खामोश ही बैठा रहूँ या झूम के गाऊँ
हलके सुरूर में ही अक्सर बहक जाता हूँ
वक़्त है बतला दो मै आऊँ या ना आऊँ
दुश्मन हों या फिर दोस्त हों सब एक जैसे हैं
किसको बुरा कह दूं मै किसकी खूबियाँ गाऊँ
जाने क्यों उसकी निगाहें सूनी सूनी हैं
क्यों ना बनके ख्वाब मै उनमे समा जाऊं
अब इसको भला कैसे मुलाक़ात कह पाऊँ
एक तरफ जज्बात हैं और एक तरफ है आबरू
ना दूर रह पाऊँ ना उसके पास जा पाऊँ
वो दूर रहता है तो उसके पास रहता हूँ
वो पास आ जाये तो बताओ कहाँ जाऊं
ये जान लो कि मै अगर ख्वाबों में बह गया
मुश्किल ही है फिर से कभी घर लौट के आऊँ
ख्वाबों में भी आया नहीं वो कई रातों से
जी चाहता है आज उसके घर चला जाऊं.

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