सारी फिजा जहरीली हो गई, नफरतों के जहर से,
अमन का पैगाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर .................
आदमी ही आदमी के, खून का प्यासा है आज,
प्यार के कुछ जाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर............
लहू में पैवस्त हो गया, झूठ, धोखा और फरेव.
सफाई का पर काम लेकर, हम भी निकले हैं मगर.........
जाति, भाषा, प्रान्त, मजहब, आपस में है लड़ रहे,
शांति पिरय अवाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर..............
जनता का खूँ चूसा बहुत, नेताओं ने होने अमर,
उनकी मौत का अंजाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर .............
गायव जहां से हो चुके, दिन रात के जो दरम्यां,
वो हंसी शुबहों शाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर..............
नाग कितने डस गये, जीस्त की रंगीनियों को,
वो रंगीनियाँ तमाम लेकर, हम भी निकले हैं मगर................
जमाने बदलने के लिए, अवतार जन्मेंगे कहाँ तक,
संग आदमी आम लेकर, हम भी निकले हैं मगर .................

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