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वंदना जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद. हमें आशा थी की कुछ सेनिअर लोगों को भी हमारा प्रयास ज़रूर अच्छा लगेगा. हम चाहेंगे कि आप भी हमारे ब्लॉग से जुड़े, आपके मार्गदर्शन में हम अच्छा कर पाएंगे. आशा है कि आपको भी हमारे ब्लॉग से जुड़कर अच्छा लगेगा. मै आपकी सलाह से सहमत हूँ कि अगर हम इस व्यवसाय के किसी व्यक्ति से सलाह लेते तो ऐसा न करते. और जॉब छोड़ने कि कीमत पर ये सब शायद ठीक नहीं है. यही बातें हमारे माता पिता और समस्त हितैषियों ने भी कही थीं. पर आप ही बताइए कि क्या हर बात कि कोई कीमत होती है. दरअसल कुछ बातें शायद कीमत से बढ़कर होती हैं. हम तब और भी कम उम्र थे. अब से भी ज्यादा. पर हम बस यही सोचते थे कि ये जीवन एक बार मिला है, तो क्यों न कुछ बड़ा किया जाये. ज्यादा चांस यही कि हम नाकाम होंगे पर हम कोशिश तो करेंगे ही. आज सपने देखना कठिन है, लोग या तो सपने देखते नहीं या उनके पीछे जाने कि कोशिश नहीं करते. ऐसे में हमने कुछ ख्वाब सजाये और उनको पूरा करने कि कोशिश की यही हम अपने जीवन कि उपलब्धि मानते हैं. अगर दोस्तों का साथ मिला और आप लोगों का मार्गदर्शन तो पूरा विश्वास है की हम कुछ बड़ा कर पाएंगे, समाज पर और सिस्टम पर असर छोड़ पाएंगे. पर वो मैटर नहीं करता जो मैटर करता है वो ये है की हम कोशिश कर रहे हैं. और हमारा मकसद सिर्फ एक मैगजीन निकलना नहीं है बल्कि एक ग्रुप ओर्गनाइज करना है. हम जानते हैं की शब्द महत्वपूर्ण हैं पर बिना एक्सन के अर्थहीन हैं. इसलिए हम कुछ करना चाहते हैं. लेकिन ज़रूरी है की पहले हम कुछ लोग संगठित हों. और एकसाथ सोचें और काम करें. संगठित होने से हमारी विचार शक्ति भी बढ़ेगी और कार्य शक्ति. इस दुनिया में आज तक कोई भी बड़ा काम किसी ने अकेले नहीं किया. संगठित होना सबसे आवश्यक है. मै स्पष्ट करना चाहूँगा की हम ब्लोग्स की भीड़ में एक और ब्लॉग बनकर नहीं खोना चाहते. या तमाम मैगजींस की तरह एक और मैगजीन नहीं निकलना चाहते. बल्कि कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो अलग हो. जिसका समाज पर प्रभाव हो आशा है की हम सब साथ चलकर किसी महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुच पाएंगे. मुझे भी नहीं पता की ये सब कैसे होगा. पर ऐसा लगता है की ऐसा हो सकता है. आई थिंक वी कैन. दोस्तों हम कोई मामूली काम नहीं कर रहे... अकबर इलाहाबादी का शेर बेमतलब नहीं हो सकता........
खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो.
जब तोप मुकाबिल हो, अख़बार निकालो

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