दोस्त, अपने मुल्क की किस्मत पे रंजीदा न हो,उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ।...दुश्यंत कुमार
जंगलों में सेना घुस चुकी है। एक बार फिर नक्सली निशाने पर हैं पर मौत हर कदम पर बिछी हुई है। कई तरह की माइंस नक्सलियों ने पूरे जंगल मे बिछा रखी है। झारखंड के ‘दांतेवाड़ा’ सारंडा के जंगलों में तीन दिनों तक सघन अभियान चला और भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए। इसके बाद अब जमशेदपुर की बारी है।
जमशेदपुर के घाटशिला ब्लाक की डायनमारी पहाड़ी में जैसे ही लांग रेंज पेट्रोलिंग(एलआरपी) सुरक्षा बलों ने शुरू की, एक जवान शहीद हो गया। हमला डारेक्शनल माइन से किया गया था। इसके बाद एम्बुश लगाकर नक्सलियों ने फायरिंग भी की। गुरुवार से शनिवार तक पुलिस और नक्सलियों के बीच फायरिंग जारी रही।
जाला बिछा के घेरते हैं जवानों को :
नक्सली पहले जंगल के किसी गांव में मारपीट या गोलीबारी करते हैं। इसके बाद सूचना पुलिस के पास आती है। पुलिस टीम जांच के लिए निकलती है तो रास्ते में उन्हें शिकार बनाने की कोशिश की जाती है। एक दर्जन से ज्यादा पुलिस वाले सिर्फ जमशेदपुर में इसके शिकार हो चुके हैं।
आधुनिक ‘माइन’ से पटा जंगल :
नक्सलियों के पास अब सिर्फ लैंड माइन का सहारा नहीं है। बल्कि जमीन के ऊपर से वार करने वाले डायरेक्शनल माइंस का प्रयोग बहुतायत हो रहा है। डायरेक्शनल माइन को पकड़ना काफी कठिन है और वार बहुत घातक। सीधे जवानों के सिर निशाने पर होते हैं।
मेटल डिटेक्टर भी यहां हैं बेकार :
झारखंड के जंगलों में मेटल डिटेक्टर भी खास उपयोगी नहीं हैं। लौह अयस्क और अन्य मिनिरल्स से भरी इस जमीन पर मेटल डिटेक्टर को ऑन करते ही सिग्नल्स आने लगते हैं। कच्ची सड़कों में कहीं माइन हो सकती है। पेड़ पर डायरेक्शनल माइन लगाई जा सकती है। बहुत मुश्किल है डगर...
Vivek Pandey,
Journalist, Hindustan
Jamshedpur, Jharkhand

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