बलात्कार की घटनाओं में आयी तीव्रता किसी भी समाज के लिए अशोभनीय और शर्मनाक ही है.परन्तु ओनर किलिंग के मामले भी इसी घटिया श्रेणी के हैं. कई दिनों से गहन सोच के बाद उभरे इस स्वर में कहना ये है कि क्या आज भी हमारे समाज किसी लड़की के प्रेम को स्वीकार्यता नहीं दे पा रहा है ?
Arvind Tripathi
arvindtripathi99@gmail.com
विगत दिनों अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस था. आज माँ दुर्गा के पावन शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन है.उस दिन से आज तक मेरे मन में लगातार उथल-पुथल जारी है. क्या आज के समाज में स्त्री का दोष ही उसका स्त्री होना है ? माँ और बेटी के पर्व के अवसरों के परिप्रेक्ष्य में कहूँगा कि आज का समाज बेटी और माँ दोनों में से किसी का सम्मान करना नहीं सीख पाया है. चाहे वो अपना देश हो या फिर विदेश.
माँ दुर्गा को ये सम्मान देवताओं ने तभी दिया जब उन्होंने अपनी शक्ति को सिद्ध किया. जब हथियार उठाये.राक्षसों का नाश किया.मधु-कैटभ, दुर्गम , रक्त-बीज और शुम्भ-निशुम्भ सहित तमामों को मौत के घात उतार दिया. क्या आज की नारी के समक्ष वैसी ही स्थिति नहीं आ रही है कि वो भी हथियार उठाकर अपनी अस्मिता की रक्षा करे ! यदि हाँ, तो ये सभ्य कहलाने वाले समाज के लिए शर्मनाक है कि हम अपनी बेटियों , चाहे वो अविवाहिताये हों या विवाहिताएं, उनका सम्मान और गौरव नहीं बचा पा रहे हैं.
बलात्कार की घटनाओं में आयी तीव्रता किसी भी समाज के लिए अशोभनीय और शर्मनाक ही है.परन्तु ओनर किलिंग के मामले भी इसी घटिया श्रेणी के हैं. कई दिनों से गहन सोच के बाद उभरे इस स्वर में कहना ये है कि क्या आज भी हमारे समाज किसी लड़की के प्रेम को स्वीकार्यता नहीं दे पा रहा है ? प्रेम और व्यभिचार के अंतर को मानना होगा.
प्रेम को सम्मान देना सीखना होगा. बड़ों का ये दायित्व तो है कि वो अपने बेटे और बेटियों को अपने पैरों पर मजबूत करें और अपना बुरा-भला जानने हेतु सक्षम बनाएँ.पर अपनी राय और मत थोपें नहीं. कम-से-कम जान की कीमत पर कदापि नहीं. किसी युवा प्रेमी जोड़े की मौत मुझे जाने क्यों कष्ट देती है. ऐसा लगता है कि समाज में अभी भी सभ्यता के विकास में कहीं न कही कमी रह गयी है. कथित मध्यवर्ग में तो इसे कभी बर्दाश्त नहीं किया जाता है. जो उसकी सोच में अप्रौढता का परिचायक है.
इस से बढ़कर शर्मनाक उन मासूम बच्चियों की यौन शोषण की घटनाएं जो इस समाज में हम पारिवारीजनों के साथ ही जीना शुरू कर रही होती है. परिवार , विद्यालय और रिश्तेदारी में किसी यौन-शोषण के कारण उनके मनो-मस्तिष्क पर पड़ने वाली छाप से वो जीवन-भर उबर नहीं पाती हैं. बहुत सी ऎसी हैं जिन्हें अपनी जान खोनी पड़ जाती है. कानपुर में विगत वर्ष स्कूल गयी मासूम दिव्या की यौन-शोषण के बाद की मौत ने मुझ सहित बहुत से लोगों को हिला दिया है. आज भी जब वो घटना याद आती है तो अपने पुरुष होने पर शर्म और घिन पैदा होती है. केवल कुछ समय के भावावेग की कीमत किसी मासूम कि जान कैसे हो सकती है.सभ्य कहलाने वाले आज के समाज में ऎसी घटनाएं अत्यंत शर्मनाक हैं.
सिर्फ चंद रंगीन कागज़ के टुकड़ों और अपनी सुख-सुविधा में थोड़े इजाफे के लिए ही नव-विवाहिता के सपने तोड़कर उसकी जान ले लेना जघन्यतम अपराध है. ये आशा, विशवास और सपनों की ह्त्या है. इसमें केवल एक जान ही नहीं जाती वरन इन सब की भी ह्त्या होती है. अपनी घर-परिवार छोड़कर एक नवीन जीवन जीने के सपने के साथ आई नव-विवाहिता को किस तरह घुटन भरी मौत मिलती है ये सोंच कर ही सिहर जाता हूँ. हाँ, ये दहेज उत्पीडन का क़ानून और दहेज ह्त्या का आरोप कई बार सच नहीं होता, परन्तु बहुत ज्यादा बार सच भी होता है. मेरा मानना है कि अधिकतम बार सच ही होता है. चाहे 'वो' जीवित बचे या नहीं , हर हाल में वो विवाह के पवित्र रिश्ते को तोडना नहीं चाहेगी. फिर झूठा आरोप क्यों लगायेगी. मैं ऐसे कई मामले जानता हूँ जब किसी लड़की ने अपने नपुंसक पति को भी इस वजह से बर्दाश्त किया कि वो उसका पति है और ये पवित्र वैवाहिक बंधन न टूटे.समाज क्या कहेगा.पर उन्हें भी त्रास मिला.
आशा करता हूँ, आप सभी इस नव-रात्रि में ये संकल्प लेंगे कि समाज में महिला जाति को अधिकतम सम्मान देंगे और दिलवाएंगे.उसके सपनों को टूटने से बचायेंगे और धरती में उसके आने के फैसले को वापस लेने से रोकेंगे. नयी कोपल को खिलने में मदद करेंगे. कन्या भ्रूण-ह्त्या को हतोत्साहित करेंगे और रोकने में पूरी मदद करेंगे.
तभी देवी प्रसन्न होंगी, साथियों. और तभी असली नव-रात्रि होगी..!

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