क्यों अपने ही आस पास सा हु मै
क्यों घबराया डरा सहमा सा हु मै
क्यों आने वाले कल की आस सा हु मै
क्यों डरता हु हकीकत से
जबकि अपना ही अहसास सा हु मै
उलझा हु अपने ही सवालो में
क्यों खामोश बदहवास सा हु मै
खेल चल रहा है पत्तो का
क्यों जोकर के अहसास सा हु मै
लिख रहा हु एक दिन की हकीकत
चारो तरफ है कांटे बीच उनके गुलाब सा हु मै
------- मनीष शुकला