Happy world environment day...

Posted on
  • Saturday, June 5, 2010
  • कल-कल करती धाराओं के उन्माद को,
    सुन सको तो सुन भी लो  अब,
    प्रकृति  के इस  संवाद  को.
    ये धरती अब नहीं उगलती है सोना ,
    यह पवन अब  दे नहीं  पाती है जीवन.
    जल कि धारा  न भिगोती अब यह आँचल,
    ना ही छाया बोलती है,
    " हे पथिक , तू जीवन के पथ पर यूँ ही चला चल !!"
    आज धरती काँप के भय जो अपना जतलाती है,
    मूर्ख मानव यह सन्देश भी समझ पाता नहीं.
    सागर  कि ऊंची लहरों कि कपकपाहट ,
    थर्रा तो जाती है हमें,
    पर उस सिन्धु का दुःख हमको नज़र आता नहीं,
    यह पवन अपने थपेड़ो से हमें झकझोरती है,
    प्रकृति अपनी रक्षा  के लिए हो गयी अति-व्याकुल.
    पर कृतघ्न मनुष्य फिर भी नहीं चिंतित होता है ;
    अपनी ही माता का वह शोषण करता है,
    (और)  दंड मिलने पर  उसे  धिक्कारता भी ....
    पर शंख नाद अब हो गया है, 
    प्रचंड सूर्य ने दिया ,
    अपना ये  अंतिम सन्देश-
    "उठो-२ बस बहुत हो गया,
    अब न परखो मेरा धैर्य,
    अब भी  नहीं जागे जो तुम सब
    तो होगा सबका नाश,
    क्यों कि प्रकृति के नाश में ही छुपा  है,
    मानव जाति का विनाश...."

    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!