सचिन अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में 1989 में आए। ये वो समय था जब भारत में नेहरूवियन समाजवाद अपनी अंतिम दिनों को गिन रहा था। समाज व्यापक बदलावों के लिए कुलबुला रही थी। अगले कुछ ही सालों में मनमोहन सिंह ने भारतीय बाजार को धीरे-धीरे आर्थिक ताक़तों के लिए खोल दिया था। बाजार का दम भी सचिन को उस मुकाम तक पहुंचाने में मदद करने वाली थी, जहां वो आज हैं।

Rajiv K Mishra
http://kissago.blogspot.com
आज सचिन अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में 20 साल पूरा कर रहे हैं। इन 20 वर्षों में सचिन ने सफ़लता के कई मुकाम खड़े किये। कितनी ही रिकार्डें ध्वस्त की...कई नए कीर्तिमान बनाए...इस खेल की नई परिभाषाएं गढ़ीं। क्रिकेट प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन भी किया। लेकिन क्या सचिन इतिहास के सबसे महान क्रिकेटर हैं?? सच है, सचिन ने वन डे और टेस्ट में जो रनों का पहाड़ खड़ा किया है, वो अपने आप में मिसाल है, और आने वाले सालों साल तक कोई खिलाड़ी उनके रिकार्ड के आसपास भी पहुंचता नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन व्यक्तिगत रन और महानतम होना, दो अलग-अलग बातें हैं। मेरे जेनरेशन के लोगों ने सुनिल गावस्कर को कम ही खेलते देखा है। लेकिन मुझे वो सचिन से महान और बेहतरीन बल्लेबाज लगते हैं। ये विचार बिल्कुल ही व्यक्तिगत हैं।

सचिन अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में 1989 में आए। ये वो समय था जब भारत में नेहरूवियन समाजवाद अपनी अंतिम दिनों को गिन रहा था। समाज व्यापक बदलावों के लिए कुलबुला रही थी। अगले कुछ ही सालों में मनमोहन सिंह ने भारतीय बाजार को धीरे-धीरे आर्थिक ताक़तों के लिए खोल दिया था। बाजार का दम भी सचिन को उस मुकाम तक पहुंचाने में मदद करने वाली थी, जहां वो आज हैं। हम गुलामी की मानसिकता से बाहर निकल रहे थे। दुनिया से दो-दो हाथ करने की हमारी बेताबी हिलोरें ले रही थी। सचिन, हमारी मानसिकता के इसी बदलाव के प्रतीक बने। मैं तो उस वक्त बहुत छोटा था, लेकिन आज मुड़ कर किताबों के माध्यम से उस वक्त को देखता हूं, तो बदलाव स्पष्ट दिखता है। उस समय विदेशों में हमारी दो तरह से पहचान होती थी। एक टैक्सी चलाने वाला हिन्दुस्तानी, दूसरा सीलिकन वैली में पहुंचे नए रंगरूटों की फौज, जो आने वाले समय में भारत की पहचान बनने वाले थे। विश्व मंच पर ‘ब्रांड इंडिया’ का आगाज़ हो चुका था। हमारी ये नई पोजीशन हमें सूकून भी दे रही थी। उससे पहले हमें ‘सपेरों के मुल्क’ का ही प्रतिनिधित्व करते थे। एक परसेपस्न थी कि हम आलसी हैं, जो कर्म से ज्यादा भाग्य पर यकीन रखते हैं। ये अलग बात थी की कर्म की सबसे बड़ी बाईबल ‘गीता’ हमारी धरती पर ही लिखी गई थी। किसी पश्चिम के विद्वान नें हमें विश्व का सबसे बड़ा ‘अराजक लोकतंत्र’ तक कहा था।
गावस्कर ने ऐसे तेज़ गेंदबाजों का सामना किया जो क्रिकेट इतिहास में पहले कभी नहीं देखा था, न ही आगे देखा। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह थी कि पहली बार कोई देशी जीतने की मांईडसेट से खेलने उतरा था। गावस्कर से पहले हम खेलने के लिए खेलत थे, जीतने के लिए नहीं। मैदान के चारों और लगने वाले गावस्कर के चौकों, छक्कों से कड़कड़ाहट से हमारी तंद्रा टूटी। खेल की भावना तो हमारे अंदर थी, लेकिन जीतने का ख़्वाब पहली बार हमने गावस्कर की आंखों से ही देखा था। गावस्कर पहले भारतीय क्रिकेटर थे, जिन्होंने विरोधी टीम की आंखों में घूरा। जिसकी शाट्स की चमक गेंदबाजों को विस्मृत कर देती...चौधिया देती। आप इसे मनोवैज्ञानिक इंजीयरिंग कह सकते हैं। आज हरभजन या सचिन अगर विरोधियों की आंखों में विजय भाव से घूर सकते हैं, तो इसका श्रेय गावस्कर को ही जाता है। ऐसा भी नहीं है कि उस वक्त हमारी टीम में गावस्कर से बेहतर खिलाड़ी नहीं थे...लेकिन हौसले का आभाव तो था ही। सैकड़ों वर्षों की गुलामी मानसिकता मैदान पर भी दिख जाती। गावस्कर ने इसी जिंक्स को तोड़ा था। पहला खिलाड़ी जिसने आस्ट्रेलिया में आस्ट्रेलिया के ख़िलाफ वॉक आउट करने की हौसला दिखलाया। भारतीय क्रिकेट का प्रथम पुरूष जो अपनी कमजोरियों को समझता था, फिर भी जीतने के लिए ही मैदान में उतरता था। वो विजय भाव से खेलता, हार उसे यकीनन मंजूर नहीं था। जीतने का चस्का हमें गावस्कर ने ही लगाया था।



1989 में जब सचिन आए, उस वक्त तक गावस्कर ने उनके लिए ज़मीन तैयार कर दी थी। 84 में भारत विश्व कप जीत चुका था। क्रिकेट के मक्का लार्ड्स में तिरंगा लहराया जा चुका था। भारत अब जीतने लगा था। हम विरोधियों की आंखों में झांकने की हिम्मत करने लगे थे। एक देश और समाज के रूप में भारत कांफिडेंट हो गया था। हमारे अंदर औपनिवेशिक सोच की जगह वैश्विक सोच ने ले ली थी। दुनिया भी मानने लगी थी, हम किसी से कमतर नहीं हैं...हम भी जीत सकते हैं। सचिन इन्हीं लग्जरी के बीच ग्रांउड पर उतरे थे। गावस्कर ने अपनी ज़मीन ख़ुद ही तैयार की थी...नियम ख़ुद ही गढ़ा था। सचिन अपने लिए खेलने उतरे थे, गावस्कर ने देश के लिए ग्रांउड वर्क किया था।
गावस्कर को क्रिकेट ही नहीं भारतीय मानसिकता के पुनर्जागरण का श्रेय भी जाता है। अगर हमारे लिए क्रिकेट धर्म है...सचिन भगवान हैं...तो गावस्कर निश्चित ही उस भगवान से बड़े हैं। क्रिकेट का पहला विद्रोही...और शायद सेट ट्रेंड से इसी बगावती सोच के कारण गावस्कर ने कभी हेलमेट पहन कर नहीं खेला...कभी नहीं। और कल्पना कीजिए उन्होंने किस तरह के गेदबाजों का सामन किया..माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्टस, जोएल गार्नर, डेनिस लिली, जैफ थॉमसन, मैल्कम मार्शल, बॉब विल्स, सर रिचर्ड हैडली, इमरान ख़ान, सरफ़राज नवाज़, वसीम अकरम...। ये सब लगातार 90 की रफ़्तार से तेज़ गेदबाजी करने में सक्षम थे। और एक भी गेंद सन्नी को छू तक नहीं सकी...। क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि सचिन इन गेंदबाजों का सामना बिना हेलमेट के कर पाते।
गावस्कर को क्रिकेट ही नहीं भारतीय मानसिकता के पुनर्जागरण का श्रेय भी जाता है। अगर हमारे लिए क्रिकेट धर्म है...सचिन भगवान हैं...तो गावस्कर निश्चित ही उस भगवान से बड़े हैं। क्रिकेट का पहला विद्रोही...और शायद सेट ट्रेंड से इसी बगावती सोच के कारण गावस्कर ने कभी हेलमेट पहन कर नहीं खेला...कभी नहीं। और कल्पना कीजिए उन्होंने किस तरह के गेदबाजों का सामन किया..माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्टस, जोएल गार्नर, डेनिस लिली, जैफ थॉमसन, मैल्कम मार्शल, बॉब विल्स, सर रिचर्ड हैडली, इमरान ख़ान, सरफ़राज नवाज़, वसीम अकरम...। ये सब लगातार 90 की रफ़्तार से तेज़ गेदबाजी करने में सक्षम थे। और एक भी गेंद सन्नी को छू तक नहीं सकी...। क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि सचिन इन गेंदबाजों का सामना बिना हेलमेट के कर पाते।
गावस्कर के मांइड सेट को इस उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है। 84 विश्व कप की फ़ाइनल में भारत के हाथों हारने के बाद वेस्ट इंडीज टीम भारत खेलने आई थी। मार्शल की टीम घायल शेर की तरह दहाड़ रही थी। कानपूर में मार्शल की बांउसर खेलते वक्त गावस्कर के हाथ से बल्ला फिसल गया...लोगों ने सोचा कि गावस्कर की क्रिकेट कैरियर खत्म होने वाली है। लेकिन दिल्ली में होने वाली अगले मैच में गावस्कर ने मार्शल को ऐसा धोया कि उनकी वो पारी क्रिकेट इतिहास बन गई। गावस्कर ने 96 रन बनाए थे, जो उस वक्त बहुत बड़ी बात थी। वो भी अगर सामने वेस्ट इंडीज जैसी टीम हो तो इतना रन सोचना भी गुनाह करने जैसा था। उनकी यही बागी तेवर उन्हें बाकी बल्लेबाजों से मीलों आगे ले जाती है। वो सचिन की तरह नहीं थे, जो दवाब में बुरी तरह लड़खड़ा जाते हैं।
एक बात और, सचिन की टीम में हमेशा तीन-चार अच्छे बल्लेबाज रहे हैं। उनके समकक्ष खेलने वालों में राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, लक्ष्मण, सहवाग, अजहर, मांजरेकर, कांबली जैसे बड़े नाम रहे हैं, जिनका सहयोग निश्चित रूप से सचिन को मैदान पर मिलता रहा है। वहीं गावस्कर की टीम में विश्वनाथ और मोहिंदर अमरनाथ जैसे कुछ ही गिने-चुने नाम थे। यहां तक कि उस वक्त हमारी टीम को ढ़ाई बल्लेबाज की टीम के नाम से बुलाया जाता था। काश....काश! गावस्कर के पास भी सचिन जैसे समकक्ष बल्लेबाज होते या फिर उनका भी जन्म सचिन के समय होता, जब भारत कांफिडेंट हो चुका था.....तो शायद ही कोई पूछता...क्या....सचिन क्रिकेट इतिहास के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज है??
( A curious, nomadic thinker, lost in transition...Trying to re-discover self! 29 Years of experience in handling the life. Yet, at times fails miserably. Still, dare to hope…conviction, I will walk someday. Feel Free: rajivkmishra@in.com)
( A curious, nomadic thinker, lost in transition...Trying to re-discover self! 29 Years of experience in handling the life. Yet, at times fails miserably. Still, dare to hope…conviction, I will walk someday. Feel Free: rajivkmishra@in.com)