
हाँ मै झंडा हूँ ...........
अभी तक था चुनावी हवाओं में गर्म ,
पर अब ठंडा हूँ .........
अब मै बेबस लाचार सा पड़ा हूँ
बेहयाई लिए किसी कोने में खड़ा हूँ
अब मुझे कुछ जुगाड़ी आँखें देखती हैं
जो लालच के तवे में मतलब की रोटियां सेंकते हैं
जिनके मन में मेरे प्रति अलग .अलग हैं ख्याल
किसी के लिए झोला ,किसी के लिए पोछना
तो किसी के लिए हूँ तिरपाल
लेकिन सबसे है बस मेरा इतना सवाल
अब नही दिखते मेरी चाहत के मतवाले
बिजली के खम्बे में सबसे ऊपर लगाने वाले
जो अब तक मुझे लिए खड़े थे
मेरे लिए मरे और लड़े थे
वो राजनीती के मेले में कंही खो गये हैं
और हम झंडे से.... डंडे हो गये हैं
ये डंडे जो हर पाँच साल में लोगों पर पड़ते हैं
पर लोग हैं कि हमारे लिए ही लड़ते हैं
पर लोग जिसदिन एकता ,सदभावना
और भाईचारे का मतलब समझ जायेंगे
उसदिन हम किसी पार्टी के झंडे कि तरह नही
इस देश के तिरंगे कि तरह लहरायेंगे ...........
अनिरुद्ध मदेशिया

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