मेरे दखालंदाज़ दोस्तों आज दखलंदाज़ी के लिए बहुत ख़ुशी का दिन है क्योकि हमने साथ मिलके पहला पड़ाव पार कर लिया है. नहीं समझे तो साइड बार में कुल प्रविष्टियों और कुल टिप्पड़ियों की संख्या पर ध्यान दें. ये हमारे ब्लॉग की पचासवीं पोस्ट है. तो इस तरह हमने दखलंदाज़ी कि पिच पर अपनी हाफ सेंचुरी पूरी कर ली. आशा है कि ज़ल्दी ही हम सेंचुरी भी पूरी कर लेंगे. और फिर कई नए आंकडे पर करने होंगे.
मैंने कई साल पहले अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक मैगज़ीन निकालने का प्लान बनाया था काफी पत्रकारों और प्रिंटिंग प्रेस के चक्कर लगाये थे. पर उसका बजट बहुत ज्यादा था और वो काफी कठिन काम भी था. हम उस सब के लिए बहुत छोटे थे और हमारे पास इतने पैसे भी नहीं थे. पर आज तकनीकी विकास ने ये संभव कर दिखाया कि हम बिना एक पैसा खर्च किये अपनी मैगजीन निकाल पा रहे हैं. अपने विचार शेयर कर पा रहे हैं. हमने जब ये ब्लॉग शुरू किया था तो यही सोचा था कि अपने निजी ब्लॉग पर काम करने में वो बात नहीं जो एक ग्रुप ब्लॉग पर. तब हम बहुत थोड़े लोग थे, कुछ दिन में हम सब सुस्त भी पड़ गए या यूँ कहिये कि अपनी अपनी लाइफ में व्यस्त हो गए. पर तभी कुछ नए लोग आये और एक बार फिर ब्लॉग में सक्रियता लौट आई. अब तो इस बात कि उम्मीद काफी कम है कि ये ब्लॉग कभी सुस्त पड़ेगा. सबसे अच्छी बात ये है कि अब रोज़ ही कुछ नए लोग हमारे ब्लॉग को ज्वाइन कर रहे हैं. कमेन्ट दे रहे हैं और नयी पोस्ट लिख रहे हैं. और मेरे कुछ वरिष्ठ मित्रों और गुरुओं की बात मानें तो हम अच्छा भी लिख रहे हैं. और जब तक नए लोगों का जुड़ना जारी है ब्लॉग कि सक्रियता में कोई कमी नहीं आने वाली.
एक बार फिर मै दखलंदाज़ी ब्लॉग का उद्देश्य स्पष्ट कर दूं कि हम यहाँ सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर दखलंदाज़ी कर सकें. यहाँ कोई सेंसर बोर्ड नहीं है और अख़बारों कि तरह कोई मैनेजमेंट भी नहीं है. जो हम पर दबाव डाल सके. सवाल ये नहीं है कि हमारी बात कोई सुन रहा है या नहीं सवाल ये है कि हम अपनी बात कह रहे हैं या नहीं. हम कुछ सोच रहे हैं या नहीं. ग्रुप ब्लोग्स पहले भी बने हैं पर उनमे से कोई इतना युवा नहीं है. हमारा ब्लॉग सभी अन्य ग्रुप ब्लोग्स से ज्यादा युवा है और साथ में कुछ बहुत सीनिअर लोग भी हमारे मार्गदर्शन के लिए हमारे साथ हैं. क्या ये अपने आप में गर्व की बात नहीं है कि आज के युवा ऍम टीवी कल्चर से ऊपर उठ कर सोच रहे हैं. राजनीती हो या समाज सब आने वाले समय में युवाओं के हाथ में ही होगा. इसलिए हम युवाओं का पूरा पूरा अधिकार और साथ ही साथ कर्त्तव्य भी है कि हम हर मुद्दे पर खुल के दखलंदाजी करें. खुल के डिसकसन करें. हम लोग बहुत महत्वपूर्ण लोग भले ही न हों. पर मैं मानता हूँ कि किसी समाज और किसी देश का हर व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है. इसलिए हमारी सोच महत्वपूर्ण है. हमारा रुख महत्वपूर्ण है.
तो आइये मिलकर इस मंच को महत्वपूर्ण बनायें. अपनी बातो से अपने मुद्दों से अपनी कलम से और अपने विचारों से. अभी तो बस ५० पोस्ट ही पूरी की हैं अभी तो हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना. वरिष्ठ पत्रकार और शायर प्रमोद तिवारी जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है......
सफ़र में गीत हमको हौसलों से गुनगुनाने हैं,
हमें खुद रस्ते में मील के पत्थर लगाने हैं.
ज़रा सी धुप लगने दो बदल जायेंगे पानी में,
ये पर्वत बर्फ के बस देखने को सुहाने हैं.
हमारी धमनियों में खून है फिर सोचते क्यों हो,
हमें ज़लते हुए अंगार मुट्ठी में छुपाने हैं.
ज़रा सी रोशनी देकर ये सारा घर जला देंगे,
उठो ज़ल्दी करो ऐसे दिए हमको बुझाने हैं.
ये अपने मखमली गद्दे उठा लो हम न सोयेंगे,
हमें मालूम है इस रात कैसे ख्वाब आने हैं.
एक बार फिर अपने सभी दखलंदाज़ मित्रों को ढेर सारी बधाइयाँ.... मुबारकां.... पटाखे....
........ जय हो दखलंदाज़ी की...!!!

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