्पष्ट होता है. उनके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ उनका विरोध न होने तक ही सीमित है. अगर फेसबुक पर अगर लोग सिर्फ आपस में हाय-हैलो करते और भ्रष्टाचार को अनदेखा कर देते तो शायद वो फेसबुक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रचार के लिए नोबेल तक देने का जुगाड़ करते. लेकिन पैसे के लालची फेसबुक को कांग्रेस से कोई मतलब नहीं इसलिए कांग्रेसी वकील नाराज हो गए.
शायद वो एफ डी आई को हरी झंडी न मिलने , महंगाई को लेकर किरकिरी होने और जन लोकपाल बिल को लेकर जन समर्थन को देखकर काफी परेशान होंगे और कुंठित भी कि दुसरे वकील मनुसिंघवी तो पोलिओ ग्रसित लोकपाल लाकर कही गाँधी परिवार के ज्यादा चहेते न बन जाये. इसलिए वो अपनी भडास फेसबुक पर निकल निकल रहे हैं ताकि गाँधी परिवार को लगे कि ये वकील भी उनका कितना शुभ चिन्तक है.वैसे अभी कपिल सिब्बल को देखकर यही कहा जा सकता है कि खिसियाये सिब्बल फेसबुक नोचे....

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